मौर्य साम्रज्य
कौटिल्य का अर्थशास्त्र मौर्य वंश के राजव्यवस्था की जानकारी देता है । यह 15 अधिकरणों में विभाजित है । इस ग्रन्थ की तुलना मैकियावेली के प्रिंस से की जाती है ।
मुद्राराक्षस की रचना विशाखदत्त ने की थी जो नन्द वंश के पतन और मौर्य वंश के उत्थान की जानकारी देता है ।
इंडिका की रचना मेगास्थनीज ने की थी जो मौर्यकाल के प्रशासन , समाज और अर्थव्यवस्था पर प्रकाश डालता है ।
युनानी लेखक जस्टिन के अनुसार चन्द्रगुप्त ने पुरे भारत पर विजय प
प्राप्त की ।
जूनागढ़ अभिलेख के अनुसार मौर्यकाल में सुदर्सन झील का निर्माण पुष्यगुप्त वैश्य ने गुजरात के सौराष्ट्र प्रान्त की सिंचाई के लिए करावाया ।
अशोक के अभलेख ब्राह्मी , खरोष्ठी , अरमाइक एवं ग्रीक लिपियों में मिलते हैं ।
अशोक के सर्वाधिक अभिलेख प्राकृत भाषा में मिलते हैं ।
अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम पढ़ने वाला विदेशी जेम्स प्रिंसेप (1837) था ।
भाब्रू अभिलेख में अशोक ने स्वयं को सम्राट कहा है ।
अशोक के 13 शिलालेख में कलिंग के युद्ध का वर्णन मिलता है।
अशोक के स्तंभलेख उनकी संख्या सात है। यह 6 स्थानों से प्राप्त हुए हैं यह स्थान है रामपुरवा, दिल्ली, मेरठ ,नंदगढ़ ,अरेराज और कौशांबी ।
मौर्यों की उत्पत्ति
चंद्रगुप्त मौर्य की जाति और उसका वंश विवाद का विषय है। उसके वंश से संबंधित विभिन्न मत हैं।
ब्राह्मण परंपरा के अनुसार शूद्र-- मुरा नामक स्त्री से उत्पन्न
महावंश के अनुसार- क्षत्रिय
परिशिष्ट पर्वन- मोरपालक का पुत्र
मुद्राराक्षस- वृषल जो संबंधित है शूद्र से
राजपूताना गजेटियर- राजपूत
राजनीतिक इतिहास
चंद्रगुप्त मौर्य:( 322- 298 ईसा पूर्व)
305 ईसा पूर्व में चाणक्य की सहायता से चंद्रगुप्त मौर्य ने पंजाब प्रांत के यूनानी शासक यूरेनस एवं सिकंदर के उत्तराधिकारी सेल्युकस को पराजित किया। ।
संघर्ष के बाद हुई संधि की शर्तों के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य को- हेरात, कंधार ,काबुल एवं बलूचिस्तान के प्रदेश प्राप्त हुए । चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिए ।
सेल्यूकस की पुत्री हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से हुआ सेल्यूकस ने मेगास्थनीज को अपना दूत बनाकर चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा जहां उसने इंण्डिका की रचना की।
गुप्त मौर्य के काल में स्थूललभद्र के नेतृत्व में पाटलिपुत्र में पहली जैन संगीति हुई ।
अपने जीवन के अंतिम समय में चंद्रगुप्त मौर्य जैन सन्यासी भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला अर्थात कर्नाटक चला गया जहां उसने चंद्र गिरी पर्वत पर चंद्रगुप्त बस्ती बसाई और सल्लेखना पद्धति से अपने प्राण त्याग दिए ।
मेगास्थनीज
अपने पाटलीपुत्र को पोली अमरोहा कहां है ।
उसके अनुसार भारतीय शिव और कृष्ण की पूजा करते थे ।
मेगस्थनीज कोटिल्य का वर्णन नहीं किया है।
चाणक्य/ कोटिल्य या विष्णुगुप्त
इनके पिता चमक थे ।
चाणक्य को भारत का मैकियावेली भी कहा जाता है।
कोटिल्य ने युद्ध के मामले में नैतिकता को गौण माना है।
बिंन्दुसार
चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बिन्दुसार गद्दी पर बैठा ।
बिंदुसार को अमित्रघात के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है--- शत्रुओं का नाश करने वाला ।
वह आजीवक संप्रदाय का अनुयायी था ।
दिव्यावदान के अनुसार बिंदुसार के शासनकाल में तक्षशिला में दो विद्रोह हुए, जिसे शांत करने के लिए उसने अशोक व सुसीम को भेजा ।
स्ट्रैबो के अनुसार बिंदुसार के दरबार में सीरियल शासक एण्टियोकसन प्रथम ने डायमेकस को अपना दूत बनाकर भेजा , जिसे मेगास्थनीज का उत्तराधिका री मा जाता है ।
टॉलेमी द्वितीय ने डायोनिसियस के अपना दूत बनाकर बिंदुसार के दरबार में भेजा ।
एथिनियस के अनुसार बिंदुसार ने एण्टियोक स से मदिरा , सूखे अंजीर एवं एक दार्शनिक भेजने का अनुरोध का किया था ।
प्रारंभ में चाणक्य बिंदुसार का प्रधानमंत्री था, परंतु बाद में खल्लाटक प्रधानमंत्री बना ।
तिब्बती लामा तारानाथ ने बिंदुसार को 16 राज्यों का विजेता कहा था ।
अशोक ( 273-232 इसा पूर्व )
बिंदुसार की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अशोक शासक बना, जो मौर्य राजाओं में सबसे महान हुआ ।
अशोक की माता सुभद्रांगी चंपा के एक ब्राह्मण की पुत्री थी ।
शासक बनने से पहले अशोक तक्षशिला एवं अवंतिक का गवर्नर रह चुका था ।
शासक बनने से पहले वह उज्जैन का गवर्नर था ।
असंधिमित्रा और कारुवाकी अशोक की पत्नियां थी ।
अशोक के अभिलेखों में कारुवाकी एवं उसके पुत्र तीवर का उल्लेख किया गया है।
बोद्ध ग्रंथ दिव्यावदान के अनुसार पद्मावती अशोक की एक अन्य पत्नी थी ।
नागदेवी अशोक की एक अन्य पत्नी थी, जिससे उत्पन्न पुत्र और पुत्री थे-- महेंद्र एवं संघमित्रा ।
अशोक के अभिलेखों में उसे देवाना़ंपिय और पियदसी कहा गया है ।
कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार अशोक ने श्रीनगर की स्थापना की थी।
अशोक ने 261 ईसा पूर्व में कलिं ग का युद्ध जीत लिया ।
खारवेल के हाथीगुंफा अभिलेख के अनुसार नं दराज इस समय कलिं ग का शासक था ।
इस युद्ध के बाद अशोक ने धम्म घोष अपना लिया ।
युद्ध के पश्चात अशोक न्यग्रोध के प्रवचन सुनकर बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुआ ।
उपगुप्त ने अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया ।
अशोक बौद्ध धर्म की स्थाविर शाखा का अनुयाई था
अशोक ने श्रीलं का में अपने पुत्र महें द्र और पुत्री सं घमित्रा को प्रचार के लिए भेजा ।
पां चवें शिलालेख के अनुसार उसने धर्म प्रचार के लिए धम्म महामात्रों की नियुक्ति की ।
अशोक ने आजजीवकों के लिए बराबर की पहाड़ियों में गुफाओं का निर्माण भी करवाया ।
अशोक के शासनकाल में तृतीय बौद्ध सं गीति का आयोजन पाटलिपुत्र में हुआ ।
यूरोपियन लेखक अशोक की तुलना रोमन सम्राट कान्स्टेनटाइन से करते हैं ।
दशरथ
दशरथ अशोक का पुत्र था ।
दशरथ के शासनकाल में गया में स्थित नागार्जुन पहाड़ियों पर आजीवकों लिए तीन गुफाएं बनाई गई ।
दशरथ ने भी अशोक की भांति देवानांप्रिय की उपाधि ग्रहण की ।
वृहद्रथ
यह अंतिम मौर्य शासक था ।
इसकी हत्या एक ब्राह्मण मौर्य सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी और शुंग वंश की स्थापना की।
मौर्य काल की मुद्रा पण थी ।
अर्थ शास्त्र के अनुसार पुराणों की संख्या 18 है ।
पण्याध्यक्ष-- यह वाणिज्य व्यापार का अधिकारी होता था ।
सीताध्यक्ष-- यह कृषि विभाग का अधिकारी होता था
अक्षपटलिक-- यह महालेखाकार था ।
पौतवाध्यक्ष -- माप तौल का अधिकारी ।
रक्षिन -- पुलिस अधिकारी ।
चंद्रगुप्त मौर्य के समय चार प्रांत थे परंतु अशोक के शासन में पांच प्रांत हो गए ।
प्रांत का प्रशासक कुमारी आर्यपुत्र था , विषय का मुखिया विषयपति , ग्राम का प्रधान ग्रामीण और 10 ग्रामों का प्रधान ग्रामीण कहलाता था ।
मेगास्थनीज के अनुसार नगर प्रशासन के लिए छह समितियां थी प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे ।
महामात्याप्रसर्प -- यह गुप्तचर विभाग का प्रधान होता था ।
गूढपुरुष -- अर्थशास्त्र में गुप्तचर को गूढपुरुष कहा जाता था ।
संस्था -- एक जगह से होकर गुप्तचरी करने वाला ।
संचरा-- घूम-घूमकर गुप्तचरी करने वाला ।
नियोग प्रथा -- स्त्री का अपने देवर के साथ रहना ।
अनीष्कासीनी -- वह स्त्री जो घर के बाहर नहीं निकलती थी ।
रूपजीवा -- स्वतंत्र रूप से वेश्यावर्ती वेश्यावर्ति अपनाने वाली महिला ।
अदेवमातृका -- अर्थशास्त्र में अच्छी मिट्टी को अदेवमातृका गया है ।
अर्थशास्त्र के अनुसार दो प्रकार की भूमि थी - राजकीय एवं निजी ।
भाग्य -- कृषि की आय पर राज्य द्वारा लिया जाने वाला कर. ।
श्रेणी -- उद्योग की संस्थाएं श्रेणी कहलाती थी ।
ब्याज को रुपिका एवं परीक्षण कहा जाता था।ज
राजाप्रसाद --चंद्रगुप्त मौर्य का राजाप्रसाद लकड़ी का बना था पटना में 80 स्तंभ वाले राजाप्रसाद के अवशेष मिले हैं ।
अशोक के स्तंभ के निर्माण में चुनार के बलुआ पत्थर का उपयोग हुआ है ।
इन स्तंभों का निर्माण धर्म के प्रचार के लिए किया गया था ।
स्तूपों का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है ।
सांची का स्तूप पर भरहुत स्तंभ तथा सारनाथ स्थित धर्मराजिका स्तूप का निर्माण अशोक ने करवाया था ।
स्तूपों का निर्माण ईंटों से किया जाता था ।
मोर्य काल के विशिष्ट तथ्य
मौर्य वंश का राजकीय चिन्ह मयूर था ।
आम जनता की भाषा पाली थी ।
शिक्षा का प्रसिद्ध केंद्र तक्षशिला था ।
मोगली पुत्र तिस्स ने कथावत्थु की रचना की ।
नंद वंश के विनाश में चंद्रगुप्त ने कश्मीर के राजा प्रवर्तक की सहायता ली थी ।
अशोक ने तक्षशिला में विद्रोह के दमन के लिए कुणाल को भेजा था ।
अशोक के समय बुद्ध की मूर्ति पूजा का उल्लेख नहीं मिलता है ।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र मौर्य वंश के राजव्यवस्था की जानकारी देता है । यह 15 अधिकरणों में विभाजित है । इस ग्रन्थ की तुलना मैकियावेली के प्रिंस से की जाती है ।
मुद्राराक्षस की रचना विशाखदत्त ने की थी जो नन्द वंश के पतन और मौर्य वंश के उत्थान की जानकारी देता है ।
इंडिका की रचना मेगास्थनीज ने की थी जो मौर्यकाल के प्रशासन , समाज और अर्थव्यवस्था पर प्रकाश डालता है ।
युनानी लेखक जस्टिन के अनुसार चन्द्रगुप्त ने पुरे भारत पर विजय प
प्राप्त की ।
जूनागढ़ अभिलेख के अनुसार मौर्यकाल में सुदर्सन झील का निर्माण पुष्यगुप्त वैश्य ने गुजरात के सौराष्ट्र प्रान्त की सिंचाई के लिए करावाया ।
अशोक के अभलेख ब्राह्मी , खरोष्ठी , अरमाइक एवं ग्रीक लिपियों में मिलते हैं ।
अशोक के सर्वाधिक अभिलेख प्राकृत भाषा में मिलते हैं ।
अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम पढ़ने वाला विदेशी जेम्स प्रिंसेप (1837) था ।
भाब्रू अभिलेख में अशोक ने स्वयं को सम्राट कहा है ।
अशोक के 13 शिलालेख में कलिंग के युद्ध का वर्णन मिलता है।
अशोक के स्तंभलेख उनकी संख्या सात है। यह 6 स्थानों से प्राप्त हुए हैं यह स्थान है रामपुरवा, दिल्ली, मेरठ ,नंदगढ़ ,अरेराज और कौशांबी ।
मौर्यों की उत्पत्ति
चंद्रगुप्त मौर्य की जाति और उसका वंश विवाद का विषय है। उसके वंश से संबंधित विभिन्न मत हैं।
ब्राह्मण परंपरा के अनुसार शूद्र-- मुरा नामक स्त्री से उत्पन्न
महावंश के अनुसार- क्षत्रिय
परिशिष्ट पर्वन- मोरपालक का पुत्र
मुद्राराक्षस- वृषल जो संबंधित है शूद्र से
राजपूताना गजेटियर- राजपूत
राजनीतिक इतिहास
चंद्रगुप्त मौर्य:( 322- 298 ईसा पूर्व)
305 ईसा पूर्व में चाणक्य की सहायता से चंद्रगुप्त मौर्य ने पंजाब प्रांत के यूनानी शासक यूरेनस एवं सिकंदर के उत्तराधिकारी सेल्युकस को पराजित किया। ।
संघर्ष के बाद हुई संधि की शर्तों के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य को- हेरात, कंधार ,काबुल एवं बलूचिस्तान के प्रदेश प्राप्त हुए । चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिए ।
सेल्यूकस की पुत्री हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से हुआ सेल्यूकस ने मेगास्थनीज को अपना दूत बनाकर चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा जहां उसने इंण्डिका की रचना की।
गुप्त मौर्य के काल में स्थूललभद्र के नेतृत्व में पाटलिपुत्र में पहली जैन संगीति हुई ।
अपने जीवन के अंतिम समय में चंद्रगुप्त मौर्य जैन सन्यासी भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला अर्थात कर्नाटक चला गया जहां उसने चंद्र गिरी पर्वत पर चंद्रगुप्त बस्ती बसाई और सल्लेखना पद्धति से अपने प्राण त्याग दिए ।
मेगास्थनीज
अपने पाटलीपुत्र को पोली अमरोहा कहां है ।
उसके अनुसार भारतीय शिव और कृष्ण की पूजा करते थे ।
मेगस्थनीज कोटिल्य का वर्णन नहीं किया है।
चाणक्य/ कोटिल्य या विष्णुगुप्त
इनके पिता चमक थे ।
चाणक्य को भारत का मैकियावेली भी कहा जाता है।
कोटिल्य ने युद्ध के मामले में नैतिकता को गौण माना है।
बिंन्दुसार
चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बिन्दुसार गद्दी पर बैठा ।
बिंदुसार को अमित्रघात के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है--- शत्रुओं का नाश करने वाला ।
वह आजीवक संप्रदाय का अनुयायी था ।
दिव्यावदान के अनुसार बिंदुसार के शासनकाल में तक्षशिला में दो विद्रोह हुए, जिसे शांत करने के लिए उसने अशोक व सुसीम को भेजा ।
स्ट्रैबो के अनुसार बिंदुसार के दरबार में सीरियल शासक एण्टियोकसन प्रथम ने डायमेकस को अपना दूत बनाकर भेजा , जिसे मेगास्थनीज का उत्तराधिका री मा जाता है ।
टॉलेमी द्वितीय ने डायोनिसियस के अपना दूत बनाकर बिंदुसार के दरबार में भेजा ।
एथिनियस के अनुसार बिंदुसार ने एण्टियोक स से मदिरा , सूखे अंजीर एवं एक दार्शनिक भेजने का अनुरोध का किया था ।
प्रारंभ में चाणक्य बिंदुसार का प्रधानमंत्री था, परंतु बाद में खल्लाटक प्रधानमंत्री बना ।
तिब्बती लामा तारानाथ ने बिंदुसार को 16 राज्यों का विजेता कहा था ।
अशोक ( 273-232 इसा पूर्व )
बिंदुसार की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अशोक शासक बना, जो मौर्य राजाओं में सबसे महान हुआ ।
अशोक की माता सुभद्रांगी चंपा के एक ब्राह्मण की पुत्री थी ।
शासक बनने से पहले अशोक तक्षशिला एवं अवंतिक का गवर्नर रह चुका था ।
शासक बनने से पहले वह उज्जैन का गवर्नर था ।
असंधिमित्रा और कारुवाकी अशोक की पत्नियां थी ।
अशोक के अभिलेखों में कारुवाकी एवं उसके पुत्र तीवर का उल्लेख किया गया है।
बोद्ध ग्रंथ दिव्यावदान के अनुसार पद्मावती अशोक की एक अन्य पत्नी थी ।
नागदेवी अशोक की एक अन्य पत्नी थी, जिससे उत्पन्न पुत्र और पुत्री थे-- महेंद्र एवं संघमित्रा ।
अशोक के अभिलेखों में उसे देवाना़ंपिय और पियदसी कहा गया है ।
कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार अशोक ने श्रीनगर की स्थापना की थी।
अशोक ने 261 ईसा पूर्व में कलिं ग का युद्ध जीत लिया ।
खारवेल के हाथीगुंफा अभिलेख के अनुसार नं दराज इस समय कलिं ग का शासक था ।
इस युद्ध के बाद अशोक ने धम्म घोष अपना लिया ।
युद्ध के पश्चात अशोक न्यग्रोध के प्रवचन सुनकर बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुआ ।
उपगुप्त ने अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया ।
अशोक बौद्ध धर्म की स्थाविर शाखा का अनुयाई था
अशोक ने श्रीलं का में अपने पुत्र महें द्र और पुत्री सं घमित्रा को प्रचार के लिए भेजा ।
पां चवें शिलालेख के अनुसार उसने धर्म प्रचार के लिए धम्म महामात्रों की नियुक्ति की ।
अशोक ने आजजीवकों के लिए बराबर की पहाड़ियों में गुफाओं का निर्माण भी करवाया ।
अशोक के शासनकाल में तृतीय बौद्ध सं गीति का आयोजन पाटलिपुत्र में हुआ ।
यूरोपियन लेखक अशोक की तुलना रोमन सम्राट कान्स्टेनटाइन से करते हैं ।
दशरथ
दशरथ अशोक का पुत्र था ।
दशरथ के शासनकाल में गया में स्थित नागार्जुन पहाड़ियों पर आजीवकों लिए तीन गुफाएं बनाई गई ।
दशरथ ने भी अशोक की भांति देवानांप्रिय की उपाधि ग्रहण की ।
वृहद्रथ
यह अंतिम मौर्य शासक था ।
इसकी हत्या एक ब्राह्मण मौर्य सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी और शुंग वंश की स्थापना की।
मौर्य काल की मुद्रा पण थी ।
अर्थ शास्त्र के अनुसार पुराणों की संख्या 18 है ।
पण्याध्यक्ष-- यह वाणिज्य व्यापार का अधिकारी होता था ।
सीताध्यक्ष-- यह कृषि विभाग का अधिकारी होता था
अक्षपटलिक-- यह महालेखाकार था ।
पौतवाध्यक्ष -- माप तौल का अधिकारी ।
रक्षिन -- पुलिस अधिकारी ।
चंद्रगुप्त मौर्य के समय चार प्रांत थे परंतु अशोक के शासन में पांच प्रांत हो गए ।
प्रांत का प्रशासक कुमारी आर्यपुत्र था , विषय का मुखिया विषयपति , ग्राम का प्रधान ग्रामीण और 10 ग्रामों का प्रधान ग्रामीण कहलाता था ।
मेगास्थनीज के अनुसार नगर प्रशासन के लिए छह समितियां थी प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे ।
महामात्याप्रसर्प -- यह गुप्तचर विभाग का प्रधान होता था ।
गूढपुरुष -- अर्थशास्त्र में गुप्तचर को गूढपुरुष कहा जाता था ।
संस्था -- एक जगह से होकर गुप्तचरी करने वाला ।
संचरा-- घूम-घूमकर गुप्तचरी करने वाला ।
नियोग प्रथा -- स्त्री का अपने देवर के साथ रहना ।
अनीष्कासीनी -- वह स्त्री जो घर के बाहर नहीं निकलती थी ।
रूपजीवा -- स्वतंत्र रूप से वेश्यावर्ती वेश्यावर्ति अपनाने वाली महिला ।
अदेवमातृका -- अर्थशास्त्र में अच्छी मिट्टी को अदेवमातृका गया है ।
अर्थशास्त्र के अनुसार दो प्रकार की भूमि थी - राजकीय एवं निजी ।
भाग्य -- कृषि की आय पर राज्य द्वारा लिया जाने वाला कर. ।
श्रेणी -- उद्योग की संस्थाएं श्रेणी कहलाती थी ।
ब्याज को रुपिका एवं परीक्षण कहा जाता था।ज
राजाप्रसाद --चंद्रगुप्त मौर्य का राजाप्रसाद लकड़ी का बना था पटना में 80 स्तंभ वाले राजाप्रसाद के अवशेष मिले हैं ।
अशोक के स्तंभ के निर्माण में चुनार के बलुआ पत्थर का उपयोग हुआ है ।
इन स्तंभों का निर्माण धर्म के प्रचार के लिए किया गया था ।
स्तूपों का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है ।
सांची का स्तूप पर भरहुत स्तंभ तथा सारनाथ स्थित धर्मराजिका स्तूप का निर्माण अशोक ने करवाया था ।
स्तूपों का निर्माण ईंटों से किया जाता था ।
मोर्य काल के विशिष्ट तथ्य
मौर्य वंश का राजकीय चिन्ह मयूर था ।
आम जनता की भाषा पाली थी ।
शिक्षा का प्रसिद्ध केंद्र तक्षशिला था ।
मोगली पुत्र तिस्स ने कथावत्थु की रचना की ।
नंद वंश के विनाश में चंद्रगुप्त ने कश्मीर के राजा प्रवर्तक की सहायता ली थी ।
अशोक ने तक्षशिला में विद्रोह के दमन के लिए कुणाल को भेजा था ।
अशोक के समय बुद्ध की मूर्ति पूजा का उल्लेख नहीं मिलता है ।
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