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Sunday, 1 October 2017

गुप्त काल by bajrang Lal

B L Nayak


 गुप्त साम्राज्य



गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग भी कहा जाता है ।


 श्री गुप्त

 श्री गुप्त इस वंश का संस्थापक था ।

 प्रभावती गुप्ता के पूना ताम्र. पत्राभिलेख में श्रीगुप्त को आदिराज कहा गया है ।


 प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख ----  समुद्रगुप्त

 विलसड स्तंभलेख ------ कुमारगुप्त

 भीतरी स्तंभलेख  ----स्कंदगुप्त


 घटोत्कच गुप्त


 यह श्रीगुप्त का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था


 चंद्रगुप्त प्रथम


 चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश का पहला प्रसिद्ध राजा था ।

 उसने लिच्छवी की राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया , जिससे उसकी सत्ता को बल मिला ।

 चंद्रगुप्त प्रथम ने अपने राज्य रोहण  के स्मारक के रुप में 319 - 320 ईसवी में गुप्त संवत चलाया ।

 समुद्रगुप्त


 चंद्रगुप्त प्रथम के पुत्र और उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त ने गुप्त साम्राज्य का अपार विस्तार किया ।

 समुद्रगुप्त अपनी विजयों के लिए प्रसिद्ध था ,  उसे समरशत कहा गया है जिसका अर्थ है सौ युद्धों का विजेता ।


 डॉक्टर वी ए स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा है ।

 समुद्रगुप्त ने दक्षिणापथ के 12 राजाओं को परास्त कर धर्म विजय का कार्य किया ।

 आर्यवर्त के 9 राजाओं को परास्त  कर दिग्विजय का कार्य किया था ।

 समुद्रगुप्त ने वन प्रदेश के सभी राजाओं को परिचारक बनाया ।

 एरण अभिलेख में समुद्रगुप्त की पत्नी का नाम दत्त देवी वर्णित है ।

 समुद्रगुप्त को कविराज भी कहा गया है ।

 समुद्रगुप्त को कई सिक्कों पर वीणा वादन करते हुए दर्शाया गया है ।

 उसके कॉल के छह प्रकार की स्वर्ण मुद्राएं मिली है गरूड़ , अश्वमेघ , धनुर्धर ,  याध्रहंता , परसु  और वीणा सारण ।

 समुद्रगुप्त ने अश्वमेध पराक्रमांक की उपाधि धारण की थी ।

 श्रीगुप्त ----- आदिराज
घटोत्कच ----- महाराज
चंद्रगुप्त ---- महाराजाधिराज
 चंद्रगुप्त द्वितीय ---  विक्रमादित्य
 समुद्रगुप्त ---- पराक्रमांक
 कुमार गुप्त ----  महेंद्रादित्य , शक्रादित्य
 स्कन्दगुप्त ---- क्रमादित्य



 रामगुप्त

समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद राम गुप्त शासक बना जो एक कमजोर राजा था ।



 उसके छोटे भाई चंद्रगुप्त द्वितीय ने उसकी हत्या कर दी और गुप्त वंश की गद्दी पर बैठा ।

 राजशेखर की काव्य मीमांसा एवं देवीचन्द्रगुप्तम   ने भी इस घटना का उल्लेख किया है ।




 चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य

चंद्रगुप्त द्वितीय समुद्रगुप्त एवं दत्तदेवी का पुत्र था ।

 उसके शासनकाल में गुप्त साम्राज्य अपने उत्कर्ष पर पहुंचा ।

 महरौली स्तंभ लेख में राजा चंद्र का वर्णन मिलता है जिसकी पहचान चंद्रगुप्त द्वितीय से की गई है ।

 इसे सांची के अभिलेख में देवराज एवं प्रवरसेन के अभिलेख में देवगुप्त कहा गया है ।

 उसने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक शासक रुद्रसेन द्वितीय से करवाया ।

उसके मरने के बाद उसका नाबालिक पुत्र उसका उत्तराधिकारी बना  , इस प्रकार प्रभावती स्वयंवर वास्तविक शासिका हुई ।

 वाकाटक की सहायता से चंद्रगुप्त द्वितीय ने शकों  को पराजित किया  , इस उपलक्ष्य में उसने चांदी के सिक्के चलाए ।

 इस विजय के बाद उसे शाकारी कहा गया और उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की ।

 चंद्रगुप्त द्वितीय के उदयगिरि अभिलेख के अनुसार उसका उद्देश्य संपूर्ण पृथ्वी को जीतना था ।

 उसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी,  उसने उज्जैन में दूसरी राजधानी स्थापित की  ।


 चंद्रगुप्त द्वितीय के समय ही चीनी बौध्द यात्री फाह्यान भारत आया था ।

 चंद्रगुप्त द्वितीय ने कालीदास को अपना दूत बनाकर कुंतल नरेश के दरबार में भेजा था ।

 चंद्रगुप्त द्वितीय के नौ रत्न

 कालिदास ,     अमर सिंह  ,  शन्कु ,  धनवंतरी
,  क्षपणक  ,  वेताल भट्ट , वररुचि , घटकर्पर ,  वाराह मितिर ।


 कुमारगुप्त प्रथम

 मंदसौर अभिलेख से कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल का वर्णन मिलता है ।

 सबसे अधिक 18 अभिलेख इसी के  मिले हैं ।

 तुमुन् अभिलेख में कुमारगुप्त प्रथम को शरद कालीन सूर्य कहा गया है ।

 नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त प्रथम के कार्यकाल में की गई थी ।

 बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था ।

 उसका शासन काल 40 वर्ष का था ।


 स्कंदगुप्त

गिरनार के प्रशासक चक्रपालित ने सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया था ।

 स्कंदगुप्त का भीतरी अभिलेख हुणों  द्वारा आक्रमण की जानकारी देता है ।

 स्कंदगुप्त ने प्रशासनिक सुविधा के उद्देश्य से अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया ।

 विष्णु गुप्ता गुप्त वंश का अंतिम शासक था ।



 B L Nayak



गुप्तकालीन प्रशासन पद्धति

 पेठ --- यह ग्राम समूह की इकाई थी , ग्राम  प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी ।

 ग्राम सभा ---- ग्राम का प्रशासन ग्राम सभा द्वारा संचालित होता था , जिसका मुखिया ग्रामीक  कहलाता था  एवं अन्य सदस्य महत्तर कहलाते थे ।

 ग्राम सभा को पंचमण्डली एवं ग्राम जनपद कहा जाता था ।



 गोप्ता --- यह देश का प्रशासक था जो सम्राट द्वारा सीधे नियुक्त किया जाता था ।


 सैन्य संगठन



सम्राट ---- यह सेना का अध्यक्ष होता था ।

 युवराज --- सम्राट के वृद्ध होने पर सेना की अध्यक्षता युवराज करता था ।

 गज सेना---  इसका  प्रधान अध्यक्ष  महापिलुपति होता था ।



 अश्व सेना ----- इसका   प्रधान अध्यक्ष महाश्वपति या भटाश्वपति होता था ।

 रणभाण्डाधिकृति --- सैन्य कार्य में आने वाली सामग्री की व्यवस्था एवं पूर्ति से संबंधित कर्मचारी ।



धार्मिक जीवन



 गुप्त काल में बौद्ध धर्म को राजा से मिलना समाप्त हो गया तथा भागवत धर्म केंद्र बिंदु बन गया ।

 इस काल में त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा , विष्णु  एवं  महेश की पूजा प्रारंभ हुई ।


 गुप्तकाल में मूर्तिपूजा ब्राह्मणीय  धर्म का सामान्य लक्षण हो गई ।


 चंद्रगुप्त द्वितीय एवं समुद्रगुप्त के सिक्कों पर विष्णु के वाहन गरुड़ का चित्र पाया जाता है  ,  जो कि गुप्त वंश का राजकीय चिन्ह भी था ।

 गंगधर अभिलेख में विष्णु को मधुसूदन कहा गया है ।

 गुप्त युग में मथुरा एवं वल्लभी में जैन सभाओं का आयोजन हुआ था ।




आर्थिक जीवन



 इस काल में पांच प्रकार की भूमि का उल्लेख मिलता है ---


 क्षेत्र भूमि ---- कृषि योग्य भूमि ।

 वास्तु भूमि ---- रहने योग्य भूमि ।

 चारागाह भूमि ---- पशुओं के चारा योग्य भूमि ।

 खिल भूमि -- जो भूमि जोतने योग्य नहीं हो ।

 अप्रहत भूमि --- बिना जोती  गई जंगली भूमि ।

 कर 1/4  से 1/6 भाग तक लिया जाता है ।

 भूमि कर संग्रह करने वाला पदाधिकारी ध्रुवाधिकरण कहलाता था ।

 व्यापारिक के कारवों  को नेतृत्व करने वाला व्यक्ति सार्थवाह कहलाता था ।

 इस काल में व्यापारियों तथा शिल्पियों के चार संगठन थे ---  निगम  , पुग ,  गण तथा श्रेणी ।

 श्रेणी के प्रधान को ज्येष्ठक  कहा जाता था ।

 सिंचाई के लिए राहत या घट यंत्र का प्रयोग होता था ।

 भूमि संबंधी विवादों को निपटाने वाला अधिकारी न्यायाधिकरणी  कहलाता था ।

 करणिक  व महापक्षपटलिक नामक पदाधिकारी भूमि अभिलेखों को सुरक्षित रखने का कार्य करते थे ।

 इस समय उज्जैन व्यापार का प्रमुख केंद्र था ।

 अजंता की  कुल 29 गुफाओं में से गुफा संख्या 16 ,  17 एवं 19 गुप्त काल से संबंधित है ।

 गुफा संख्या 16 में मरणासन्न राजकुमारी का चित्र है ।

 गोपाल संख्या 17 में जातक कथाओं का उल्लेख है ।

 अजंता की गुफाओं के चित्र बौद्ध धर्म के महायान शाखा से संबंधित है ।


 गुप्तकालीन साहित्य



 गुप्तकाल संस्कृत साहित्य का स्वर्ण युग है ।


 कालिदास को भारत का शेक्सपियर कहा जाता है ।

 मंदसौर प्रशस्ति की रचना वत्स  भट्टी ने की थी ।



प्रमुख लेखक व उनकी रचनाएं





 कालिदास --- अभिज्ञानशाकुंतलम ,  ऋतुसंहार ,  मालविकाग्निमित्रम् , कुमारसंभव ,  मेघदूत , रघुवंश ,  विक्रमोवंशीयम्


 भास ---- स्वपनवासवदत्तम , कर्णभारम् ,  चारुदत्तम्

 विष्णु शर्मा ---- पंचतंत्र

 बाणभट्ट ------ हर्षचरित

 विशाखदत्त ---- मुद्राराक्षस  , देवीचंद्रगुप्तम्

 शूद्रक --- मृच्छकटिकम्

भौमक  --- रावणार्जुनीयम्

 वत्स  भट्टी -----  रावण-वध

 राजशेखर ------- काव्यमीमांसा

अमर सिंह ----- अमरकोश

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