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Wednesday, 30 August 2017

वैदिक काल by bajrang Lal

वैदिक काल

 ब्राह्मण साहित्य में वेद सबसे पुराना है ,
 वेद का शाब्दिक अर्थ है जानना
 वैदिक संस्कृति के संस्थापक आर्य थे ।

 वेदों को श्रुति भी कहा जाता है  ।

संपूर्ण वैदिक साहित्य को दो भागों में बांटा गया है ,  श्रुति साहित्य तथा स्मृति साहित्य

(1).  श्रुति साहित्य में वेद  , ब्राह्मण  , आरण्यक और उपनिषद आते हैं ।

(2).  स्मृति साहित्य में वेदांग ,  सूत्र और ग्रंथ शामिल है ।

वेदों का संकलन कृष्ण द्वैपायन व्यास ने किया था इसलिए वह वेदव्यासकहलाए ।

 वेद चार प्रकार के है ऋग्वेद  , सामवेद ,  यजुर्वेद एवं  अथर्ववेद  ।

              ऋग्वेद

ऋग्वेद में कुल 10 मंडल , 1028 सूक्त एवं 10462 मंत्र हैं ।

 ऋग्वेद में के मंत्रों का उच्चारण होतृ  या होता से किया जाता है ।

 कृषि संबंधित जानकारी चौथे मंडल से प्राप्त होती है ।

 गायत्री मंत्र का उल्लेख तीसरे मंडल में है ।


 7वां मंडल वरुण को एवं नवाँ  मंडल सोम को समर्पित है ।

 विदुषी महिलाएं-- लोपामुद्रा ,  सिक्ता   , अपाला , घोषा  आदि ।
 ऋग्वेद में इन महिलाओं को ब्रह्मवादिनी कहा गया है ।

 दसवें मंडल के पुरुषसूक्त में चारों वर्ण पुरोहित  , राजन्य ,  वैश्य तथा  शूद्र का वर्णन है ।

 एतरेय  एवं कोषितकी  ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ हैं ।

 ऐतरेय ब्राह्मण में जनपद एवं राजसूय यज्ञ का उल्लेख मिलता है ।

 ऋग्वेद में यमुना का उल्लेख तीन बार एवं गंगा का उल्लेख एक बार है ।

 इस वेद में सोमरस का वर्णन सर्वाधिक हुआ है  , इंद्र को पुरंदर कहा गया है ।

 आयुर्वेद , ऋग्वेद काउपवेद है ।


                    सामवेद

 सामवेद गायी  जाने वाली ऋचाओं  का संकलन है जिनके पुरोहित उद्गाता कहलाते थे ।

 सामवेद से ही सर्वप्रथम सात  स्वरों   की जानकारी प्राप्त होती है  , इसलिए इसे भारतीय संगीत  का जनक माना जाता है  ।

गंधर्व वेद सामवेद का उपवेद है।

 सामवेद में कुल मंत्र की संख्या 1549 हैं।

 पंचवीश  पांडे सामवेद के ब्राह्मण ग्रंथ हैं ।


          यजुर्वेद

 यजुर्वेद में अनुष्ठानों ,  कर्मकांड और  ￶यज्ञ संबंधी  मंत्रों का संकलन है  ,उनके पुरोहित को अध्वर्य कहते  थे ।

 यह गद्य एवं पद्य दोनों में रचित है ,  एवं इसके दो भाग हैं (1)  कृष्ण यजुर्वेद (गद्य ) (2) शुक्ल यजुर्वेद ( ￰पद्य )


 कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ तैतरीय ब्राह्मण तथा शुक्ल यजुर्वेद का शतपथ  है ।

यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है।

शतपथ में कृषि एवं सिंचाई का उल्लेख मिलता  है।


                  अथर्ववेद

इसकी रचना अथर्वा ने की थी ।


अथर्ववेद के ￶￰मंत्र रोग नाशक , जादू  -  टोना  , विवाह  गीत  आदि से सम्बधित हैं।


इसका उपवेद अर्थवेद है।

अथर्ववेद का कोई आरण्यक  ￶ग्रंथ नहीं है।

इसमें सबसे  पहले गोत्र   शब्द का उल्लेख मिलता  है।

इनके  पुरोहित  को ब्रह्मा  कहते  हैं ।

इसी  वेद में सभा  , समिति  को प्रजापति  की दो पुत्रियां  कहा गया है ।
चांदं एवं गन्ने  का सर्वप्रथम  उल्लेख  अथर्वेद  में ही मिलता  है ।



              आरण्य

ऋषियों  द्वारा जंगलों  में की जाने  वाली  रचनाओं   को आरण्यक  कहते  हैं ।

ये  दार्शनिक  रहस्यों  से परिपूर्ण  हैं ।

इनकी  संख्या  सात  है ।




               उपनिषद

उपनिषद  वेदों  का अंतिम  भाग है , इसलिए  इन्हे  वेदांत  भी कहते हैं  ।

उपनिषदों  की कुल  संख्या 108 है जिनमे  11 महत्वपूर्ण  है ।

￶मुण्डकोपनिषद से सत्यमेव  जयते  शब्द  लिया गया है ।

इषोपनिषद  में गीता  का निष्काम  कर्म  का पहला  विवरण  मिलता है ।

नचिकेता  यम  का संवाद  कठोपनिषद  में है ।

वृहदारण्यक उपनिषद में ही पुनर्जन्म  का सिदांत एवं यञवल्क्य  गार्गी  संवाद का वर्णन  है ।

श्वेताश्वर  उपनिषद में सर्वप्रथम भक्ति  शब्द का उल्लेख मिलता है ।

वेदांग वैदिक

 मूल ग्रंथ का अर्थ समझने के लिए वेदांगों की जरूरत होती है ।


 यह वेदांग है  -- शिक्षा  , कल्प  , व्याकरण ,  निरुक्त ,  छंद और ज्योतिष ।


                स्मृति ग्रंथ

 स्मृति ग्रंथ के अंतर्गत स्मृति ,  धर्मशास्त्र  एवं पुराण आते हैं ।

 यह हिंदू धर्म के कानूनी ग्रंथ भी कहे जाते हैं ।

 मनुस्मृति सबसे प्राचीन स्मृति ग्रंथ है  ।

 मेधातिथि , गोविंदराज ,भरुची एवं कल्लुक भट्ट मनुसमृति पर टिका लिखने वाले विद्वान है ं ।

 याज्ञवल्क्यस्मृति  -- इसके भाष्यकार है ं विज्ञानेश्वर , अपरार्क , विश्वरुप ।

 महाभारत के रचयिता व्यास जी है ं , इसका नाम जय सहिंता था । इसमें 1,00,000 श्लोक है ं।


 रामायण की रचना वाल्मीकि ने की थी ,इसमें 24,000 श्लोक है ं।



             पुराण

 पुराणों की संख्या 18 है ।

 उनका संकलन गुप्त काल में हुआ , तथा इनमें एतिहासिक वंशावलियां मिलती है  ।

 मत्स्य , वायु , विष्णु , शिव , ब्रह्मांड,  भागवत कुछ महत्वपूर्ण पुराण है  ।

 विष्णु के 10 अवतारों का विवरण मत्स्य पुराण से  प्राप्त होता  है  यह सबसे प्राचीन पुराण है  ।

 

                   सूत्र

सूत्र प्रमुख चार प्रकार के है ं ---

 गृह सूत्र -- इसमें जातकर्म , नामकरण , उपनयन , विवाह ,  श्राद्ध , घरेलू या पारिवारिक अनुष्ठानों का विधि-विधान दिया गया है  ।


 श्रोतसूत्र  -- इसमें राजा के द्वारा अनुष्ठेय  सा र्वजनिक यज्ञों  के विधिविधान दिए गए है ं ।

 धर्मसूत्र -- इसमें धर्म संबंधी विभिन्न क्रियाओं का वर्णन है  ।

 शुल्वसूत्र--- इसमे ज्यामिति  एवं गणित का अध्ययन होता  है  ।




 व पद्य  को  रिचा , गद्य   को यजुष  और गेय   पद को सा म कहते हैं।

 व्याकरणाचार्य पाणिनि के अनुसार ऋग्वेद की 21 शाखाएं हैा ।

 मत्स्य पुराण में सातवाहन , विष्णु पुराण में मौर्य वंश और वायु पुराण में गुप्त वंश का वर्णन है ।

 ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद को वेदत्रयी   कहते हैं ।

 ब्रह्मसूत्र  , भागवतगीता एवं उपनिष्द को प्रस्थान त्रयी कहते हैं ।



 आर्यों का मूल स्थान मध्य एशिया था ।

 उत्तर में हिमालय
 दक्षिण में यमुना नदी के समानांतर
 पूर्व में यमुना नदी
और पश्चिम में अफगानिस्तान तक विस्तार था

              प्राचीन नदियों के नाम

सिंधु  -------------सिंधु
अस्किनी---------- चिनाब
शतु द्री ------------ सतलज
विपाशा ------------- व्यास
वितस्ता ------------ झेलम
 सरस्वती -------घग्घर
परुष्णी -------- रावी


            अफगानिस्तान की नदियां

 कुभा -----  काबुल.
स्वास्तु  -----स्वात
 ￶क्रुमु --------- कुर्रम
 गोमती----- गोमल

 आर्यों की सबसे प्रमुख नदी सिंधु नदी थी ।

 रिग वैदिक काल की सर्वश्रेष्ठ नदी सरस्वती नदी थी ।

 गंडक को सदानीरा के नाम से जाना जाता है ।

 ऋग्वेद में मरुस्थल के लिए धन्व   शब्द प्रयोग किया गया है ।

 परंपरा अनुसार आर्यों के पांच कबीले थे जिन्हें पंचतंर कहा जाता था ।

 भारतवंश  एवं 10 राजाओं के बीच परुष्णी  नदी के तट पर दसराज्ञ युद्ध हुआ ।

  ऋगवैदिक काल में यव अर्थात जौ प्रमुख फसल थी।


 रिग वैदिक काल में पशुपालन  मुख्यता एवं कृषि कम था ।

 इस काल में गाय का अत्यंत महत्व था ।

 अयस शब्द का प्रयोग तांबे या कांसे के अर्थ में होता था ।


ऋग्वैदिक काल में आर्यों का प्रशासन तंत्र  कबीले के प्रधान द्वारा संचालित होता था ,  जिसे राजन् कहा कहा  जाता था ।



 ऋग्वेद में वर्णित बलि राजा को दिया जाने वाला  स्वैच्छिक  कर था ।

 इस काल में वरिष्ठ एवं विश्वामित्र दो महान पुरोहित हुए ।



 वैदिक ग्रंथों में कुल 33 देवताओं का उल्लेख है ।

ऋग्वेद में इंद्र देव सबसे प्रथम,  अग्नि द्वितीय , और वरुण तृतीय है ।

 सोम -------- वनस्पति के देवता
मरूत---------आंधी के देवता
उषा --------------प्रगति और उत्थान की देवी
 पूषण -----------पशुओं के देवता
अरण्यानी----------- जंगल की देवी
द्यौ  ---------- आकाश का देवता




     

               उत्तर वैदिक काल

 आर्यों का भौगोलिक विस्तार उत्तर में हिमालय  , दक्षिण में विंध्याचल पर्वतमाला ,  पश्चिम में अफगानिस्तान  , और पूर्व में उत्तरी बिहार तक था ।

 वर्ण व्यवस्था का आधार कर्म से बदलकर जन्म हो गया ।

 ब्रह्मचर्य ,  गृहस्थ ,  वानप्रस्थ और संन्यास का सर्वप्रथम उल्लेख जाबलोपनिषद में मिलता है ।

 शतपथ ब्राह्मण में पत्नी को अर्धांगिनी कहा गया है ।


 विदुषी महिलाएं -- मैत्रेयी , गार्गी ,  सलवा , वणवा, काव्यायनी  ।

 उत्तर वैदिक काल में आर्यों की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि था ।

 इस काल में व्रीहि (चावल ) ,माष( उड़द ) ,यव (जौ) , गोधूम( गेहूं )आदि का उत्पादन होने लगा ।

 उत्तर वैदिकाल में लोहे की जानकारी हुई ।

 इस गांव के लोग चार प्रकार के मृदभांडों  से परिचित थे ।

 काला। व लाल , काली पोलिशदार , चित्रित धूसर और लाल मृदभांड ।

 सर्वाधिक लोहा औजार अंतरजीखेड़ा से प्राप्त हुए हैं ।

 उत्तर वैदिक काल में उत्तर का राजा विराट कहलाता था ,  दक्षिण का भोज  , पूर्व का सम्राट और पश्चिम का स्वराज ,  एवं मध्य का शासक राजा कहलाता था ।




 राजा का पद  अनुवांशिक बन गया।


 राजसूय यज्ञ --  राज्य अभिषेक के समय

 अश्वमेध यज्ञ ---- साम्राज्य विस्तार िए

वाजपेय  यज्ञ----  रथदौड़  दौड़ की आकांक्षा से ।




 उत्तर वैदिक काल में धर्म कर्मकांड आधारित हो गया ।


 इस काल के प्रमुख देवता प्रजापति (ब्रह्मा ) ,शिव (रुद्र) ,  नारायण (विष्णु) ,
 पुषन अब शूद्रों के देवता हो गए ।

 इस काल में गृहस्थों  के लिए पंचमहायज्ञ भी होने लगे।

 ब्रह्मयज्ञ  ,भूत यज्ञ , देवयज्ञ , पितृयज्ञ  एवं अतिथियज्ञ ।

 इस काल में ही षड्दर्शन का उदय हुआ ।


सांखय ------ कपिल मुनि
 योग ---- पतंजलि
न्याय------ गौतम ऋषि
 वैशेषिक----- कणाद मुनि
 पूर्व मीमांसा  ----- जैमिनी
उत्तर मीमांसा ------- वादरायण



   


                 सोलह  संस्कार

 गर्भाधान,  पुंसवन , सीमंतोन्नयन , जातकर्म , नामकरण  ,निष्क्रमण , अन्नप्रासन, चूड़ाकर्म , कर्णछेदन , विद्यारंभल, उपनयन , विद्यारंभ , केशांत समावर् तन , विवाह एवं अंत्येष्टि ।

 उपनयन संस्कार एक महत्वपूर्ण संस्कार था  , जो शूद्रों को छोड़कर शेष तीनों वर्णों के लिए था ।

 ब्राह्मण  , क्षत्रिय , वैश्य के बच्चों का उपनयन संस्कार  ￶क्रमशः   8 वर्ष  ,11 वर्ष तथा 12 वर्ष की अवस्था में होता था  ,यह बालक संस्कार के बाद द्विज कहलाते थे।





             विवाह

 अनुलोम विवाह -- इसमें पुरुष वर्ण का तथा महिला निम्न  वर्ण की होती थी ।

 प्रतिलोम विवाह -- इसमें पुरुष निम्न वर्ण का तथा  महिला  उच्च वर्ण की होती थी ।

 गृह सूत्रों के अनुसार आठ प्रकार के विवाह होते है

(1)  ब्रह्म विवाह ---- यह सबसे प्रचलि त एवं उत्तम विवाह था ।

 (2) दैव विवाह --- यज्ञ करने वाले ब्राह्मण से पुत्री का विवाह कि या जाता थै ।

(3)  आर्य विवाह --कन्या का पिता  वर से गाय लेकर कन्या का विवाह कर देता था ।

(4) प्रजापति  विवाह --  इसमें कन्या का पिता वर को  वचन देता था ।

(5)  असुर विवाह --वर से मुल्य   लेकर कन्या को बेचा जाता था ।

(6) गंधर्व विवाह -- यह प्रेम विवाह था , जिसमें माता-पिता की अनुमति  नहीं ली जाती थी ।

(7) राक्षस विवाह ------ इसमें विवाह वधू का अपहरण किया जाता था  ।

(8)  पैशाच विवाह ----- यह जबरदस्ती किया जाने वाला विवाह था ।




 कृषि  संबंधित शब्दावली

लांगल  --  हल
वृक ------- बैल
उर्वरा ---जुते हुए खेत
सीता----हल से बनी नालि यां
अवट--- कूप  (कुआँ)
 पर्जन्य------ बादल
 अनस ---- बैलगाड़ी
 कीनाश ----- हलवाहा  ।


 असतो मा सद्गमय का सर्वप्रथम उल्लेख -- ऋग्वेद

 सबसे प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथ--- कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण

 सबसे प्राचीन उपनि षद --छान्दोग्य एवं वृहद्धारण्यक।

 भारत कबीले का सर्वप्रथम उल्लेख-- ऋग्वेद

उत्तर वैदि क काल का सर्वप्रमुख देवता  --- प्रजापति



 ऋग्वेदिकाल की सर्वाधिक स्तुत्य नदी ---- सिंधुनदी

 ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी ------- सरस्वती

 याज्ञवल्क्य गार्गी संवाद उल्लेखित है --- वृहदारण्यक  उपनिषद में

वैश्य शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग मिलता है  --वाजसनेयी सहिंता।

 श्वेताश्वतर उपनिषद् समर्पित है-----  रुद्र देवता को

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