B L Nayak
गुप्त साम्राज्य
गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग भी कहा जाता है ।
श्री गुप्त
श्री गुप्त इस वंश का संस्थापक था ।
प्रभावती गुप्ता के पूना ताम्र. पत्राभिलेख में श्रीगुप्त को आदिराज कहा गया है ।
प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख ---- समुद्रगुप्त
विलसड स्तंभलेख ------ कुमारगुप्त
भीतरी स्तंभलेख ----स्कंदगुप्त
घटोत्कच गुप्त
यह श्रीगुप्त का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था
चंद्रगुप्त प्रथम
चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश का पहला प्रसिद्ध राजा था ।
उसने लिच्छवी की राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया , जिससे उसकी सत्ता को बल मिला ।
चंद्रगुप्त प्रथम ने अपने राज्य रोहण के स्मारक के रुप में 319 - 320 ईसवी में गुप्त संवत चलाया ।
समुद्रगुप्त
चंद्रगुप्त प्रथम के पुत्र और उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त ने गुप्त साम्राज्य का अपार विस्तार किया ।
समुद्रगुप्त अपनी विजयों के लिए प्रसिद्ध था , उसे समरशत कहा गया है जिसका अर्थ है सौ युद्धों का विजेता ।
डॉक्टर वी ए स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा है ।
समुद्रगुप्त ने दक्षिणापथ के 12 राजाओं को परास्त कर धर्म विजय का कार्य किया ।
आर्यवर्त के 9 राजाओं को परास्त कर दिग्विजय का कार्य किया था ।
समुद्रगुप्त ने वन प्रदेश के सभी राजाओं को परिचारक बनाया ।
एरण अभिलेख में समुद्रगुप्त की पत्नी का नाम दत्त देवी वर्णित है ।
समुद्रगुप्त को कविराज भी कहा गया है ।
समुद्रगुप्त को कई सिक्कों पर वीणा वादन करते हुए दर्शाया गया है ।
उसके कॉल के छह प्रकार की स्वर्ण मुद्राएं मिली है गरूड़ , अश्वमेघ , धनुर्धर , याध्रहंता , परसु और वीणा सारण ।
समुद्रगुप्त ने अश्वमेध पराक्रमांक की उपाधि धारण की थी ।
श्रीगुप्त ----- आदिराज
घटोत्कच ----- महाराज
चंद्रगुप्त ---- महाराजाधिराज
चंद्रगुप्त द्वितीय --- विक्रमादित्य
समुद्रगुप्त ---- पराक्रमांक
कुमार गुप्त ---- महेंद्रादित्य , शक्रादित्य
स्कन्दगुप्त ---- क्रमादित्य
रामगुप्त
समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद राम गुप्त शासक बना जो एक कमजोर राजा था ।
उसके छोटे भाई चंद्रगुप्त द्वितीय ने उसकी हत्या कर दी और गुप्त वंश की गद्दी पर बैठा ।
राजशेखर की काव्य मीमांसा एवं देवीचन्द्रगुप्तम ने भी इस घटना का उल्लेख किया है ।
चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य
चंद्रगुप्त द्वितीय समुद्रगुप्त एवं दत्तदेवी का पुत्र था ।
उसके शासनकाल में गुप्त साम्राज्य अपने उत्कर्ष पर पहुंचा ।
महरौली स्तंभ लेख में राजा चंद्र का वर्णन मिलता है जिसकी पहचान चंद्रगुप्त द्वितीय से की गई है ।
इसे सांची के अभिलेख में देवराज एवं प्रवरसेन के अभिलेख में देवगुप्त कहा गया है ।
उसने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक शासक रुद्रसेन द्वितीय से करवाया ।
उसके मरने के बाद उसका नाबालिक पुत्र उसका उत्तराधिकारी बना , इस प्रकार प्रभावती स्वयंवर वास्तविक शासिका हुई ।
वाकाटक की सहायता से चंद्रगुप्त द्वितीय ने शकों को पराजित किया , इस उपलक्ष्य में उसने चांदी के सिक्के चलाए ।
इस विजय के बाद उसे शाकारी कहा गया और उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की ।
चंद्रगुप्त द्वितीय के उदयगिरि अभिलेख के अनुसार उसका उद्देश्य संपूर्ण पृथ्वी को जीतना था ।
उसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी, उसने उज्जैन में दूसरी राजधानी स्थापित की ।
चंद्रगुप्त द्वितीय के समय ही चीनी बौध्द यात्री फाह्यान भारत आया था ।
चंद्रगुप्त द्वितीय ने कालीदास को अपना दूत बनाकर कुंतल नरेश के दरबार में भेजा था ।
चंद्रगुप्त द्वितीय के नौ रत्न
कालिदास , अमर सिंह , शन्कु , धनवंतरी
, क्षपणक , वेताल भट्ट , वररुचि , घटकर्पर , वाराह मितिर ।
कुमारगुप्त प्रथम
मंदसौर अभिलेख से कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल का वर्णन मिलता है ।
सबसे अधिक 18 अभिलेख इसी के मिले हैं ।
तुमुन् अभिलेख में कुमारगुप्त प्रथम को शरद कालीन सूर्य कहा गया है ।
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त प्रथम के कार्यकाल में की गई थी ।
बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था ।
उसका शासन काल 40 वर्ष का था ।
स्कंदगुप्त
गिरनार के प्रशासक चक्रपालित ने सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया था ।
स्कंदगुप्त का भीतरी अभिलेख हुणों द्वारा आक्रमण की जानकारी देता है ।
स्कंदगुप्त ने प्रशासनिक सुविधा के उद्देश्य से अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया ।
विष्णु गुप्ता गुप्त वंश का अंतिम शासक था ।
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गुप्तकालीन प्रशासन पद्धति
पेठ --- यह ग्राम समूह की इकाई थी , ग्राम प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी ।
ग्राम सभा ---- ग्राम का प्रशासन ग्राम सभा द्वारा संचालित होता था , जिसका मुखिया ग्रामीक कहलाता था एवं अन्य सदस्य महत्तर कहलाते थे ।
ग्राम सभा को पंचमण्डली एवं ग्राम जनपद कहा जाता था ।
गोप्ता --- यह देश का प्रशासक था जो सम्राट द्वारा सीधे नियुक्त किया जाता था ।
सैन्य संगठन
सम्राट ---- यह सेना का अध्यक्ष होता था ।
युवराज --- सम्राट के वृद्ध होने पर सेना की अध्यक्षता युवराज करता था ।
गज सेना--- इसका प्रधान अध्यक्ष महापिलुपति होता था ।
अश्व सेना ----- इसका प्रधान अध्यक्ष महाश्वपति या भटाश्वपति होता था ।
रणभाण्डाधिकृति --- सैन्य कार्य में आने वाली सामग्री की व्यवस्था एवं पूर्ति से संबंधित कर्मचारी ।
धार्मिक जीवन
गुप्त काल में बौद्ध धर्म को राजा से मिलना समाप्त हो गया तथा भागवत धर्म केंद्र बिंदु बन गया ।
इस काल में त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा , विष्णु एवं महेश की पूजा प्रारंभ हुई ।
गुप्तकाल में मूर्तिपूजा ब्राह्मणीय धर्म का सामान्य लक्षण हो गई ।
चंद्रगुप्त द्वितीय एवं समुद्रगुप्त के सिक्कों पर विष्णु के वाहन गरुड़ का चित्र पाया जाता है , जो कि गुप्त वंश का राजकीय चिन्ह भी था ।
गंगधर अभिलेख में विष्णु को मधुसूदन कहा गया है ।
गुप्त युग में मथुरा एवं वल्लभी में जैन सभाओं का आयोजन हुआ था ।
आर्थिक जीवन
इस काल में पांच प्रकार की भूमि का उल्लेख मिलता है ---
क्षेत्र भूमि ---- कृषि योग्य भूमि ।
वास्तु भूमि ---- रहने योग्य भूमि ।
चारागाह भूमि ---- पशुओं के चारा योग्य भूमि ।
खिल भूमि -- जो भूमि जोतने योग्य नहीं हो ।
अप्रहत भूमि --- बिना जोती गई जंगली भूमि ।
कर 1/4 से 1/6 भाग तक लिया जाता है ।
भूमि कर संग्रह करने वाला पदाधिकारी ध्रुवाधिकरण कहलाता था ।
व्यापारिक के कारवों को नेतृत्व करने वाला व्यक्ति सार्थवाह कहलाता था ।
इस काल में व्यापारियों तथा शिल्पियों के चार संगठन थे --- निगम , पुग , गण तथा श्रेणी ।
श्रेणी के प्रधान को ज्येष्ठक कहा जाता था ।
सिंचाई के लिए राहत या घट यंत्र का प्रयोग होता था ।
भूमि संबंधी विवादों को निपटाने वाला अधिकारी न्यायाधिकरणी कहलाता था ।
करणिक व महापक्षपटलिक नामक पदाधिकारी भूमि अभिलेखों को सुरक्षित रखने का कार्य करते थे ।
इस समय उज्जैन व्यापार का प्रमुख केंद्र था ।
अजंता की कुल 29 गुफाओं में से गुफा संख्या 16 , 17 एवं 19 गुप्त काल से संबंधित है ।
गुफा संख्या 16 में मरणासन्न राजकुमारी का चित्र है ।
गोपाल संख्या 17 में जातक कथाओं का उल्लेख है ।
अजंता की गुफाओं के चित्र बौद्ध धर्म के महायान शाखा से संबंधित है ।
गुप्तकालीन साहित्य
गुप्तकाल संस्कृत साहित्य का स्वर्ण युग है ।
कालिदास को भारत का शेक्सपियर कहा जाता है ।
मंदसौर प्रशस्ति की रचना वत्स भट्टी ने की थी ।
प्रमुख लेखक व उनकी रचनाएं
कालिदास --- अभिज्ञानशाकुंतलम , ऋतुसंहार , मालविकाग्निमित्रम् , कुमारसंभव , मेघदूत , रघुवंश , विक्रमोवंशीयम्
भास ---- स्वपनवासवदत्तम , कर्णभारम् , चारुदत्तम्
विष्णु शर्मा ---- पंचतंत्र
बाणभट्ट ------ हर्षचरित
विशाखदत्त ---- मुद्राराक्षस , देवीचंद्रगुप्तम्
शूद्रक --- मृच्छकटिकम्
भौमक --- रावणार्जुनीयम्
वत्स भट्टी ----- रावण-वध
राजशेखर ------- काव्यमीमांसा
अमर सिंह ----- अमरकोश
गुप्त साम्राज्य
गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग भी कहा जाता है ।
श्री गुप्त
श्री गुप्त इस वंश का संस्थापक था ।
प्रभावती गुप्ता के पूना ताम्र. पत्राभिलेख में श्रीगुप्त को आदिराज कहा गया है ।
प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख ---- समुद्रगुप्त
विलसड स्तंभलेख ------ कुमारगुप्त
भीतरी स्तंभलेख ----स्कंदगुप्त
घटोत्कच गुप्त
यह श्रीगुप्त का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था
चंद्रगुप्त प्रथम
चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश का पहला प्रसिद्ध राजा था ।
उसने लिच्छवी की राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया , जिससे उसकी सत्ता को बल मिला ।
चंद्रगुप्त प्रथम ने अपने राज्य रोहण के स्मारक के रुप में 319 - 320 ईसवी में गुप्त संवत चलाया ।
समुद्रगुप्त
चंद्रगुप्त प्रथम के पुत्र और उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त ने गुप्त साम्राज्य का अपार विस्तार किया ।
समुद्रगुप्त अपनी विजयों के लिए प्रसिद्ध था , उसे समरशत कहा गया है जिसका अर्थ है सौ युद्धों का विजेता ।
डॉक्टर वी ए स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा है ।
समुद्रगुप्त ने दक्षिणापथ के 12 राजाओं को परास्त कर धर्म विजय का कार्य किया ।
आर्यवर्त के 9 राजाओं को परास्त कर दिग्विजय का कार्य किया था ।
समुद्रगुप्त ने वन प्रदेश के सभी राजाओं को परिचारक बनाया ।
एरण अभिलेख में समुद्रगुप्त की पत्नी का नाम दत्त देवी वर्णित है ।
समुद्रगुप्त को कविराज भी कहा गया है ।
समुद्रगुप्त को कई सिक्कों पर वीणा वादन करते हुए दर्शाया गया है ।
उसके कॉल के छह प्रकार की स्वर्ण मुद्राएं मिली है गरूड़ , अश्वमेघ , धनुर्धर , याध्रहंता , परसु और वीणा सारण ।
समुद्रगुप्त ने अश्वमेध पराक्रमांक की उपाधि धारण की थी ।
श्रीगुप्त ----- आदिराज
घटोत्कच ----- महाराज
चंद्रगुप्त ---- महाराजाधिराज
चंद्रगुप्त द्वितीय --- विक्रमादित्य
समुद्रगुप्त ---- पराक्रमांक
कुमार गुप्त ---- महेंद्रादित्य , शक्रादित्य
स्कन्दगुप्त ---- क्रमादित्य
रामगुप्त
समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद राम गुप्त शासक बना जो एक कमजोर राजा था ।
उसके छोटे भाई चंद्रगुप्त द्वितीय ने उसकी हत्या कर दी और गुप्त वंश की गद्दी पर बैठा ।
राजशेखर की काव्य मीमांसा एवं देवीचन्द्रगुप्तम ने भी इस घटना का उल्लेख किया है ।
चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य
चंद्रगुप्त द्वितीय समुद्रगुप्त एवं दत्तदेवी का पुत्र था ।
उसके शासनकाल में गुप्त साम्राज्य अपने उत्कर्ष पर पहुंचा ।
महरौली स्तंभ लेख में राजा चंद्र का वर्णन मिलता है जिसकी पहचान चंद्रगुप्त द्वितीय से की गई है ।
इसे सांची के अभिलेख में देवराज एवं प्रवरसेन के अभिलेख में देवगुप्त कहा गया है ।
उसने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक शासक रुद्रसेन द्वितीय से करवाया ।
उसके मरने के बाद उसका नाबालिक पुत्र उसका उत्तराधिकारी बना , इस प्रकार प्रभावती स्वयंवर वास्तविक शासिका हुई ।
वाकाटक की सहायता से चंद्रगुप्त द्वितीय ने शकों को पराजित किया , इस उपलक्ष्य में उसने चांदी के सिक्के चलाए ।
इस विजय के बाद उसे शाकारी कहा गया और उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की ।
चंद्रगुप्त द्वितीय के उदयगिरि अभिलेख के अनुसार उसका उद्देश्य संपूर्ण पृथ्वी को जीतना था ।
उसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी, उसने उज्जैन में दूसरी राजधानी स्थापित की ।
चंद्रगुप्त द्वितीय के समय ही चीनी बौध्द यात्री फाह्यान भारत आया था ।
चंद्रगुप्त द्वितीय ने कालीदास को अपना दूत बनाकर कुंतल नरेश के दरबार में भेजा था ।
चंद्रगुप्त द्वितीय के नौ रत्न
कालिदास , अमर सिंह , शन्कु , धनवंतरी
, क्षपणक , वेताल भट्ट , वररुचि , घटकर्पर , वाराह मितिर ।
कुमारगुप्त प्रथम
मंदसौर अभिलेख से कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल का वर्णन मिलता है ।
सबसे अधिक 18 अभिलेख इसी के मिले हैं ।
तुमुन् अभिलेख में कुमारगुप्त प्रथम को शरद कालीन सूर्य कहा गया है ।
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त प्रथम के कार्यकाल में की गई थी ।
बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था ।
उसका शासन काल 40 वर्ष का था ।
स्कंदगुप्त
गिरनार के प्रशासक चक्रपालित ने सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया था ।
स्कंदगुप्त का भीतरी अभिलेख हुणों द्वारा आक्रमण की जानकारी देता है ।
स्कंदगुप्त ने प्रशासनिक सुविधा के उद्देश्य से अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया ।
विष्णु गुप्ता गुप्त वंश का अंतिम शासक था ।
B L Nayak
गुप्तकालीन प्रशासन पद्धति
पेठ --- यह ग्राम समूह की इकाई थी , ग्राम प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी ।
ग्राम सभा ---- ग्राम का प्रशासन ग्राम सभा द्वारा संचालित होता था , जिसका मुखिया ग्रामीक कहलाता था एवं अन्य सदस्य महत्तर कहलाते थे ।
ग्राम सभा को पंचमण्डली एवं ग्राम जनपद कहा जाता था ।
गोप्ता --- यह देश का प्रशासक था जो सम्राट द्वारा सीधे नियुक्त किया जाता था ।
सैन्य संगठन
सम्राट ---- यह सेना का अध्यक्ष होता था ।
युवराज --- सम्राट के वृद्ध होने पर सेना की अध्यक्षता युवराज करता था ।
गज सेना--- इसका प्रधान अध्यक्ष महापिलुपति होता था ।
अश्व सेना ----- इसका प्रधान अध्यक्ष महाश्वपति या भटाश्वपति होता था ।
रणभाण्डाधिकृति --- सैन्य कार्य में आने वाली सामग्री की व्यवस्था एवं पूर्ति से संबंधित कर्मचारी ।
धार्मिक जीवन
गुप्त काल में बौद्ध धर्म को राजा से मिलना समाप्त हो गया तथा भागवत धर्म केंद्र बिंदु बन गया ।
इस काल में त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा , विष्णु एवं महेश की पूजा प्रारंभ हुई ।
गुप्तकाल में मूर्तिपूजा ब्राह्मणीय धर्म का सामान्य लक्षण हो गई ।
चंद्रगुप्त द्वितीय एवं समुद्रगुप्त के सिक्कों पर विष्णु के वाहन गरुड़ का चित्र पाया जाता है , जो कि गुप्त वंश का राजकीय चिन्ह भी था ।
गंगधर अभिलेख में विष्णु को मधुसूदन कहा गया है ।
गुप्त युग में मथुरा एवं वल्लभी में जैन सभाओं का आयोजन हुआ था ।
आर्थिक जीवन
इस काल में पांच प्रकार की भूमि का उल्लेख मिलता है ---
क्षेत्र भूमि ---- कृषि योग्य भूमि ।
वास्तु भूमि ---- रहने योग्य भूमि ।
चारागाह भूमि ---- पशुओं के चारा योग्य भूमि ।
खिल भूमि -- जो भूमि जोतने योग्य नहीं हो ।
अप्रहत भूमि --- बिना जोती गई जंगली भूमि ।
कर 1/4 से 1/6 भाग तक लिया जाता है ।
भूमि कर संग्रह करने वाला पदाधिकारी ध्रुवाधिकरण कहलाता था ।
व्यापारिक के कारवों को नेतृत्व करने वाला व्यक्ति सार्थवाह कहलाता था ।
इस काल में व्यापारियों तथा शिल्पियों के चार संगठन थे --- निगम , पुग , गण तथा श्रेणी ।
श्रेणी के प्रधान को ज्येष्ठक कहा जाता था ।
सिंचाई के लिए राहत या घट यंत्र का प्रयोग होता था ।
भूमि संबंधी विवादों को निपटाने वाला अधिकारी न्यायाधिकरणी कहलाता था ।
करणिक व महापक्षपटलिक नामक पदाधिकारी भूमि अभिलेखों को सुरक्षित रखने का कार्य करते थे ।
इस समय उज्जैन व्यापार का प्रमुख केंद्र था ।
अजंता की कुल 29 गुफाओं में से गुफा संख्या 16 , 17 एवं 19 गुप्त काल से संबंधित है ।
गुफा संख्या 16 में मरणासन्न राजकुमारी का चित्र है ।
गोपाल संख्या 17 में जातक कथाओं का उल्लेख है ।
अजंता की गुफाओं के चित्र बौद्ध धर्म के महायान शाखा से संबंधित है ।
गुप्तकालीन साहित्य
गुप्तकाल संस्कृत साहित्य का स्वर्ण युग है ।
कालिदास को भारत का शेक्सपियर कहा जाता है ।
मंदसौर प्रशस्ति की रचना वत्स भट्टी ने की थी ।
प्रमुख लेखक व उनकी रचनाएं
कालिदास --- अभिज्ञानशाकुंतलम , ऋतुसंहार , मालविकाग्निमित्रम् , कुमारसंभव , मेघदूत , रघुवंश , विक्रमोवंशीयम्
भास ---- स्वपनवासवदत्तम , कर्णभारम् , चारुदत्तम्
विष्णु शर्मा ---- पंचतंत्र
बाणभट्ट ------ हर्षचरित
विशाखदत्त ---- मुद्राराक्षस , देवीचंद्रगुप्तम्
शूद्रक --- मृच्छकटिकम्
भौमक --- रावणार्जुनीयम्
वत्स भट्टी ----- रावण-वध
राजशेखर ------- काव्यमीमांसा
अमर सिंह ----- अमरकोश
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