वैदिक काल
ब्राह्मण साहित्य में वेद सबसे पुराना है ,
वेद का शाब्दिक अर्थ है जानना
वैदिक संस्कृति के संस्थापक आर्य थे ।
वेदों को श्रुति भी कहा जाता है ।
संपूर्ण वैदिक साहित्य को दो भागों में बांटा गया है , श्रुति साहित्य तथा स्मृति साहित्य
(1). श्रुति साहित्य में वेद , ब्राह्मण , आरण्यक और उपनिषद आते हैं ।
(2). स्मृति साहित्य में वेदांग , सूत्र और ग्रंथ शामिल है ।
वेदों का संकलन कृष्ण द्वैपायन व्यास ने किया था इसलिए वह वेदव्यासकहलाए ।
वेद चार प्रकार के है ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद एवं अथर्ववेद ।
ऋग्वेद
ऋग्वेद में कुल 10 मंडल , 1028 सूक्त एवं 10462 मंत्र हैं ।
ऋग्वेद में के मंत्रों का उच्चारण होतृ या होता से किया जाता है ।
कृषि संबंधित जानकारी चौथे मंडल से प्राप्त होती है ।
गायत्री मंत्र का उल्लेख तीसरे मंडल में है ।
7वां मंडल वरुण को एवं नवाँ मंडल सोम को समर्पित है ।
विदुषी महिलाएं-- लोपामुद्रा , सिक्ता , अपाला , घोषा आदि ।
ऋग्वेद में इन महिलाओं को ब्रह्मवादिनी कहा गया है ।
दसवें मंडल के पुरुषसूक्त में चारों वर्ण पुरोहित , राजन्य , वैश्य तथा शूद्र का वर्णन है ।
एतरेय एवं कोषितकी ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ हैं ।
ऐतरेय ब्राह्मण में जनपद एवं राजसूय यज्ञ का उल्लेख मिलता है ।
ऋग्वेद में यमुना का उल्लेख तीन बार एवं गंगा का उल्लेख एक बार है ।
इस वेद में सोमरस का वर्णन सर्वाधिक हुआ है , इंद्र को पुरंदर कहा गया है ।
आयुर्वेद , ऋग्वेद काउपवेद है ।
सामवेद
सामवेद गायी जाने वाली ऋचाओं का संकलन है जिनके पुरोहित उद्गाता कहलाते थे ।
सामवेद से ही सर्वप्रथम सात स्वरों की जानकारी प्राप्त होती है , इसलिए इसे भारतीय संगीत का जनक माना जाता है ।
गंधर्व वेद सामवेद का उपवेद है।
सामवेद में कुल मंत्र की संख्या 1549 हैं।
पंचवीश पांडे सामवेद के ब्राह्मण ग्रंथ हैं ।
यजुर्वेद
यजुर्वेद में अनुष्ठानों , कर्मकांड और यज्ञ संबंधी मंत्रों का संकलन है ,उनके पुरोहित को अध्वर्य कहते थे ।
यह गद्य एवं पद्य दोनों में रचित है , एवं इसके दो भाग हैं (1) कृष्ण यजुर्वेद (गद्य ) (2) शुक्ल यजुर्वेद ( पद्य )
कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ तैतरीय ब्राह्मण तथा शुक्ल यजुर्वेद का शतपथ है ।
यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है।
शतपथ में कृषि एवं सिंचाई का उल्लेख मिलता है।
अथर्ववेद
इसकी रचना अथर्वा ने की थी ।
अथर्ववेद के मंत्र रोग नाशक , जादू - टोना , विवाह गीत आदि से सम्बधित हैं।
इसका उपवेद अर्थवेद है।
अथर्ववेद का कोई आरण्यक ग्रंथ नहीं है।
इसमें सबसे पहले गोत्र शब्द का उल्लेख मिलता है।
इनके पुरोहित को ब्रह्मा कहते हैं ।
इसी वेद में सभा , समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है ।
चांदं एवं गन्ने का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्वेद में ही मिलता है ।
आरण्य
ऋषियों द्वारा जंगलों में की जाने वाली रचनाओं को आरण्यक कहते हैं ।
ये दार्शनिक रहस्यों से परिपूर्ण हैं ।
इनकी संख्या सात है ।
उपनिषद
उपनिषद वेदों का अंतिम भाग है , इसलिए इन्हे वेदांत भी कहते हैं ।
उपनिषदों की कुल संख्या 108 है जिनमे 11 महत्वपूर्ण है ।
मुण्डकोपनिषद से सत्यमेव जयते शब्द लिया गया है ।
इषोपनिषद में गीता का निष्काम कर्म का पहला विवरण मिलता है ।
नचिकेता यम का संवाद कठोपनिषद में है ।
वृहदारण्यक उपनिषद में ही पुनर्जन्म का सिदांत एवं यञवल्क्य गार्गी संवाद का वर्णन है ।
श्वेताश्वर उपनिषद में सर्वप्रथम भक्ति शब्द का उल्लेख मिलता है ।
वेदांग वैदिक
मूल ग्रंथ का अर्थ समझने के लिए वेदांगों की जरूरत होती है ।
यह वेदांग है -- शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , छंद और ज्योतिष ।
स्मृति ग्रंथ
स्मृति ग्रंथ के अंतर्गत स्मृति , धर्मशास्त्र एवं पुराण आते हैं ।
यह हिंदू धर्म के कानूनी ग्रंथ भी कहे जाते हैं ।
मनुस्मृति सबसे प्राचीन स्मृति ग्रंथ है ।
मेधातिथि , गोविंदराज ,भरुची एवं कल्लुक भट्ट मनुसमृति पर टिका लिखने वाले विद्वान है ं ।
याज्ञवल्क्यस्मृति -- इसके भाष्यकार है ं विज्ञानेश्वर , अपरार्क , विश्वरुप ।
महाभारत के रचयिता व्यास जी है ं , इसका नाम जय सहिंता था । इसमें 1,00,000 श्लोक है ं।
रामायण की रचना वाल्मीकि ने की थी ,इसमें 24,000 श्लोक है ं।
पुराण
पुराणों की संख्या 18 है ।
उनका संकलन गुप्त काल में हुआ , तथा इनमें एतिहासिक वंशावलियां मिलती है ।
मत्स्य , वायु , विष्णु , शिव , ब्रह्मांड, भागवत कुछ महत्वपूर्ण पुराण है ।
विष्णु के 10 अवतारों का विवरण मत्स्य पुराण से प्राप्त होता है यह सबसे प्राचीन पुराण है ।
सूत्र
सूत्र प्रमुख चार प्रकार के है ं ---
गृह सूत्र -- इसमें जातकर्म , नामकरण , उपनयन , विवाह , श्राद्ध , घरेलू या पारिवारिक अनुष्ठानों का विधि-विधान दिया गया है ।
श्रोतसूत्र -- इसमें राजा के द्वारा अनुष्ठेय सा र्वजनिक यज्ञों के विधिविधान दिए गए है ं ।
धर्मसूत्र -- इसमें धर्म संबंधी विभिन्न क्रियाओं का वर्णन है ।
शुल्वसूत्र--- इसमे ज्यामिति एवं गणित का अध्ययन होता है ।
व पद्य को रिचा , गद्य को यजुष और गेय पद को सा म कहते हैं।
व्याकरणाचार्य पाणिनि के अनुसार ऋग्वेद की 21 शाखाएं हैा ।
मत्स्य पुराण में सातवाहन , विष्णु पुराण में मौर्य वंश और वायु पुराण में गुप्त वंश का वर्णन है ।
ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद को वेदत्रयी कहते हैं ।
ब्रह्मसूत्र , भागवतगीता एवं उपनिष्द को प्रस्थान त्रयी कहते हैं ।
आर्यों का मूल स्थान मध्य एशिया था ।
उत्तर में हिमालय
दक्षिण में यमुना नदी के समानांतर
पूर्व में यमुना नदी
और पश्चिम में अफगानिस्तान तक विस्तार था
प्राचीन नदियों के नाम
सिंधु -------------सिंधु
अस्किनी---------- चिनाब
शतु द्री ------------ सतलज
विपाशा ------------- व्यास
वितस्ता ------------ झेलम
सरस्वती -------घग्घर
परुष्णी -------- रावी
अफगानिस्तान की नदियां
कुभा ----- काबुल.
स्वास्तु -----स्वात
क्रुमु --------- कुर्रम
गोमती----- गोमल
आर्यों की सबसे प्रमुख नदी सिंधु नदी थी ।
रिग वैदिक काल की सर्वश्रेष्ठ नदी सरस्वती नदी थी ।
गंडक को सदानीरा के नाम से जाना जाता है ।
ऋग्वेद में मरुस्थल के लिए धन्व शब्द प्रयोग किया गया है ।
परंपरा अनुसार आर्यों के पांच कबीले थे जिन्हें पंचतंर कहा जाता था ।
भारतवंश एवं 10 राजाओं के बीच परुष्णी नदी के तट पर दसराज्ञ युद्ध हुआ ।
ऋगवैदिक काल में यव अर्थात जौ प्रमुख फसल थी।
रिग वैदिक काल में पशुपालन मुख्यता एवं कृषि कम था ।
इस काल में गाय का अत्यंत महत्व था ।
अयस शब्द का प्रयोग तांबे या कांसे के अर्थ में होता था ।
ऋग्वैदिक काल में आर्यों का प्रशासन तंत्र कबीले के प्रधान द्वारा संचालित होता था , जिसे राजन् कहा कहा जाता था ।
ऋग्वेद में वर्णित बलि राजा को दिया जाने वाला स्वैच्छिक कर था ।
इस काल में वरिष्ठ एवं विश्वामित्र दो महान पुरोहित हुए ।
वैदिक ग्रंथों में कुल 33 देवताओं का उल्लेख है ।
ऋग्वेद में इंद्र देव सबसे प्रथम, अग्नि द्वितीय , और वरुण तृतीय है ।
सोम -------- वनस्पति के देवता
मरूत---------आंधी के देवता
उषा --------------प्रगति और उत्थान की देवी
पूषण -----------पशुओं के देवता
अरण्यानी----------- जंगल की देवी
द्यौ ---------- आकाश का देवता
उत्तर वैदिक काल
आर्यों का भौगोलिक विस्तार उत्तर में हिमालय , दक्षिण में विंध्याचल पर्वतमाला , पश्चिम में अफगानिस्तान , और पूर्व में उत्तरी बिहार तक था ।
वर्ण व्यवस्था का आधार कर्म से बदलकर जन्म हो गया ।
ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ और संन्यास का सर्वप्रथम उल्लेख जाबलोपनिषद में मिलता है ।
शतपथ ब्राह्मण में पत्नी को अर्धांगिनी कहा गया है ।
विदुषी महिलाएं -- मैत्रेयी , गार्गी , सलवा , वणवा, काव्यायनी ।
उत्तर वैदिक काल में आर्यों की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि था ।
इस काल में व्रीहि (चावल ) ,माष( उड़द ) ,यव (जौ) , गोधूम( गेहूं )आदि का उत्पादन होने लगा ।
उत्तर वैदिकाल में लोहे की जानकारी हुई ।
इस गांव के लोग चार प्रकार के मृदभांडों से परिचित थे ।
काला। व लाल , काली पोलिशदार , चित्रित धूसर और लाल मृदभांड ।
सर्वाधिक लोहा औजार अंतरजीखेड़ा से प्राप्त हुए हैं ।
उत्तर वैदिक काल में उत्तर का राजा विराट कहलाता था , दक्षिण का भोज , पूर्व का सम्राट और पश्चिम का स्वराज , एवं मध्य का शासक राजा कहलाता था ।
राजा का पद अनुवांशिक बन गया।
राजसूय यज्ञ -- राज्य अभिषेक के समय
अश्वमेध यज्ञ ---- साम्राज्य विस्तार िए
वाजपेय यज्ञ---- रथदौड़ दौड़ की आकांक्षा से ।
उत्तर वैदिक काल में धर्म कर्मकांड आधारित हो गया ।
इस काल के प्रमुख देवता प्रजापति (ब्रह्मा ) ,शिव (रुद्र) , नारायण (विष्णु) ,
पुषन अब शूद्रों के देवता हो गए ।
इस काल में गृहस्थों के लिए पंचमहायज्ञ भी होने लगे।
ब्रह्मयज्ञ ,भूत यज्ञ , देवयज्ञ , पितृयज्ञ एवं अतिथियज्ञ ।
इस काल में ही षड्दर्शन का उदय हुआ ।
सांखय ------ कपिल मुनि
योग ---- पतंजलि
न्याय------ गौतम ऋषि
वैशेषिक----- कणाद मुनि
पूर्व मीमांसा ----- जैमिनी
उत्तर मीमांसा ------- वादरायण
सोलह संस्कार
गर्भाधान, पुंसवन , सीमंतोन्नयन , जातकर्म , नामकरण ,निष्क्रमण , अन्नप्रासन, चूड़ाकर्म , कर्णछेदन , विद्यारंभल, उपनयन , विद्यारंभ , केशांत समावर् तन , विवाह एवं अंत्येष्टि ।
उपनयन संस्कार एक महत्वपूर्ण संस्कार था , जो शूद्रों को छोड़कर शेष तीनों वर्णों के लिए था ।
ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य के बच्चों का उपनयन संस्कार क्रमशः 8 वर्ष ,11 वर्ष तथा 12 वर्ष की अवस्था में होता था ,यह बालक संस्कार के बाद द्विज कहलाते थे।
विवाह
अनुलोम विवाह -- इसमें पुरुष वर्ण का तथा महिला निम्न वर्ण की होती थी ।
प्रतिलोम विवाह -- इसमें पुरुष निम्न वर्ण का तथा महिला उच्च वर्ण की होती थी ।
गृह सूत्रों के अनुसार आठ प्रकार के विवाह होते है
(1) ब्रह्म विवाह ---- यह सबसे प्रचलि त एवं उत्तम विवाह था ।
(2) दैव विवाह --- यज्ञ करने वाले ब्राह्मण से पुत्री का विवाह कि या जाता थै ।
(3) आर्य विवाह --कन्या का पिता वर से गाय लेकर कन्या का विवाह कर देता था ।
(4) प्रजापति विवाह -- इसमें कन्या का पिता वर को वचन देता था ।
(5) असुर विवाह --वर से मुल्य लेकर कन्या को बेचा जाता था ।
(6) गंधर्व विवाह -- यह प्रेम विवाह था , जिसमें माता-पिता की अनुमति नहीं ली जाती थी ।
(7) राक्षस विवाह ------ इसमें विवाह वधू का अपहरण किया जाता था ।
(8) पैशाच विवाह ----- यह जबरदस्ती किया जाने वाला विवाह था ।
कृषि संबंधित शब्दावली
लांगल -- हल
वृक ------- बैल
उर्वरा ---जुते हुए खेत
सीता----हल से बनी नालि यां
अवट--- कूप (कुआँ)
पर्जन्य------ बादल
अनस ---- बैलगाड़ी
कीनाश ----- हलवाहा ।
असतो मा सद्गमय का सर्वप्रथम उल्लेख -- ऋग्वेद
सबसे प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथ--- कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण
सबसे प्राचीन उपनि षद --छान्दोग्य एवं वृहद्धारण्यक।
भारत कबीले का सर्वप्रथम उल्लेख-- ऋग्वेद
उत्तर वैदि क काल का सर्वप्रमुख देवता --- प्रजापति
ऋग्वेदिकाल की सर्वाधिक स्तुत्य नदी ---- सिंधुनदी
ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी ------- सरस्वती
याज्ञवल्क्य गार्गी संवाद उल्लेखित है --- वृहदारण्यक उपनिषद में
वैश्य शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग मिलता है --वाजसनेयी सहिंता।
श्वेताश्वतर उपनिषद् समर्पित है----- रुद्र देवता को
ब्राह्मण साहित्य में वेद सबसे पुराना है ,
वेद का शाब्दिक अर्थ है जानना
वैदिक संस्कृति के संस्थापक आर्य थे ।
वेदों को श्रुति भी कहा जाता है ।
संपूर्ण वैदिक साहित्य को दो भागों में बांटा गया है , श्रुति साहित्य तथा स्मृति साहित्य
(1). श्रुति साहित्य में वेद , ब्राह्मण , आरण्यक और उपनिषद आते हैं ।
(2). स्मृति साहित्य में वेदांग , सूत्र और ग्रंथ शामिल है ।
वेदों का संकलन कृष्ण द्वैपायन व्यास ने किया था इसलिए वह वेदव्यासकहलाए ।
वेद चार प्रकार के है ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद एवं अथर्ववेद ।
ऋग्वेद
ऋग्वेद में कुल 10 मंडल , 1028 सूक्त एवं 10462 मंत्र हैं ।
ऋग्वेद में के मंत्रों का उच्चारण होतृ या होता से किया जाता है ।
कृषि संबंधित जानकारी चौथे मंडल से प्राप्त होती है ।
गायत्री मंत्र का उल्लेख तीसरे मंडल में है ।
7वां मंडल वरुण को एवं नवाँ मंडल सोम को समर्पित है ।
विदुषी महिलाएं-- लोपामुद्रा , सिक्ता , अपाला , घोषा आदि ।
ऋग्वेद में इन महिलाओं को ब्रह्मवादिनी कहा गया है ।
दसवें मंडल के पुरुषसूक्त में चारों वर्ण पुरोहित , राजन्य , वैश्य तथा शूद्र का वर्णन है ।
एतरेय एवं कोषितकी ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रंथ हैं ।
ऐतरेय ब्राह्मण में जनपद एवं राजसूय यज्ञ का उल्लेख मिलता है ।
ऋग्वेद में यमुना का उल्लेख तीन बार एवं गंगा का उल्लेख एक बार है ।
इस वेद में सोमरस का वर्णन सर्वाधिक हुआ है , इंद्र को पुरंदर कहा गया है ।
आयुर्वेद , ऋग्वेद काउपवेद है ।
सामवेद
सामवेद गायी जाने वाली ऋचाओं का संकलन है जिनके पुरोहित उद्गाता कहलाते थे ।
सामवेद से ही सर्वप्रथम सात स्वरों की जानकारी प्राप्त होती है , इसलिए इसे भारतीय संगीत का जनक माना जाता है ।
गंधर्व वेद सामवेद का उपवेद है।
सामवेद में कुल मंत्र की संख्या 1549 हैं।
पंचवीश पांडे सामवेद के ब्राह्मण ग्रंथ हैं ।
यजुर्वेद
यजुर्वेद में अनुष्ठानों , कर्मकांड और यज्ञ संबंधी मंत्रों का संकलन है ,उनके पुरोहित को अध्वर्य कहते थे ।
यह गद्य एवं पद्य दोनों में रचित है , एवं इसके दो भाग हैं (1) कृष्ण यजुर्वेद (गद्य ) (2) शुक्ल यजुर्वेद ( पद्य )
कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ तैतरीय ब्राह्मण तथा शुक्ल यजुर्वेद का शतपथ है ।
यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है।
शतपथ में कृषि एवं सिंचाई का उल्लेख मिलता है।
अथर्ववेद
इसकी रचना अथर्वा ने की थी ।
अथर्ववेद के मंत्र रोग नाशक , जादू - टोना , विवाह गीत आदि से सम्बधित हैं।
इसका उपवेद अर्थवेद है।
अथर्ववेद का कोई आरण्यक ग्रंथ नहीं है।
इसमें सबसे पहले गोत्र शब्द का उल्लेख मिलता है।
इनके पुरोहित को ब्रह्मा कहते हैं ।
इसी वेद में सभा , समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है ।
चांदं एवं गन्ने का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्वेद में ही मिलता है ।
आरण्य
ऋषियों द्वारा जंगलों में की जाने वाली रचनाओं को आरण्यक कहते हैं ।
ये दार्शनिक रहस्यों से परिपूर्ण हैं ।
इनकी संख्या सात है ।
उपनिषद
उपनिषद वेदों का अंतिम भाग है , इसलिए इन्हे वेदांत भी कहते हैं ।
उपनिषदों की कुल संख्या 108 है जिनमे 11 महत्वपूर्ण है ।
मुण्डकोपनिषद से सत्यमेव जयते शब्द लिया गया है ।
इषोपनिषद में गीता का निष्काम कर्म का पहला विवरण मिलता है ।
नचिकेता यम का संवाद कठोपनिषद में है ।
वृहदारण्यक उपनिषद में ही पुनर्जन्म का सिदांत एवं यञवल्क्य गार्गी संवाद का वर्णन है ।
श्वेताश्वर उपनिषद में सर्वप्रथम भक्ति शब्द का उल्लेख मिलता है ।
वेदांग वैदिक
मूल ग्रंथ का अर्थ समझने के लिए वेदांगों की जरूरत होती है ।
यह वेदांग है -- शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , छंद और ज्योतिष ।
स्मृति ग्रंथ
स्मृति ग्रंथ के अंतर्गत स्मृति , धर्मशास्त्र एवं पुराण आते हैं ।
यह हिंदू धर्म के कानूनी ग्रंथ भी कहे जाते हैं ।
मनुस्मृति सबसे प्राचीन स्मृति ग्रंथ है ।
मेधातिथि , गोविंदराज ,भरुची एवं कल्लुक भट्ट मनुसमृति पर टिका लिखने वाले विद्वान है ं ।
याज्ञवल्क्यस्मृति -- इसके भाष्यकार है ं विज्ञानेश्वर , अपरार्क , विश्वरुप ।
महाभारत के रचयिता व्यास जी है ं , इसका नाम जय सहिंता था । इसमें 1,00,000 श्लोक है ं।
रामायण की रचना वाल्मीकि ने की थी ,इसमें 24,000 श्लोक है ं।
पुराण
पुराणों की संख्या 18 है ।
उनका संकलन गुप्त काल में हुआ , तथा इनमें एतिहासिक वंशावलियां मिलती है ।
मत्स्य , वायु , विष्णु , शिव , ब्रह्मांड, भागवत कुछ महत्वपूर्ण पुराण है ।
विष्णु के 10 अवतारों का विवरण मत्स्य पुराण से प्राप्त होता है यह सबसे प्राचीन पुराण है ।
सूत्र
सूत्र प्रमुख चार प्रकार के है ं ---
गृह सूत्र -- इसमें जातकर्म , नामकरण , उपनयन , विवाह , श्राद्ध , घरेलू या पारिवारिक अनुष्ठानों का विधि-विधान दिया गया है ।
श्रोतसूत्र -- इसमें राजा के द्वारा अनुष्ठेय सा र्वजनिक यज्ञों के विधिविधान दिए गए है ं ।
धर्मसूत्र -- इसमें धर्म संबंधी विभिन्न क्रियाओं का वर्णन है ।
शुल्वसूत्र--- इसमे ज्यामिति एवं गणित का अध्ययन होता है ।
व पद्य को रिचा , गद्य को यजुष और गेय पद को सा म कहते हैं।
व्याकरणाचार्य पाणिनि के अनुसार ऋग्वेद की 21 शाखाएं हैा ।
मत्स्य पुराण में सातवाहन , विष्णु पुराण में मौर्य वंश और वायु पुराण में गुप्त वंश का वर्णन है ।
ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद को वेदत्रयी कहते हैं ।
ब्रह्मसूत्र , भागवतगीता एवं उपनिष्द को प्रस्थान त्रयी कहते हैं ।
आर्यों का मूल स्थान मध्य एशिया था ।
उत्तर में हिमालय
दक्षिण में यमुना नदी के समानांतर
पूर्व में यमुना नदी
और पश्चिम में अफगानिस्तान तक विस्तार था
प्राचीन नदियों के नाम
सिंधु -------------सिंधु
अस्किनी---------- चिनाब
शतु द्री ------------ सतलज
विपाशा ------------- व्यास
वितस्ता ------------ झेलम
सरस्वती -------घग्घर
परुष्णी -------- रावी
अफगानिस्तान की नदियां
कुभा ----- काबुल.
स्वास्तु -----स्वात
क्रुमु --------- कुर्रम
गोमती----- गोमल
आर्यों की सबसे प्रमुख नदी सिंधु नदी थी ।
रिग वैदिक काल की सर्वश्रेष्ठ नदी सरस्वती नदी थी ।
गंडक को सदानीरा के नाम से जाना जाता है ।
ऋग्वेद में मरुस्थल के लिए धन्व शब्द प्रयोग किया गया है ।
परंपरा अनुसार आर्यों के पांच कबीले थे जिन्हें पंचतंर कहा जाता था ।
भारतवंश एवं 10 राजाओं के बीच परुष्णी नदी के तट पर दसराज्ञ युद्ध हुआ ।
ऋगवैदिक काल में यव अर्थात जौ प्रमुख फसल थी।
रिग वैदिक काल में पशुपालन मुख्यता एवं कृषि कम था ।
इस काल में गाय का अत्यंत महत्व था ।
अयस शब्द का प्रयोग तांबे या कांसे के अर्थ में होता था ।
ऋग्वैदिक काल में आर्यों का प्रशासन तंत्र कबीले के प्रधान द्वारा संचालित होता था , जिसे राजन् कहा कहा जाता था ।
ऋग्वेद में वर्णित बलि राजा को दिया जाने वाला स्वैच्छिक कर था ।
इस काल में वरिष्ठ एवं विश्वामित्र दो महान पुरोहित हुए ।
वैदिक ग्रंथों में कुल 33 देवताओं का उल्लेख है ।
ऋग्वेद में इंद्र देव सबसे प्रथम, अग्नि द्वितीय , और वरुण तृतीय है ।
सोम -------- वनस्पति के देवता
मरूत---------आंधी के देवता
उषा --------------प्रगति और उत्थान की देवी
पूषण -----------पशुओं के देवता
अरण्यानी----------- जंगल की देवी
द्यौ ---------- आकाश का देवता
उत्तर वैदिक काल
आर्यों का भौगोलिक विस्तार उत्तर में हिमालय , दक्षिण में विंध्याचल पर्वतमाला , पश्चिम में अफगानिस्तान , और पूर्व में उत्तरी बिहार तक था ।
वर्ण व्यवस्था का आधार कर्म से बदलकर जन्म हो गया ।
ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ और संन्यास का सर्वप्रथम उल्लेख जाबलोपनिषद में मिलता है ।
शतपथ ब्राह्मण में पत्नी को अर्धांगिनी कहा गया है ।
विदुषी महिलाएं -- मैत्रेयी , गार्गी , सलवा , वणवा, काव्यायनी ।
उत्तर वैदिक काल में आर्यों की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि था ।
इस काल में व्रीहि (चावल ) ,माष( उड़द ) ,यव (जौ) , गोधूम( गेहूं )आदि का उत्पादन होने लगा ।
उत्तर वैदिकाल में लोहे की जानकारी हुई ।
इस गांव के लोग चार प्रकार के मृदभांडों से परिचित थे ।
काला। व लाल , काली पोलिशदार , चित्रित धूसर और लाल मृदभांड ।
सर्वाधिक लोहा औजार अंतरजीखेड़ा से प्राप्त हुए हैं ।
उत्तर वैदिक काल में उत्तर का राजा विराट कहलाता था , दक्षिण का भोज , पूर्व का सम्राट और पश्चिम का स्वराज , एवं मध्य का शासक राजा कहलाता था ।
राजा का पद अनुवांशिक बन गया।
राजसूय यज्ञ -- राज्य अभिषेक के समय
अश्वमेध यज्ञ ---- साम्राज्य विस्तार िए
वाजपेय यज्ञ---- रथदौड़ दौड़ की आकांक्षा से ।
उत्तर वैदिक काल में धर्म कर्मकांड आधारित हो गया ।
इस काल के प्रमुख देवता प्रजापति (ब्रह्मा ) ,शिव (रुद्र) , नारायण (विष्णु) ,
पुषन अब शूद्रों के देवता हो गए ।
इस काल में गृहस्थों के लिए पंचमहायज्ञ भी होने लगे।
ब्रह्मयज्ञ ,भूत यज्ञ , देवयज्ञ , पितृयज्ञ एवं अतिथियज्ञ ।
इस काल में ही षड्दर्शन का उदय हुआ ।
सांखय ------ कपिल मुनि
योग ---- पतंजलि
न्याय------ गौतम ऋषि
वैशेषिक----- कणाद मुनि
पूर्व मीमांसा ----- जैमिनी
उत्तर मीमांसा ------- वादरायण
सोलह संस्कार
गर्भाधान, पुंसवन , सीमंतोन्नयन , जातकर्म , नामकरण ,निष्क्रमण , अन्नप्रासन, चूड़ाकर्म , कर्णछेदन , विद्यारंभल, उपनयन , विद्यारंभ , केशांत समावर् तन , विवाह एवं अंत्येष्टि ।
उपनयन संस्कार एक महत्वपूर्ण संस्कार था , जो शूद्रों को छोड़कर शेष तीनों वर्णों के लिए था ।
ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य के बच्चों का उपनयन संस्कार क्रमशः 8 वर्ष ,11 वर्ष तथा 12 वर्ष की अवस्था में होता था ,यह बालक संस्कार के बाद द्विज कहलाते थे।
विवाह
अनुलोम विवाह -- इसमें पुरुष वर्ण का तथा महिला निम्न वर्ण की होती थी ।
प्रतिलोम विवाह -- इसमें पुरुष निम्न वर्ण का तथा महिला उच्च वर्ण की होती थी ।
गृह सूत्रों के अनुसार आठ प्रकार के विवाह होते है
(1) ब्रह्म विवाह ---- यह सबसे प्रचलि त एवं उत्तम विवाह था ।
(2) दैव विवाह --- यज्ञ करने वाले ब्राह्मण से पुत्री का विवाह कि या जाता थै ।
(3) आर्य विवाह --कन्या का पिता वर से गाय लेकर कन्या का विवाह कर देता था ।
(4) प्रजापति विवाह -- इसमें कन्या का पिता वर को वचन देता था ।
(5) असुर विवाह --वर से मुल्य लेकर कन्या को बेचा जाता था ।
(6) गंधर्व विवाह -- यह प्रेम विवाह था , जिसमें माता-पिता की अनुमति नहीं ली जाती थी ।
(7) राक्षस विवाह ------ इसमें विवाह वधू का अपहरण किया जाता था ।
(8) पैशाच विवाह ----- यह जबरदस्ती किया जाने वाला विवाह था ।
कृषि संबंधित शब्दावली
लांगल -- हल
वृक ------- बैल
उर्वरा ---जुते हुए खेत
सीता----हल से बनी नालि यां
अवट--- कूप (कुआँ)
पर्जन्य------ बादल
अनस ---- बैलगाड़ी
कीनाश ----- हलवाहा ।
असतो मा सद्गमय का सर्वप्रथम उल्लेख -- ऋग्वेद
सबसे प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथ--- कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण
सबसे प्राचीन उपनि षद --छान्दोग्य एवं वृहद्धारण्यक।
भारत कबीले का सर्वप्रथम उल्लेख-- ऋग्वेद
उत्तर वैदि क काल का सर्वप्रमुख देवता --- प्रजापति
ऋग्वेदिकाल की सर्वाधिक स्तुत्य नदी ---- सिंधुनदी
ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी ------- सरस्वती
याज्ञवल्क्य गार्गी संवाद उल्लेखित है --- वृहदारण्यक उपनिषद में
वैश्य शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग मिलता है --वाजसनेयी सहिंता।
श्वेताश्वतर उपनिषद् समर्पित है----- रुद्र देवता को
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