Ads2

Thursday, 31 August 2017

सिन्धु घाटी सभ्यता by bajrang Lal

 सिन्धु घाटी  सभ्यता  का  मान्यता  प्राप्त   काल --  2500-1750

कालीबंगा  किस  प्रदेश  में है--  राजस्थान में
सिंधु  घाटी सभ्यता में घोड़े  के  अवशेष  मिले  ---   सुरकोटदा
हड्डपा  काल की  मुद्रा  बनाने  में किस पदार्थ  का उपयोग  होता  था  ---  सेलखड़ी
 हड्डपा सभ्यता किस युग  की थी  --  कांस्य  युग
 सिंधु सभ्यता का मुख्य व्यवसाय  ---  व्यापार
हड्डपा सभ्यता के निवासी  --  शहरी
 सिंधु सभ्यता के घर  किसके  बनाये  जाते  थे  ---   ईंट से
सिंधु सभयता  का बंदरगाह  --  लोथल
 हड़पवासी  किस वस्तु  के उत्पादन  में प्रथम  थे --  कपास
हड्डपा सभ्यता के खोजकर्ता  --  दयाराम  साहनी
 पैमानों  की खोज  कहा  हुई  --  लोथल
 हड्डपा सभयता की खोज कब  हुई --  1921 ईस्वी
सिंध  का नखलिस्तान/   बाग --  मोहनजोदड़ो
 हड्डपाकलीन समाज  --  विद्वान्   योदा  व्यापारी  श्रमिक
 हड्डपा सभयता का सम्पूर्ण  क्षेत्र  किस आकार  का था ---  त्रिभुजाकार
 हल  से जोते   हुए खेत    के  साक्ष्य  मिले --  कालीबंगा में
 सिंधु सभ्यता की मुद्रा में किस देवता  के समतुल्य  चित्रांकन  मिलता  है --  आद्य शिव
 सिंधु सभ्यता में वृहत  स्नानागार  पाए  ￶गए  --  मोहनजोदड़ो में
 मोहनजोदड़ो कहा स्थि्त है  -- सिंध में

हड्डपाकलिन लोथल कहा स्थित  था --  गुजरात
सैंधव सथलों के उत्खनन  से प्राप्त  मुहरों  पर किस पशु  का सर्वाधिक  उत्कीर्णन  हुआ है --  बैल
भारत में खोजा  गया सबसे  पहला  पुराना शहर --  हड्डपा
भात में  चांदी की उपलब्धता  के प्राचीनतम  साकक्ष्य  मिलते  हैं --  हड्डपा संस्कृति
उत्तर ---    मांडा(  जम्मू  कश्मीर  )
दक्षिण----   दायमाबाद (  महाराष्ट्र  )
पूर्व ------  आलमगीरपुर  (  उत्तरप्रदेश  )
पश्चिम--- सुत्कान्गेडर (  बलूचिस्तान  )
मांडा किस नदी के किनारे  है --  चेनाब नदी
रोपड  किस नदी के किनारे है --  सतलज  नदी
उन्नत जल प्रणाली  ---  धौलावीरा  में
मिटटी  के बर्तनों  का रंग  --  लाल
सिंधु सभ्यता का काल --  आद्य ऐतिहाहासिक  काल
किस स्थल से घरों  में कुओं  के  अवशेष मिले --  मोहोहनजोदड़ो
सिंधु सभ्यता
की खोज --  दयाराम साहनी एवं राखालदास  बनर्जी
रंगपुर कहा स्थित  है --  सौराष्ट्र
हड्डपा एवं मोहनजोदड़ो की खुदाई  के प्रभारी  थे --  सर  जॉन  मार्शल
सिंधु घाटी  के लोग  विश्वास  करते  थे --  मातृशक्ति  में
मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी  इमारत  --  विशाल  स्नानागार
घरों के विन्यास  की पद्द्ति --    ग्रीड पद्द्ति
हड्डपावासी किस धातु  से परिचित  नहीं थे --  लोहा
किस स्थल से युगल  शवाधान  के साक्ष्य मिले --  लोथल
हड्डपाकाल का तांबे  का रथ   कहाँ  मिला  --  दायमाबाद
हड्डपावासी लाजवर्द  का आयात कहां  से करते थे --  हिन्दुकुश  क्षेत्र  के बदख़्शा  से
किस स्थल से नृत्य   मुद्रा वाली  स्त्री   की कांस्य मूर्ति   प्राप्त हुई -  मोहनजोदड़ो
किस स्थल  से पुजारी   की  प्रस्तर  मूर्ति मिली  --  हड्डपा
बिल्ली का पीछा  करते  हुए कुत्ते  के पंजे  के   निशान कहाँ मिले --  चन्हुदडो
चोंच में मछली  दबाए  चिड़िया  एवं पेड़  के नीचे   खड़ी लोमड़ी  --  लोथल
चन्हुदडो के उत्त्खनन  का निर्देशन  किया था --  जे  एच     मैके ने



लोथल ----गुजरात – भोगावा
मोहनजोदड़ो --  पाकिस्तान  --  सिंधु

हड्डपा --  पाकिस्तान --  रावी
कालीबंगा--  राजस्थान  --- घग्घर

रंगपुर --  गुजरात ---  मादर
रोपण--  पंजाब  ---  सतलज
बनमाली  --  हरियाणा --- सरस्वती
चन्हुदडो---  पाकिस्तान
धौलावीरा---  गुजरात

नदी एवं स्थल याद रखने की ट्रिक


लोभी  मौसी  का हरा  कंघा  रमा  ने ले  लिया तो वो  रोस  में आ गयी  और  उसे  बस  से कुचल  दिया

लो ----- लोथल
भी ------ भोगवा
मौ -------- मोहनजोदड़ो
सी -------- सिन्धु
ह ------- हड्पा
रा ----- रावी
कं ------ कालीबंगा
घा ------- घग्घर
र ------- रोपड़
मा ---- मादर
रो ------- रोपड़
स ------ सतलज
ब ----- बनमाली
स ------ सरस्वती

सिन्धुकालीन स्थल एवं राज्य


धोले रंग का स्थल रात में भी दिख जाता है।

धोले  ------ धोलपुर
रंग ------ रंगपुर
स्थल ---- लोथल
रात ------ गुजरात

मोहन है चन्दा का  पापा

मोहन ----- मोहनजोदड़ो
है ---- हड़्पा
चन्दा ---- चन्पाहदड़ो
पापा ---- पाकिस्तान

बहरा राका पंजो रोप ले

ब------ बनमाली
हर ----- हरियाणा
रा----_--- राजस्थान
का ------ कालीबंगा
पंजो ----- पंजाब
रोपले ---- रोपड़


Wednesday, 30 August 2017

वैदिक काल by bajrang Lal

वैदिक काल

 ब्राह्मण साहित्य में वेद सबसे पुराना है ,
 वेद का शाब्दिक अर्थ है जानना
 वैदिक संस्कृति के संस्थापक आर्य थे ।

 वेदों को श्रुति भी कहा जाता है  ।

संपूर्ण वैदिक साहित्य को दो भागों में बांटा गया है ,  श्रुति साहित्य तथा स्मृति साहित्य

(1).  श्रुति साहित्य में वेद  , ब्राह्मण  , आरण्यक और उपनिषद आते हैं ।

(2).  स्मृति साहित्य में वेदांग ,  सूत्र और ग्रंथ शामिल है ।

वेदों का संकलन कृष्ण द्वैपायन व्यास ने किया था इसलिए वह वेदव्यासकहलाए ।

 वेद चार प्रकार के है ऋग्वेद  , सामवेद ,  यजुर्वेद एवं  अथर्ववेद  ।

              ऋग्वेद

ऋग्वेद में कुल 10 मंडल , 1028 सूक्त एवं 10462 मंत्र हैं ।

 ऋग्वेद में के मंत्रों का उच्चारण होतृ  या होता से किया जाता है ।

 कृषि संबंधित जानकारी चौथे मंडल से प्राप्त होती है ।

 गायत्री मंत्र का उल्लेख तीसरे मंडल में है ।


 7वां मंडल वरुण को एवं नवाँ  मंडल सोम को समर्पित है ।

 विदुषी महिलाएं-- लोपामुद्रा ,  सिक्ता   , अपाला , घोषा  आदि ।
 ऋग्वेद में इन महिलाओं को ब्रह्मवादिनी कहा गया है ।

 दसवें मंडल के पुरुषसूक्त में चारों वर्ण पुरोहित  , राजन्य ,  वैश्य तथा  शूद्र का वर्णन है ।

 एतरेय  एवं कोषितकी  ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ हैं ।

 ऐतरेय ब्राह्मण में जनपद एवं राजसूय यज्ञ का उल्लेख मिलता है ।

 ऋग्वेद में यमुना का उल्लेख तीन बार एवं गंगा का उल्लेख एक बार है ।

 इस वेद में सोमरस का वर्णन सर्वाधिक हुआ है  , इंद्र को पुरंदर कहा गया है ।

 आयुर्वेद , ऋग्वेद काउपवेद है ।


                    सामवेद

 सामवेद गायी  जाने वाली ऋचाओं  का संकलन है जिनके पुरोहित उद्गाता कहलाते थे ।

 सामवेद से ही सर्वप्रथम सात  स्वरों   की जानकारी प्राप्त होती है  , इसलिए इसे भारतीय संगीत  का जनक माना जाता है  ।

गंधर्व वेद सामवेद का उपवेद है।

 सामवेद में कुल मंत्र की संख्या 1549 हैं।

 पंचवीश  पांडे सामवेद के ब्राह्मण ग्रंथ हैं ।


          यजुर्वेद

 यजुर्वेद में अनुष्ठानों ,  कर्मकांड और  ￶यज्ञ संबंधी  मंत्रों का संकलन है  ,उनके पुरोहित को अध्वर्य कहते  थे ।

 यह गद्य एवं पद्य दोनों में रचित है ,  एवं इसके दो भाग हैं (1)  कृष्ण यजुर्वेद (गद्य ) (2) शुक्ल यजुर्वेद ( ￰पद्य )


 कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ तैतरीय ब्राह्मण तथा शुक्ल यजुर्वेद का शतपथ  है ।

यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है।

शतपथ में कृषि एवं सिंचाई का उल्लेख मिलता  है।


                  अथर्ववेद

इसकी रचना अथर्वा ने की थी ।


अथर्ववेद के ￶￰मंत्र रोग नाशक , जादू  -  टोना  , विवाह  गीत  आदि से सम्बधित हैं।


इसका उपवेद अर्थवेद है।

अथर्ववेद का कोई आरण्यक  ￶ग्रंथ नहीं है।

इसमें सबसे  पहले गोत्र   शब्द का उल्लेख मिलता  है।

इनके  पुरोहित  को ब्रह्मा  कहते  हैं ।

इसी  वेद में सभा  , समिति  को प्रजापति  की दो पुत्रियां  कहा गया है ।
चांदं एवं गन्ने  का सर्वप्रथम  उल्लेख  अथर्वेद  में ही मिलता  है ।



              आरण्य

ऋषियों  द्वारा जंगलों  में की जाने  वाली  रचनाओं   को आरण्यक  कहते  हैं ।

ये  दार्शनिक  रहस्यों  से परिपूर्ण  हैं ।

इनकी  संख्या  सात  है ।




               उपनिषद

उपनिषद  वेदों  का अंतिम  भाग है , इसलिए  इन्हे  वेदांत  भी कहते हैं  ।

उपनिषदों  की कुल  संख्या 108 है जिनमे  11 महत्वपूर्ण  है ।

￶मुण्डकोपनिषद से सत्यमेव  जयते  शब्द  लिया गया है ।

इषोपनिषद  में गीता  का निष्काम  कर्म  का पहला  विवरण  मिलता है ।

नचिकेता  यम  का संवाद  कठोपनिषद  में है ।

वृहदारण्यक उपनिषद में ही पुनर्जन्म  का सिदांत एवं यञवल्क्य  गार्गी  संवाद का वर्णन  है ।

श्वेताश्वर  उपनिषद में सर्वप्रथम भक्ति  शब्द का उल्लेख मिलता है ।

वेदांग वैदिक

 मूल ग्रंथ का अर्थ समझने के लिए वेदांगों की जरूरत होती है ।


 यह वेदांग है  -- शिक्षा  , कल्प  , व्याकरण ,  निरुक्त ,  छंद और ज्योतिष ।


                स्मृति ग्रंथ

 स्मृति ग्रंथ के अंतर्गत स्मृति ,  धर्मशास्त्र  एवं पुराण आते हैं ।

 यह हिंदू धर्म के कानूनी ग्रंथ भी कहे जाते हैं ।

 मनुस्मृति सबसे प्राचीन स्मृति ग्रंथ है  ।

 मेधातिथि , गोविंदराज ,भरुची एवं कल्लुक भट्ट मनुसमृति पर टिका लिखने वाले विद्वान है ं ।

 याज्ञवल्क्यस्मृति  -- इसके भाष्यकार है ं विज्ञानेश्वर , अपरार्क , विश्वरुप ।

 महाभारत के रचयिता व्यास जी है ं , इसका नाम जय सहिंता था । इसमें 1,00,000 श्लोक है ं।


 रामायण की रचना वाल्मीकि ने की थी ,इसमें 24,000 श्लोक है ं।



             पुराण

 पुराणों की संख्या 18 है ।

 उनका संकलन गुप्त काल में हुआ , तथा इनमें एतिहासिक वंशावलियां मिलती है  ।

 मत्स्य , वायु , विष्णु , शिव , ब्रह्मांड,  भागवत कुछ महत्वपूर्ण पुराण है  ।

 विष्णु के 10 अवतारों का विवरण मत्स्य पुराण से  प्राप्त होता  है  यह सबसे प्राचीन पुराण है  ।

 

                   सूत्र

सूत्र प्रमुख चार प्रकार के है ं ---

 गृह सूत्र -- इसमें जातकर्म , नामकरण , उपनयन , विवाह ,  श्राद्ध , घरेलू या पारिवारिक अनुष्ठानों का विधि-विधान दिया गया है  ।


 श्रोतसूत्र  -- इसमें राजा के द्वारा अनुष्ठेय  सा र्वजनिक यज्ञों  के विधिविधान दिए गए है ं ।

 धर्मसूत्र -- इसमें धर्म संबंधी विभिन्न क्रियाओं का वर्णन है  ।

 शुल्वसूत्र--- इसमे ज्यामिति  एवं गणित का अध्ययन होता  है  ।




 व पद्य  को  रिचा , गद्य   को यजुष  और गेय   पद को सा म कहते हैं।

 व्याकरणाचार्य पाणिनि के अनुसार ऋग्वेद की 21 शाखाएं हैा ।

 मत्स्य पुराण में सातवाहन , विष्णु पुराण में मौर्य वंश और वायु पुराण में गुप्त वंश का वर्णन है ।

 ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद को वेदत्रयी   कहते हैं ।

 ब्रह्मसूत्र  , भागवतगीता एवं उपनिष्द को प्रस्थान त्रयी कहते हैं ।



 आर्यों का मूल स्थान मध्य एशिया था ।

 उत्तर में हिमालय
 दक्षिण में यमुना नदी के समानांतर
 पूर्व में यमुना नदी
और पश्चिम में अफगानिस्तान तक विस्तार था

              प्राचीन नदियों के नाम

सिंधु  -------------सिंधु
अस्किनी---------- चिनाब
शतु द्री ------------ सतलज
विपाशा ------------- व्यास
वितस्ता ------------ झेलम
 सरस्वती -------घग्घर
परुष्णी -------- रावी


            अफगानिस्तान की नदियां

 कुभा -----  काबुल.
स्वास्तु  -----स्वात
 ￶क्रुमु --------- कुर्रम
 गोमती----- गोमल

 आर्यों की सबसे प्रमुख नदी सिंधु नदी थी ।

 रिग वैदिक काल की सर्वश्रेष्ठ नदी सरस्वती नदी थी ।

 गंडक को सदानीरा के नाम से जाना जाता है ।

 ऋग्वेद में मरुस्थल के लिए धन्व   शब्द प्रयोग किया गया है ।

 परंपरा अनुसार आर्यों के पांच कबीले थे जिन्हें पंचतंर कहा जाता था ।

 भारतवंश  एवं 10 राजाओं के बीच परुष्णी  नदी के तट पर दसराज्ञ युद्ध हुआ ।

  ऋगवैदिक काल में यव अर्थात जौ प्रमुख फसल थी।


 रिग वैदिक काल में पशुपालन  मुख्यता एवं कृषि कम था ।

 इस काल में गाय का अत्यंत महत्व था ।

 अयस शब्द का प्रयोग तांबे या कांसे के अर्थ में होता था ।


ऋग्वैदिक काल में आर्यों का प्रशासन तंत्र  कबीले के प्रधान द्वारा संचालित होता था ,  जिसे राजन् कहा कहा  जाता था ।



 ऋग्वेद में वर्णित बलि राजा को दिया जाने वाला  स्वैच्छिक  कर था ।

 इस काल में वरिष्ठ एवं विश्वामित्र दो महान पुरोहित हुए ।



 वैदिक ग्रंथों में कुल 33 देवताओं का उल्लेख है ।

ऋग्वेद में इंद्र देव सबसे प्रथम,  अग्नि द्वितीय , और वरुण तृतीय है ।

 सोम -------- वनस्पति के देवता
मरूत---------आंधी के देवता
उषा --------------प्रगति और उत्थान की देवी
 पूषण -----------पशुओं के देवता
अरण्यानी----------- जंगल की देवी
द्यौ  ---------- आकाश का देवता




     

               उत्तर वैदिक काल

 आर्यों का भौगोलिक विस्तार उत्तर में हिमालय  , दक्षिण में विंध्याचल पर्वतमाला ,  पश्चिम में अफगानिस्तान  , और पूर्व में उत्तरी बिहार तक था ।

 वर्ण व्यवस्था का आधार कर्म से बदलकर जन्म हो गया ।

 ब्रह्मचर्य ,  गृहस्थ ,  वानप्रस्थ और संन्यास का सर्वप्रथम उल्लेख जाबलोपनिषद में मिलता है ।

 शतपथ ब्राह्मण में पत्नी को अर्धांगिनी कहा गया है ।


 विदुषी महिलाएं -- मैत्रेयी , गार्गी ,  सलवा , वणवा, काव्यायनी  ।

 उत्तर वैदिक काल में आर्यों की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि था ।

 इस काल में व्रीहि (चावल ) ,माष( उड़द ) ,यव (जौ) , गोधूम( गेहूं )आदि का उत्पादन होने लगा ।

 उत्तर वैदिकाल में लोहे की जानकारी हुई ।

 इस गांव के लोग चार प्रकार के मृदभांडों  से परिचित थे ।

 काला। व लाल , काली पोलिशदार , चित्रित धूसर और लाल मृदभांड ।

 सर्वाधिक लोहा औजार अंतरजीखेड़ा से प्राप्त हुए हैं ।

 उत्तर वैदिक काल में उत्तर का राजा विराट कहलाता था ,  दक्षिण का भोज  , पूर्व का सम्राट और पश्चिम का स्वराज ,  एवं मध्य का शासक राजा कहलाता था ।




 राजा का पद  अनुवांशिक बन गया।


 राजसूय यज्ञ --  राज्य अभिषेक के समय

 अश्वमेध यज्ञ ---- साम्राज्य विस्तार िए

वाजपेय  यज्ञ----  रथदौड़  दौड़ की आकांक्षा से ।




 उत्तर वैदिक काल में धर्म कर्मकांड आधारित हो गया ।


 इस काल के प्रमुख देवता प्रजापति (ब्रह्मा ) ,शिव (रुद्र) ,  नारायण (विष्णु) ,
 पुषन अब शूद्रों के देवता हो गए ।

 इस काल में गृहस्थों  के लिए पंचमहायज्ञ भी होने लगे।

 ब्रह्मयज्ञ  ,भूत यज्ञ , देवयज्ञ , पितृयज्ञ  एवं अतिथियज्ञ ।

 इस काल में ही षड्दर्शन का उदय हुआ ।


सांखय ------ कपिल मुनि
 योग ---- पतंजलि
न्याय------ गौतम ऋषि
 वैशेषिक----- कणाद मुनि
 पूर्व मीमांसा  ----- जैमिनी
उत्तर मीमांसा ------- वादरायण



   


                 सोलह  संस्कार

 गर्भाधान,  पुंसवन , सीमंतोन्नयन , जातकर्म , नामकरण  ,निष्क्रमण , अन्नप्रासन, चूड़ाकर्म , कर्णछेदन , विद्यारंभल, उपनयन , विद्यारंभ , केशांत समावर् तन , विवाह एवं अंत्येष्टि ।

 उपनयन संस्कार एक महत्वपूर्ण संस्कार था  , जो शूद्रों को छोड़कर शेष तीनों वर्णों के लिए था ।

 ब्राह्मण  , क्षत्रिय , वैश्य के बच्चों का उपनयन संस्कार  ￶क्रमशः   8 वर्ष  ,11 वर्ष तथा 12 वर्ष की अवस्था में होता था  ,यह बालक संस्कार के बाद द्विज कहलाते थे।





             विवाह

 अनुलोम विवाह -- इसमें पुरुष वर्ण का तथा महिला निम्न  वर्ण की होती थी ।

 प्रतिलोम विवाह -- इसमें पुरुष निम्न वर्ण का तथा  महिला  उच्च वर्ण की होती थी ।

 गृह सूत्रों के अनुसार आठ प्रकार के विवाह होते है

(1)  ब्रह्म विवाह ---- यह सबसे प्रचलि त एवं उत्तम विवाह था ।

 (2) दैव विवाह --- यज्ञ करने वाले ब्राह्मण से पुत्री का विवाह कि या जाता थै ।

(3)  आर्य विवाह --कन्या का पिता  वर से गाय लेकर कन्या का विवाह कर देता था ।

(4) प्रजापति  विवाह --  इसमें कन्या का पिता वर को  वचन देता था ।

(5)  असुर विवाह --वर से मुल्य   लेकर कन्या को बेचा जाता था ।

(6) गंधर्व विवाह -- यह प्रेम विवाह था , जिसमें माता-पिता की अनुमति  नहीं ली जाती थी ।

(7) राक्षस विवाह ------ इसमें विवाह वधू का अपहरण किया जाता था  ।

(8)  पैशाच विवाह ----- यह जबरदस्ती किया जाने वाला विवाह था ।




 कृषि  संबंधित शब्दावली

लांगल  --  हल
वृक ------- बैल
उर्वरा ---जुते हुए खेत
सीता----हल से बनी नालि यां
अवट--- कूप  (कुआँ)
 पर्जन्य------ बादल
 अनस ---- बैलगाड़ी
 कीनाश ----- हलवाहा  ।


 असतो मा सद्गमय का सर्वप्रथम उल्लेख -- ऋग्वेद

 सबसे प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथ--- कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण

 सबसे प्राचीन उपनि षद --छान्दोग्य एवं वृहद्धारण्यक।

 भारत कबीले का सर्वप्रथम उल्लेख-- ऋग्वेद

उत्तर वैदि क काल का सर्वप्रमुख देवता  --- प्रजापति



 ऋग्वेदिकाल की सर्वाधिक स्तुत्य नदी ---- सिंधुनदी

 ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी ------- सरस्वती

 याज्ञवल्क्य गार्गी संवाद उल्लेखित है --- वृहदारण्यक  उपनिषद में

वैश्य शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग मिलता है  --वाजसनेयी सहिंता।

 श्वेताश्वतर उपनिषद् समर्पित है-----  रुद्र देवता को

Tuesday, 29 August 2017

￶￶￰बौद्ध. धर्म by bajrang Lal

                 बौद्ध धर्म

 बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु के निकट नेपाल की तराई में अवस्थित लुंबिनी में हुआ ।

 गौतम बुद्ध के पिता शुद्धोदन , उनकी माता माया देवी कौशल राजवंश की कन्या थी ।



 शीघ्र ही उनकी माता का देहांत हो गया , उसके पश्चात उनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने उनका पालन पोषण किया ।

 उनकी पत्नी यशोधरा थी एवं पुत्र राहुल था ।

 गौतम बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में गृह त्याग दिया जिसे बहुत साहित्य में महाभिनिष्क्रमण कहा गया है।

￶गृह त्याग  से संबधित  दृश्य

 वृद्ध व्यक्ति को देखना
 रोगी को देखना
मृतक को देखना
और सन्यासी को देखना


 बुद्ध के ग्रह त्याग का प्रतीक घोड़ा माना जाता है उनके घोड़े का नाम का कंथक   तथा सारथी का नाम चना   था ।


                   ज्ञान प्राप्ति

 बुद्ध के प्रथम गुरु अलार कलाम थे जिनसे उन्होंने सन्यास काल में शिक्षा प्राप्त की।
 रुद्रक् राम पुत्र उनके एक और गुरु थे ।


 बुद्ध ने बोधगया में निरंजना नदी के तट पर कठोर तपस्या की तथा सुजाता नामक लड़की के हाथों खीर खाकर उपवास तोड़ा ।

 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में पीपल वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ इसे संबोधि कहा गया ।



 बुद्ध को तथागत , मैत्रेयी और शाक्यमुनि भी कहा जाता है ।

                    धर्मचक्रप्रवर्तन

बुद्ध ने अपने ज्ञान का प्रथम प्रवचन सारनाथ में पांच ब्राह्मणों को दिया जिसे धर्मचक्र परिवर्तन कहा गया ।


 आनंद बुद्ध का प्रिय शिष्य था, आनंद  के कहने पर ही बुद्ध ने बौद्ध संघ में स्त्रियों के प्रवेश की अनुमति दी थी
 महाप्रजापति गौतमी को सर्वप्रथम बौद्ध संघ में प्रवेश मिला  ।

      बुद्ध से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाएं एवं उनके प्रतीक



 हाथी --माता के गर्भ में आना
 कमल --बुद्ध का जन्म
 घोड़ा --गृह त्याग
बोधि वृक्ष --ज्ञान प्राप्ति
 धर्मचक्र -- प्रथम उपदेश
 भूमिस्पर्श -- इंद्रियों पर विजय
 एक करवट सोना --- महापरिनिर्वाण

            महापरिनिर्वाण


 गौतम बुद्ध 80 वर्ष की उम्र में 483 ईसा पूर्व में चुं द नामक एक कर्मकार के हाथों सुकर खाने के उपरांत कुशीनगर में स्वर्गवासी हुए।


 बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके अवशेषों को 8 भाग में बांटकर 8 स्तूपों का निर्माण किया गया  ।




 बुद्ध ने लगातार भ्रमण कर 40 साल तक उपदेश दिए।


 उन्होंने सर्वाधिक उपदेश कौशल प्रदेश की राजधानी श्रावस्ती में दिए ।



 बुद्ध ने सांसारिक दुखों के संबंध में चार आर्य सत्य का उपदेश दिया
 दुख
दुख समुदाय
दुख निरोध
दुख निरोधगामिनी प्रतिपदा

           अष्टांगिक मार्ग

 सम्यक दृष्टि
सम्यक वाक्
 सम्यक आजीव
सम्यक स्मृति
सम्यक संकल्प
 सम्यक कर्मान्त
 सम्यक व्ययााम
 और सम्यक समाधि

 प्रथम बौद्ध संगीति -- राजगृह -- 483 ईसा पूर्व-- महाकाश्यप -- अजातशत्रु
 द्वितीय बौद्ध संगीति --वैशाली --383 ईसा पूर्व-- साबकमीर-- कालाशोक
 तृतीय बौद्ध संगीति --पाटलिपुत्र-- 251 ईसापूर्व-- मोगलीपुत्तिस्य  --अशोक
 चतुर्थ बौद्ध संगीति-- कुण्डलवन --इसा की प्रथम शताब्दी-- वसुमित्र --कनिष्क


 बुद्ध प्रथम बौद्ध संगीति में विनयपिटक( उपाली के नेतृत्व में) और सुत्त पिटक (आनंद के नेतृत्व में) लिखे गए  ।

 द्वितीय बौद्ध संगीति में कुछ भी भिक्षुओं   ने संघ से अलग होकर महासंघिक नामक संप्रदाय बनाया । अन्य थेरावादिन कहलाए ।

 तृतीय बौद्ध संगीति में मोगलीपुत्तिस्य ने अभिधम्मपिटक का संकलन किया ।

 चतुर्थ बौद्ध संगीति में बौद्ध धर्म हीनयान एवं महायान संप्रदाय में बंट गया ।

 विनयपिटक -- बौद्ध धर्म के नियमों का वर्णन

 सुत पिटक --धार्मिक विचारों एवं वचनंग्रह

 अभिधम्मपिटक--  बौद्ध दर्शन का वर्णन

अंगुत्तर निकाय --16 महाजनपदों का वर्णन

       त्रिरत्न-  बौद्ध धर्म के तीन रत्न हैं  बद्ध धर्म और संघ

 बुद्ध ने अपने उपदेशों का प्रचार पाली भाषा में किया है


बौध्द धर्म ईश्वर और आत्मा को नही ं मानता है।

 मिलिंदपन् हो में बौद्ध भिक्षु नागसेन और यूनानी राजा मिनांडर का दर्शनिक वार्तालाप है ।

 जातक में बुद्ध के पू र्व जन् म की कथाओं का वर्णन है ।



          बोद्ध धर्म-- विशिष्ट  तथ्य

 महायान शाखा के अंतर्गत बुद्ध की पहली मूर्ति बनी तथा बुद्ध को इश्वर के रूप में पू जने की परंपरा यही ं से शुरू हुई।

 महायान शाखा के अंतर्गत स्वर्ग-नरक की अवधारणा है ।

 बोधिसत्व की अवधारणा का विकास महायान शाखा से हुआ
कुल चार बोधिसत्व वर्णित है
मंजूश्री ,वज्रपाणी , पद्मपाणि  और मैत्रेय ।

 बंगाल के समय शासक शशांक ने बोधि वृक्ष को कटवा दिया।

 कनिष्ठ , हर्षवर्धन महायान शाखा के पोषक  शासक थे

 महायान शाखा के अंतर्गत शून् यवाद एवं विज्ञानवाद शामिल है ।

 वैभाषिक और सौत्रान् तिक ही नयान के दो भाग है।
 



        कुछ अन्य संप्रदाय

आजीवक-- मक्खाली घोषाल
 नित्यवादी-- पकुघ कच्यायन
 सन्देहवादी-- संजय वेलठपुत्र
 सत्यवादी --पूरण कश्यप
 भौतिकवादी --अजीत केशकाम्बलिन





                वैष्णव धर्म ( भागवत धर्म  )

 वैष्णव धर्म का केंद्र बिंदु भागवत या विष्णु की पूजा है ।

 महाभारत में ही   विष्णु ही कृष्ण वासुदेव कहलाए कृष्ण  वृष्णि कबीले से संबंधित थे ।

 वैष्णव संप्रदाय ने अवतारवाद का उपदेश दिया है
 और इतिहास को विष्णु के 10 अवतारों के चक्र के रूप में प्रतिपादित किया है।

 विष्णु के 10 अवतार हैं मत्स्य , कूर्म,  वाराह, नरसिंह,  वामन ,  परशुराम , राम , बलराम, बुद्ध और कल्कि  ।

 कृष्ण का उल्लेख सर्वप्रथम छांदोग्य उपनिषद में मिलता है।

 विष्णु धर्म का सर्वाधिक विकास गुप्त काल में हु। ।

 यह धर्म परम उदार था इसलिए इसने विदेशियों को भी अपनी ओर खींच लिया ।





                 शैव धर्म
शैव  धर्म के लोग भगवान शिव की उपासना करते हैं ।

 मत्स्यपुराण में लिंग पूजा का पहला सपष्ट वर्णन मिलता है ।

कापालिक संप्रदाय के इष्टदेव भैरव थे ।

 कालामुख  संप्रदाय के लोगों को महाव्रतधर कहा जाता है ।
 लिंगायत को जंगम या वीरशैव संप्रदाय भी कहा जाता है इस संप्रदाय के प्रवर्तक अल्लभ प्रभु और उनके शिष्य वह वासव  थे  ।

 पाशुपत संप्रदाय के संस्थापक लकुलीश थे  ।

अथर्ववेद में शिव को शर्व , भव , पशुपति तथा भूपति कहा गया है ।

 नयनार   संतों ने दक्षिण भारत में शैव धर्म का प्रचार प्रसार किया  ।
नाथ संप्रदाय की स्थापना मत्स्येंद्र नाथ ने की थी इसके प्रमुख प्रचारक बाबा गोरखनाथ थे

Monday, 28 August 2017

जैन धर्म by bajrang Lal

 ईसा पूर्व छठी शताब्दी में मध्य एवं निम्न गंगा के मैदानों में 62 धार्मिक संप्रदाय का उदय हु आ ,  जिनमें जैन संप्रदाय और बौद्ध संप्रदाय सबसे महत्वपूर्ण थे ।


                        जैन धर्म



 इसके प्रवर्तक ऋषभदेव थे , ऋषभदेव एवं अरिष्टनेमि का उल्लेख ऋग्वेद में है ।

 जैन धर्म की उत्पत्ति जिन से हुई जिसका तात्पर्य है ,  विजेता ।

 तीर्थकर का तात्पर्य है जो व्यक्ति अन्य व्यक्तियों  को मार्ग दिखाएं ।

                       वर्धमान महावीर

 महावीर का जन्म 540 ईसा पूर्व कुण्डग्राम में हु आ ।

 महावीर के बचपन का नाम वर्घ्दमान था वे  ￶￰ज्ञातृक क्षत्रिय  वंश से संबंधित थे ।

 उनके पिता सिद्धार्थ , माता त्रिशला , पत्नी यशोदा तथा पुत्री अणोज्या / प्रियदर्शनी थी.।
 प्रियदर्शिनी का विवाह जमाली से हुआ ।

 महावीर ने 30  वर्ष की उम्र में अपने बड़े भाई नंदिवर्धन से आज्ञा लेकर गृह त्याग दिया ।
 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद उन्हें जम्भिक ग्राम के पास रिजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हु आ।
 वह 24वें  तीर्थकर थे ।


 महावीर का निधन 72 वर्ष की आयु   में 468 ईस। पूर्व पावापुरी  में मल्ल के शासक सुस्तपाल के राज्य  में हुआ।





       जैन धर्म के सिद्धांत

 जैन धर्म के पाँच ￶व्रत हैं ।

 1. अहिंसा 2.  सत्य   ३ . अस्तेय  4.  अपरिग्रह और.    5.  ब्रह्मचर्य  ।
 प्रथम चार का प्रतिपादन पार्श्वनाथ ने किया और ब्रम्हचर्य  का प्रतिपादन महावीर ने किया  ।


 ग्रहस्त जीवन में रहने वाले जैनियों     के लिए महाव्रत में कठोरता कम थी इसलिए इन्हें अणुव्रत कहा जाता था।




                           त्रिरत्न


 त्रिरत्न  के द्वारा मोक्ष प्राप्त किया  जा सकता था ।

 सम्यक ज्ञान   2.   सम्य क ध्यान  और. 3 .  सम्यक आचरण ।

 स्यादवाद--- जैन  धर्म के अनुसार सात न य होते हैं जिन्हें स्या दवाद कहते है । , इसे अनेकांतवाद और सप्तभंगी भी कहते है। ।


 सल्लेखना ---- निराहार और निर्जल रहकर प्राण त्या गना लिखना कहलाता है ।
 चंद्रगुप्त मौर्य ने इसी पद्धति से प्राण त्यागे  थे ।





 जैन  धर्म में देवताओं को स्वीकारा था परंतु उसका स्थान  जिन के नीचे रखा गया  ।


 महावीर के अनुसार पूर्व जन्म के अर्जित पुण्य या   पाप के अनुसार ही किसी का जन्म उच्च और निम्न  कुल   में होता है ।

   
             जैन  धर्म का प्रसार



 ज्ञान  प्राप्ति के बाद महावीर ने अपना पहला उपदेश राजगृह में विपुल पहाड़ी के पास दिया ।


 जमाली इन  के प्रथम शिष्य बने ।

और चंदना  (चम्पा  नरेश दधिवाहन  की पुत्री  ) प्रथम भिक्षुणी बनी ।


 महावीर के प्रधान  शिष्यों की संख्या 11 थी जिन्हें गणधर कहा जाता था ।

 महावीर ने प्राकृत  भाषा में धर्म का प्रचार किया त था जैन  धर्म के प्रचार के लिए पावापुरी में एक जैैन संघ की स्थापना की ।

 आनंद , सुरदेव  , कामदेव एवं  कुण्डकोलिय इनके प्रमुख शिष्य थे ।

 महावीर की मृत्यु के बाद सुधर्मन जैन संघ का अध्यक्ष बना ।





     जैन धर्म का विभाजन


 जैन ग्रंथ परिशिष्ट पर्वन   के अनुसार मगध में 12 वर्षों त क लंबा अकाल पड़ा ,  अतः बहुत  से जैन भद्रबाहु के नेतृत्व में श्रवणबेलगोला चले गए , शेष जैन लोग स्थूलभद्र के नेतृत्व में मगध  में ही रुक गए ।

 अकाल समाप्त  होने पर जब भद्रबाहु व उनके समर्थक मगध लौटे तो स्थानीय लोगों से उनका मत भेद हो गया ।,  उन्होंने पाया कि स्थानीय लोगों ने जैन धर्म का पालन नहीं किया है ।

 इस मत भेद को दूर करने के लिए पाटलिपुत्र में एक परिषद का आयोजन किया गया जिसका दक्षिण जैनों ने बहिष्कार किया ।


 तब से दक्षिणी जैन दिगंबर और मगध के जैन श्वेतांबर कहलाए ।




                      जैन साहित्य

 जैन साहित्य को आगम कहा जाता है ,   इसमें 12 अंग 12 , उपांग 10,  प्रकीर्ण   और 6  छेद सूत्र , 04 मूल सूत्र होते हैं ।

 जैन धर्म के ग्रंथ अर्धमागधी में लिखे गए ।

 भद्रबाहु नेे कल्पसूत्र को  संस्कृत  में लिखा ।

 प्रमेय कमलमार्तण्ड की रचना प्रभाचंद्र ने की .।





 जैन भिक्षुओं के आचार नियमों का उल्लेख आचारांग सूत्र में है ।

 परिशिष्ट पर्वन  की रचना हेमचंद्र ने की थी । 

Sunday, 27 August 2017

महाजनपद by bajrang Lal

                महाजनपद.  

  अंगुत्तर निकाय(बौध्द साहित्य  ) एवं भगवती सूत्र (जैन  साहित्य )  16 महाजनपद की जानकारी देते हैं ।


             (1)  काशी



 वर्तमान वाराणसी और उसका समीपवर्ती क्षेत्र काशी महाजनपद कहलाता था,  इसकी राजधानी वाराणसी थी जो वरुणा और अस्सी नदियों के बीच थी  ।



                 (2)  अंग


 इसके अंतर्गत भागलपुर एवं  मुंगेर के क्षेत्र आते हैं उसकी राजधानी चंपा थी ,  यहां का शासक ब्रह्मदत्त था बाद में बिंबिसार ने अंग को मगध में मिला लिया।
             

               (3). कोशल


 इसके अंतर्गत फैजाबाद ( उत्तर प्रदेश ) का क्षेत्र आता है इसकी राजधानी श्रावस्ती थी । ,  सरयू नदी इसे दो भागों में बांटती है उतरी कौशल ( राजधानी--साकेत)  और दक्षिणी कौशल  (  राजधानी-- श्रावस्ती ) । ,  यहां का प्रसिद्ध शासक  ￶प्रसेनजीत था ।

                      (4)    वज्जि


 8 राज्यों का संगठन है यह एक गणतंत्र महाजनपद था इसका एक प्रमुख संघ लिच्छवी था जिसकी राजधानी वैशाली थी ।

                   (5).   वत्स


 आधुनिक इलाहाबाद एवं कौशाम्बी जिला इसके अंतर्गत था , उसकी राजधानी कौशाम्बी थी ,  अवंती महाजनपद ने वत्स को अपने साम्राज्य में मिला लिया ।


                    (6)   मगध

 वर्तमान पटना एवं आसपास के जिलों में  तथा उसकी राजधानी गिरिव्रज थी ।  यहां सर्वप्रथम हर्यक वंश का शासन था ।


                        (7).     मल्ल





 यह भी एक गणतंत्र महाजनपद था जो आधुनिक गोरखपुर एवं देवरिया जिले में था  ,  कुशीनगर/ कुशावती यहां की राजधानी थी  ।


                   (8).        मत्स्य


 इसका विस्तार आधुनिक राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में था ,  उसकी राजधानी विराटनगर थी ।


                    (9).   कुरु

 वर्तमान हरियाणा , दिल्ली और मेरठ में था , इसकी राजधानी इंद्रप्रस्थ थी ।


                    (10)   चेदि


 वर्तमान बुंदेलखंड का क्षेत्र था उसकी राजधानी शक्तिमति थी ।


                    (11)   अस्मक


 यह दक्षिण भारत में स्थित एकमात्र महा जनपद था उसकी राजधानी पोतना या पोटिल थी ।


                     (12)   शूरसेन

यह वर्तमान उत्तर प्रदेश में था ,  मथुरा इसकी राजधानी थी ।
 मेगास्थनीज की इंडिका में शूरसेन का वर्णन किया है ।


                     (13)     अवंती

 इसमें वर्तमान मध्यप्रदेश और आसपास का क्षेत्र मालवा शामिल है।
 इसकी दो राजधानियां थी  , उत्तरी अवंती की राजधानी उज्जैन और दक्षिण भाग की महिष्मति
 शिशुनाग ने इसे मगध  में मिलाया था ।



                  (14)     पांचाल


  पांचाल के अंतर्गत रुहेलखंड के बरेली ,  बदायूं और फर्रुखाबाद शामिल था
 इसकी भी दो राजधानियां थी
 उत्तरी भाग की राजधानी अहिछत्र अर्थात बरेली और दक्षिण भाग की राजधानी काम्पिल्य थी ।



                   (15)    गांधार

 आधुनिक पाकिस्तान का रावलपिंडी और पेशावर गांधार के अंतर्गत आते थे। ,  इसकी राजधानी तक्षशिला थी ,  पाणिनि यहीं   के निवासी थे ।



                 (  16)     कम्बोज


यह भी पाकिस्तान में स्थित था जिसमें राजौड़ी और हजारा आते थे । ,  इसकी राजधानी हाटक या राजपुर थी ,  यह घोड़ो के लिए प्रसिद्ध था ।

महत्वपूर्ण  प्रश्न - उत्तर

 1. हर्यक वंश के किस शासक को कुणिक कहा जाता है ?
उत्तर --  अजातशत्रु ।

2.   किस शासक ने गंगा एवं सोन  नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र नामक नगर की स्थापना की  ? (48-52th Bpsc )
उत्तर --उदयिन ।

3.    किस शासक ने वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन करवाया ?
 उत्तर - कालाशोक ।

4.   323 ईसा पूर्व में सिकंदर की मृत्यु कहां हुई थी ? ( ssc mts 2002 )
 उत्तर -- बेबीलोन में ।

5.   सिकंदर एवम पोरस की सेना ने किस नदी के आमने-सामने वाले तटों पर पड़ाव डाला हुआ था ? ( ssc mts 2002 )
  उत्तर -- झेलम के ।

6.   किस प्रकार का मृदभांड भारत में द्वितीय नगरीकरण के प्रारंभ का प्रतीक माना गया है ( ssc mts 2002 )
 उत्तर -- उत्तरी काले पॉलिशकृत बर्तन ।

7.   पाली ग्रंथों में गांव के मुखिया को क्या कहा गया है ? ( RRB राँची TC 2004 )
  उत्तर -- भोजक/ग्राम भोजक ।

8.   उज्जैन का प्राचीन नाम था -- ( Mpsc 2003 )
 उत्तर --- अवंतिका ।

9.   नंद वंश का संस्थापक कौन था  ? ( RRBराँची tech. 2004 )
उत्तर -- महापद्मनंद ।

10.   ग्रीक/यूनानी लेखकों द्वारा किसे अग्रमीज/जैण्ड्रमीज  कहा गया ?
उत्तर --- घनानंद ।

11.  प्राचीन भारत में पहला विदेशी आक्रमण किनके द्वारा किया गया ?
 उत्तर --ईरानियों द्वारा ।

12.  प्राचीन भारत में दूसरा विदेशी आक्रमण एवं पहला यूरोपीय आक्रमण किनके द्वारा किया गया ?
उत्तर -- यूनानियों द्वारा ।

13.   हाइडेस्पीज  या वितस्ता का युद्ध किन-किन शासकों के बीच हुआ ?
उत्तर --  सिकंदर एवं पुरुष के मध्य ।

14.   सिकंदर ने भारत पर कब आक्रमण किया ?
 उत्तर -- 326 ईसा पूर्व ।

15.   मगध की प्रथम राजधानी कौन-सी थी ? ( Bpsc 2005 , 2010 )
उत्तर ---  गिरिव्रज राजगृह ।

16.   किस शासक द्वारा सर्वप्रथम पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया गया ? ( Bpsc 2004 )
 उत्तर --- उदयन द्वारा ।

17.   16 महाजनपदों की सूची उपलब्ध है - ( Bpsc 2004 )
 उत्तर --- अंगुत्तर निकाय भगवती सूत्र में ।

18.   मगध का कौन सा राजा सिकंदर महान का समकालीन था  ? ( Bpsc 2001 )
उत्तर --- घनानंद ।

19.  प्रथम मगध साम्राज्य का उत्कर्ष किस सदी में हुआ ? ( Bpsc 1998 )
 उत्तर -- छठी सदी ईसा पूर्व ।

20.   अभिलेख से पता चलता है कि नंद राजा के आदेश से एक नहर खोदी गई थी --  ( Upsc 1999)
 उत्तर ---  कलिंग से ।

21.    पहला ईरानी शासक जिसने भारत के कुछ भाग को अपने अधीन किया था ? ( RAS/RTS 1994-95 )
 उत्तर  --- डेरियस. ।

22.  मगध के राजा अजातशत्रु का सदैव किस गणराज्य के साथ युद्ध रहा ?
 उत्तर  -- वज्जि संघ ( वैशाली ) ।

23.   नंद वंश का अंतिम सम्राट कौन था ?
 उत्तर  --- घनानंद ।

24.   भारत में सिक्कों/मुद्रा का प्रचलन कब हुआ ?   उत्तर --- 600 ईसापूर्व में ।

25.   मगध सम्राट बिंबिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को किस राज्य के राजा की चिकित्सा के लिए भेजा था ?  उत्तर --- अवंति ।

26.
 किस शासक ने अवंति को जीतकर मगध का हिस्सा बना लिया ?
 उत्तर --- शिशुनाग ।

27.   किस सम्राट ने अंग का विलय अपने राज्य में कर लिया  ?
उत्तर --- बिंबिसार ।

28.   काशी और लिच्छवी का विलय मगध साम्राज्य में किसने किया  ?
उत्तर --- बिंबिसार ।

29.  सिकंदर के आक्रमण के समय  उत्तर भारत पर राजवंश का शासन था ? ( Upsc 2000 )
उत्तर --- नंद ।

30.  छठी ईसा पूर्व में भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली नगर कौनसा था ? ( Upsc 1999 )
 उत्तर --- मगध ।

31.   किसे सेनिया/श्रेणिक कहा जाता था ?
उत्तर ---- बिंबिसार ।

32.   किस शासक को उग्रसेन कहा जाता था ?
 उत्तर ---  महापद्मनंद ।

33.   महाजनपद काल में श्रेणियों के संचालक को क्या कहा जाता था ?
 उत्तर --- श्रेष्ठिन ।

34.   गृह पति का अर्थ है  --
उत्तर --- धनी किसान ।

35.   मगध के किस प्रारंभिक शासक ने राज्यरोहण के लिए अपने पिता की हत्या की एवं इसी कारण वश अपने पुत्र द्वारा मारा गया ? ( Upsc 2007 , 2011)
उत्तर --- अजातशत्रु ।

36.   विश्व का पहला गणतंत्र वैशाली में किसके द्वारा स्थापित किया गया ? ( Bpsc 2008 )
 उत्तर -- लिच्छवी ।

Saturday, 26 August 2017

मगध ￶￰साम्राज्य by bajrang Lal

 अथर्ववेद में मगध का सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है ।

 मगध साम्राज्य के अंतर्गत 3 वंश आते हैं 1 - हर्यक वंश  2- शिशुनाग वंश एवं 3- नंद वंश ।

                     हर्यक वंश


            बिंबिसार   (544-492 इसा पूर्व )

-- यह हर्यक वंश का संस्थापक था  तथा महात्मा बुद्ध का मित्र एवं संरक्षक था ।

  ￶￰राजगृह है या गिरिव्रज   उसकी राजधानी थी ।

 बिंबिसार को  श्रेणिक भी कहा जाता था ।

 उसने विजय एवं विस्तार के नीति शुरू की ।

 बिंबिसार ने वैवाहिक संबंधो ं से अपनी स्थिति मजबूत की । उसने तीन विवाह कि। ।
1- प्रथम पत्नी महाकौशल देवी कोशल राज की पुत्री एवं प्रसेनजीत की बहन थी । इस विवाह सेकसी दहेज में मिला ।

,2--  दूसरी पत्नी लिच्छवी की राजकुमारी चेलना थी जिसने अजातशत्रु को जन्म दिया ।

3-- तीसरी रानी ￶मद्र  कुल की राजकुमारी क्षमा थी ।

 इन विवाहों के फलस्वरुप मगध पश्चिम एवं उत्तर की ओर फैला ।

 बिंबिसार ने अंग के शासक ब्रह्मदत्त की हत्या करके उसे मगध में मिला लिया ।
 बिंबिसार ने अवंती नरेश चंड￶प्रद्योत से युद्ध किया किंतु अंत में दोनों दोस्त बन गए  जब प्रद्योत को पीलिया हुआ तो बिंबिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को उज्जैन भेजा ।

             अजातशत्रु   (492-460 ईसा पूर्व)

  अजाशत्रु अपने पिता बिंबिसार की हत्या करके शासक बना , उसे  कुणिक भी कहा जाता है ।

 उसने कौशल एवं वैशाली को पराजित कर मगध में मिलाया ।

 उसने वैशाली के युद्ध में महाशिलाकंटक एवं           रथमूसल जैसे हत्यारों का प्रयोग किया ।

 अवंती के खतरे का सामना करने के लिए अजातशत्रु ने राजगीर की किलेबंदी करवाई ।

 प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन अजातशत्रु के काल में हुआ था ।


               उदयिन. (460-444  इसा पूर्व )


 उदयन ने पाटलिपुत्र को मगध की राजधानी बनाया ।

 उसने पटना में गंगा और सोन के संगम पर एक किला बनवाया ।

 इस वंश का अंतिम शासक नाग दशक था ।


        शिशुनाग वंश (  412 -345 ईसा पूर्व)

  शिशुनाग (412 -- 394 ईसा पूर्व )

 




 शिशुनाग जो नागदशक का अमर्त्य था उसने नाग दशक को अपदस्थ कर शिशुनाग वंश की स्थापना की।



 उसने वै शाली को राजधानी बनाया।

 शिशुनाग ने अवंती को मगध में मिलाया ।

         
             कालाशोक ( 394 366 ईसा पूर्व )

 इसने पुनः पाटलिपुत्र को मगध की राजधानी बनाया ।

 द्वितीय बौद्ध संगीति कालाशोक के काल में आयोजित हुई थी ।

 नंदिवर्धन इस वंश का अंतिम शासक था ।

               नन्द  वंश--  ( 344 322 ईसा पूर्व)


          महापद्मनंद ---(344 334 ईसा पूर्व)

 यह नंद वंश का संस्थापक था ।

 इसने कलिंग को मगध में मिलाया और विजय के रूप में कलिंग से जिन की मूर्ति उठा लाया ।

 उसने अपने को एकराट कहा ।

                   घनन्द


 यह इस वंश का अंतिम शासक था यह सिकंदर का समकालीन था ।

 चंद्रगुप्त मौर्य ने घननंद को पराजित कर मौर्य वंश की स्थापना की।


          सिकंदर का आक्रमण


 सिकंदर मकदूनिया के शासक फिलिप द्वितीय का पुत्र था और अरस्तू का शिष्य था ।

 वह 326 ईसा पूर्व में खैबर दर्रा पार करके भारत आया।

 तक्षशिला में शासक आंभि ने सिकंदर के सामने घुटने टेक दिए ।

 हाईडेस्पीज का युद्ध---  झेलम नदी के किनारे सिकंदर को पोरस का सामना करना पड़ा,  सिकंदर ने पोरस को पराजित कर दिया मगर उसके साहस  से प्रभावित होकर उसका राज्य वापस कर दिया  तथा पोरस सिकंदर का सहयोगी बन गया ।

 सिकंदर की सेना ने व्यास नदी से आगे बढ़ने से इंकार कर दिया ।

 भारत में 19 महीने रहने के बाद 323 ईसा पूर्व में बेबीलोन में मृत्यु हो गई ।


 खबर लेने आया  , लड़ाई झेलनी पड़ी  , ब्याह में रुका और बेबी के चक्कर में मर गया ।

 सेल्यूकस  सिकंदर का सेनापति था

निर्याकस  का सिकंदर का जल सेनापति था

सिकंदर ने निर्याकस के नेतृत्व में सिंधु नदी के मुहाने से फरात नदी के मुहाने तक समुद्र तट का पता लगाने के लिए भेजा था।


 एरिया एक यूनानी इतिहासकार था

सम्पूर्ण मौर्य साम्रज्य by bajrang Lal

मौर्य साम्रज्य

कौटिल्य का अर्थशास्त्र मौर्य वंश के राजव्यवस्था  की जानकारी  देता है । यह 15 अधिकरणों  में विभाजित है । इस ग्रन्थ  की तुलना  मैकियावेली के प्रिंस से की जाती है ।
मुद्राराक्षस की रचना विशाखदत्त ने की थी जो नन्द वंश के पतन और मौर्य वंश के उत्थान  की जानकारी देता है ।
इंडिका की रचना मेगास्थनीज  ने की थी जो मौर्यकाल के प्रशासन  , समाज और अर्थव्यवस्था  पर प्रकाश  डालता  है ।
युनानी  लेखक जस्टिन के अनुसार चन्द्रगुप्त ने पुरे भारत पर विजय प
प्राप्त की ।

जूनागढ़  अभिलेख  के अनुसार मौर्यकाल में सुदर्सन झील  का निर्माण  पुष्यगुप्त  वैश्य  ने गुजरात के सौराष्ट्र प्रान्त  की सिंचाई  के लिए करावाया ।
अशोक के अभलेख    ब्राह्मी , खरोष्ठी  , अरमाइक एवं ग्रीक  लिपियों  में मिलते  हैं ।
अशोक के सर्वाधिक  अभिलेख   प्राकृत भाषा  में मिलते हैं ।
अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम   पढ़ने वाला  विदेशी  जेम्स  प्रिंसेप  (1837)  था ।
भाब्रू  अभिलेख में अशोक ने स्वयं को सम्राट  कहा है ।
अशोक के 13 शिलालेख में कलिंग के युद्ध का वर्णन मिलता है।

अशोक के स्तंभलेख उनकी संख्या सात है।  यह 6 स्थानों से प्राप्त हुए हैं यह स्थान है रामपुरवा, दिल्ली, मेरठ ,नंदगढ़ ,अरेराज और कौशांबी ।


मौर्यों की उत्पत्ति
चंद्रगुप्त मौर्य की जाति और उसका वंश विवाद का विषय है।  उसके वंश से संबंधित विभिन्न मत हैं।

ब्राह्मण परंपरा के अनुसार शूद्र--  मुरा  नामक स्त्री से उत्पन्न
महावंश के अनुसार-  क्षत्रिय
परिशिष्ट पर्वन-  मोरपालक का पुत्र
मुद्राराक्षस-     ￰वृषल जो  संबंधित है शूद्र से
राजपूताना गजेटियर- राजपूत

राजनीतिक इतिहास

चंद्रगुप्त मौर्य:( 322-  298 ईसा पूर्व)

305 ईसा पूर्व में चाणक्य की सहायता से चंद्रगुप्त मौर्य ने पंजाब प्रांत के यूनानी शासक यूरेनस एवं सिकंदर के उत्तराधिकारी सेल्युकस को पराजित किया। ।


संघर्ष के बाद हुई संधि की शर्तों के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य को-  हेरात, कंधार ,काबुल  एवं बलूचिस्तान के प्रदेश प्राप्त हुए । चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिए ।

सेल्यूकस की पुत्री हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से हुआ सेल्यूकस ने मेगास्थनीज को अपना दूत बनाकर चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा जहां उसने इंण्डिका की रचना की।

गुप्त मौर्य के काल में स्थूललभद्र के नेतृत्व में  पाटलिपुत्र में पहली जैन संगीति हुई ।

अपने जीवन के अंतिम समय में चंद्रगुप्त मौर्य  जैन सन्यासी भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला अर्थात कर्नाटक चला गया  जहां उसने चंद्र गिरी पर्वत पर चंद्रगुप्त बस्ती बसाई और सल्लेखना पद्धति से अपने प्राण त्याग दिए ।


मेगास्थनीज

अपने पाटलीपुत्र को पोली अमरोहा कहां है ।
उसके अनुसार भारतीय शिव और कृष्ण की पूजा करते थे ।

मेगस्थनीज कोटिल्य का वर्णन नहीं किया है।


चाणक्य/   कोटिल्य या विष्णुगुप्त

इनके पिता चमक थे ।

चाणक्य को भारत का मैकियावेली भी कहा जाता है।
कोटिल्य ने युद्ध के मामले में नैतिकता को   गौण माना है।

बिंन्दुसार


चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बिन्दुसार   गद्दी पर बैठा ।

बिंदुसार को अमित्रघात के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है--- शत्रुओं का नाश करने  वाला ।

वह आजीवक संप्रदाय का अनुयायी  था ।

दिव्यावदान के अनुसार बिंदुसार के शासनकाल में तक्षशिला में दो विद्रोह हुए,  जिसे शांत करने  के लिए उसने  अशोक व सुसीम को भेजा ।

स्ट्रैबो के अनुसार बिंदुसार के दरबार में सीरियल शासक एण्टियोकसन  प्रथम ने  डायमेकस को अपना दूत बनाकर भेजा ,  जिसे मेगास्थनीज का  उत्तराधिका री मा जाता है ।

टॉलेमी द्वितीय ने डायोनिसियस के  अपना दूत बनाकर बिंदुसार के दरबार में भेजा ।

एथिनियस  के  अनुसार बिंदुसार ने एण्टियोक स  से मदिरा , सूखे अंजीर एवं एक  दार्शनिक  भेजने का अनुरोध का किया था ।

प्रारंभ में चाणक्य बिंदुसार का प्रधानमंत्री था,  परंतु बाद में  खल्लाटक  प्रधानमंत्री बना ।

तिब्बती लामा तारानाथ ने बिंदुसार को 16 राज्यों का विजेता कहा था ।

अशोक ( 273-232 इसा पूर्व )


बिंदुसार की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अशोक  शासक  बना,  जो मौर्य राजाओं में सबसे महान हुआ ।


अशोक  की माता सुभद्रांगी चंपा के एक  ब्राह्मण की पुत्री थी ।

शासक  बनने से पहले अशोक   तक्षशिला   एवं अवंतिक का गवर्नर रह चुका था ।
शासक  बनने से पहले वह उज्जैन का गवर्नर था ।

असंधिमित्रा और कारुवाकी अशोक  की   पत्नियां थी ।

अशोक  के  अभिलेखों में कारुवाकी एवं उसके पुत्र तीवर का उल्लेख  किया गया है।

बोद्ध ग्रंथ दिव्यावदान के  अनुसार पद्मावती अशोक  की एक  अन्य पत्नी थी ।

नागदेवी अशोक  की एक  अन्य पत्नी थी, जिससे  उत्पन्न पुत्र और पुत्री थे--  महेंद्र एवं संघमित्रा ।

अशोक  के  अभिलेखों में उसे देवाना़ंपिय और पियदसी कहा गया है  ।




कल्हण की राजतरंगिणी  के अनुसार अशोक ने श्रीनगर की स्थापना की थी।
अशोक ने 261 ईसा पूर्व में  कलिं ग का युद्ध जीत लिया ।

 खारवेल के हाथीगुंफा अभिलेख के अनुसार नं दराज इस समय कलिं ग का शासक था ।

 इस युद्ध के बाद अशोक ने धम्म घोष अपना लिया ।

 युद्ध के पश्चात अशोक  ￶￰न्यग्रोध के प्रवचन सुनकर बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुआ ।

 उपगुप्त ने अशोक को बौद्ध धर्म में  दीक्षित किया ।

 अशोक बौद्ध धर्म की स्थाविर  शाखा का अनुयाई था


 अशोक ने श्रीलं का में  अपने पुत्र महें द्र और पुत्री सं घमित्रा को प्रचार के लिए भेजा ।

 पां चवें  शिलालेख के अनुसार उसने धर्म प्रचार के लिए धम्म महामात्रों  की नियुक्ति की ।

 अशोक ने आजजीवकों   के लिए  बराबर की पहाड़ियों  में  गुफाओं  का निर्माण भी करवाया ।

 अशोक के शासनकाल में  तृतीय बौद्ध सं गीति का आयोजन पाटलिपुत्र में  हुआ ।

 यूरोपियन लेखक अशोक की तुलना रोमन सम्राट  कान्स्टेनटाइन से करते हैं  ।


                दशरथ

 दशरथ अशोक का पुत्र था ।

 दशरथ के शासनकाल में  गया में  स्थित नागार्जुन पहाड़ियों  पर आजीवकों   लिए तीन गुफाएं  बनाई गई ।

 दशरथ ने भी अशोक की भांति देवानांप्रिय  की उपाधि ग्रहण की ।

             

                  वृहद्रथ



 यह अंतिम मौर्य शासक था ।

 इसकी हत्या एक ब्राह्मण मौर्य सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी और शुंग वंश की स्थापना की।

 मौर्य काल की मुद्रा पण थी ।

 अर्थ शास्त्र के अनुसार पुराणों की संख्या 18 है ।

 पण्याध्यक्ष--  यह वाणिज्य व्यापार का अधिकारी होता था ।

 सीताध्यक्ष--  यह कृषि विभाग का अधिकारी होता था

  ￶अक्षपटलिक--  यह महालेखाकार था ।

पौतवाध्यक्ष  --  माप तौल  का अधिकारी ।

रक्षिन  --  पुलिस अधिकारी ।

 चंद्रगुप्त मौर्य के समय चार प्रांत थे परंतु अशोक के शासन में पांच प्रांत हो गए ।

 प्रांत का प्रशासक कुमारी आर्यपुत्र था , विषय का मुखिया विषयपति ,   ग्राम का प्रधान ग्रामीण और 10 ग्रामों का प्रधान ग्रामीण कहलाता था ।

 मेगास्थनीज के अनुसार नगर प्रशासन के लिए छह समितियां थी प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे ।

 ￶महामात्याप्रसर्प --  यह गुप्तचर विभाग का प्रधान होता था ।


 गूढपुरुष --  अर्थशास्त्र में गुप्तचर को गूढपुरुष कहा जाता  था ।

 संस्था -- एक जगह से होकर गुप्तचरी करने वाला ।

 संचरा-- घूम-घूमकर गुप्तचरी करने वाला ।

 नियोग प्रथा --  स्त्री का अपने देवर के साथ रहना ।

 अनीष्कासीनी -- वह स्त्री जो घर के बाहर नहीं निकलती थी ।

 रूपजीवा -- स्वतंत्र रूप से  वेश्यावर्ती वेश्यावर्ति  अपनाने वाली महिला ।

अदेवमातृका --  अर्थशास्त्र में अच्छी मिट्टी को अदेवमातृका   गया है ।

 अर्थशास्त्र के अनुसार दो प्रकार की भूमि थी -  राजकीय एवं निजी ।

 भाग्य --  कृषि की आय पर राज्य द्वारा  लिया जाने वाला कर. ।

 श्रेणी -- उद्योग की संस्थाएं श्रेणी कहलाती थी ।


 ब्याज को रुपिका एवं परीक्षण कहा जाता था।ज


 राजाप्रसाद --चंद्रगुप्त मौर्य का राजाप्रसाद लकड़ी का बना था  पटना में 80 स्तंभ वाले राजाप्रसाद के अवशेष मिले हैं ।

 अशोक के स्तंभ के निर्माण में चुनार के बलुआ पत्थर का उपयोग हुआ है ।

 इन स्तंभों का निर्माण धर्म के प्रचार के लिए किया गया था ।

 स्तूपों  का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है ।

 सांची का स्तूप पर भरहुत  स्तंभ तथा सारनाथ स्थित धर्मराजिका स्तूप का निर्माण अशोक ने करवाया था ।

 स्तूपों   का निर्माण ईंटों से किया जाता था ।



              मोर्य काल के विशिष्ट तथ्य





 मौर्य वंश का राजकीय चिन्ह मयूर था ।

 आम जनता की भाषा पाली थी ।

 शिक्षा का प्रसिद्ध केंद्र तक्षशिला था ।


 मोगली पुत्र तिस्स  ने  कथावत्थु की रचना की ।

 नंद वंश के विनाश में चंद्रगुप्त ने कश्मीर के राजा प्रवर्तक की सहायता ली थी ।

 अशोक ने तक्षशिला में विद्रोह के दमन के लिए कुणाल को भेजा था ।

 अशोक के समय बुद्ध की मूर्ति पूजा का उल्लेख नहीं मिलता है ।

Indian rivers part1

1. वह कौन सी नदी है जो एक भ्रश घाटी से होकर बहती है? गोदावरी नर्मदा कृष्णा महानदी 2. प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी नदी कौन सी है? ...