गुप्तोत्तर काल
छठी शताब्दी के मध्य तक गुप्त साम्राज्य पूर्णतः विभक्त हो गया और उत्तर भारत फिर अनेक राज्यों में बंट गया ।
(1) वल्लभी में मैत्रक वंश , (2) पंजाब में हुणों का शासन (3) कन्नौज में मौखरि वंश (4) मालवा में यशोवर्मन
वर्ध्दन राजवंश ( पुष्यभूति वंश)
पुष्यभूति -- इस वंश का संस्थापक था , इसने थानेसर में इस वंश की स्थापना की ।
प्रभाकरवर्ध्दन ---यह वर्ध्दन वंश की शक्ति और प्रतिष्ठा का संस्थापक था ।
प्रभाकरवर्ध्दन की पत्नी यशोमती से 2 पुत्र राज्यवर्धन एवं हर्षवर्धन तथा एक कन्या राज्यश्री उत्पन्न हुई ।
राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरि नरेश ग्रहवर्मन से हुआ ।
राज्यवर्ध्दन -- अपने पिता की मृत्यु के बाद राज्यवर्ध्दन गद्दी पर बैठा ।
इसी समय मालवा नरेश देवगुप्त ने ग्रहवर्मन की हत्या कर राज्यश्री को कैद कर लिया ।
राज्यवर्धन ने देवगुप्त को पराजित कर दिया परंतु देवगुप्त के मित्र गौर शासक संसार ने धोखे से राज्यवर्धन की हत्या कर दी ।
हर्षवर्धन
हर्षवर्धन वर्धन वंश का शक्तिशाली एवं यशस्वी सम्राट था मात्र 16 वर्ष की आयु में वह एक विकट परिस्थितियों में गद्दी पर बैठा ।
वह अपने को राजपुत्र कहता था , तथा उसने अपना नाम शिलादित्य रखा ।
हर्ष ने अपने आचार्य दिवाकरमित्र की सहायता से राज्यश्री को खोज निकाला ।
हर्ष ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया ।
हर्ष को पूर्वी भारत में गौड़ देश के शैव राजा शंशाक से मुकाबला करना पड़ा ।
619 ईस्वी में शंशाक की मृत्यु हुई तब यह शत्रुता समाप्त हुई ।
दक्षिण की ओर हर्ष के अभियान को नर्मदा के किनारे चालुक्य वंश के राजा पुलकेशिन द्वितीय ने रोका और हर्ष को पराजित किया ।
हर्ष के समकालीन शासक
भास्कर वर्मा
पुलकेशिन द्वितीय
गौड़ नरेश शंशाक
ध्रुवसेन द्वितीय
चीनी यात्री हेनसांग हर्ष के समय भारत आया था ।
हेनसांग ने शूद्रों को कृषक कहा था ।
हेनसांग को यात्रियों का राजकुमार , नीति का पंडित एवं वर्तमान शाक्यमुनि कहा गया है ।
हर्ष ने बौद्ध धर्म की महायान शाखा को अपना सरंक्षण प्रदान किया ।
बाणभट्ट ने हर्षचरित एवं कादंबरी की रचना की ।
मयूर ने सूर्यशतक की रचना की ।
छठी शताब्दी के मध्य तक गुप्त साम्राज्य पूर्णतः विभक्त हो गया और उत्तर भारत फिर अनेक राज्यों में बंट गया ।
(1) वल्लभी में मैत्रक वंश , (2) पंजाब में हुणों का शासन (3) कन्नौज में मौखरि वंश (4) मालवा में यशोवर्मन
वर्ध्दन राजवंश ( पुष्यभूति वंश)
पुष्यभूति -- इस वंश का संस्थापक था , इसने थानेसर में इस वंश की स्थापना की ।
प्रभाकरवर्ध्दन ---यह वर्ध्दन वंश की शक्ति और प्रतिष्ठा का संस्थापक था ।
प्रभाकरवर्ध्दन की पत्नी यशोमती से 2 पुत्र राज्यवर्धन एवं हर्षवर्धन तथा एक कन्या राज्यश्री उत्पन्न हुई ।
राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरि नरेश ग्रहवर्मन से हुआ ।
राज्यवर्ध्दन -- अपने पिता की मृत्यु के बाद राज्यवर्ध्दन गद्दी पर बैठा ।
इसी समय मालवा नरेश देवगुप्त ने ग्रहवर्मन की हत्या कर राज्यश्री को कैद कर लिया ।
राज्यवर्धन ने देवगुप्त को पराजित कर दिया परंतु देवगुप्त के मित्र गौर शासक संसार ने धोखे से राज्यवर्धन की हत्या कर दी ।
हर्षवर्धन
हर्षवर्धन वर्धन वंश का शक्तिशाली एवं यशस्वी सम्राट था मात्र 16 वर्ष की आयु में वह एक विकट परिस्थितियों में गद्दी पर बैठा ।
वह अपने को राजपुत्र कहता था , तथा उसने अपना नाम शिलादित्य रखा ।
हर्ष ने अपने आचार्य दिवाकरमित्र की सहायता से राज्यश्री को खोज निकाला ।
हर्ष ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया ।
हर्ष को पूर्वी भारत में गौड़ देश के शैव राजा शंशाक से मुकाबला करना पड़ा ।
619 ईस्वी में शंशाक की मृत्यु हुई तब यह शत्रुता समाप्त हुई ।
दक्षिण की ओर हर्ष के अभियान को नर्मदा के किनारे चालुक्य वंश के राजा पुलकेशिन द्वितीय ने रोका और हर्ष को पराजित किया ।
हर्ष के समकालीन शासक
भास्कर वर्मा
पुलकेशिन द्वितीय
गौड़ नरेश शंशाक
ध्रुवसेन द्वितीय
चीनी यात्री हेनसांग हर्ष के समय भारत आया था ।
हेनसांग ने शूद्रों को कृषक कहा था ।
हेनसांग को यात्रियों का राजकुमार , नीति का पंडित एवं वर्तमान शाक्यमुनि कहा गया है ।
हर्ष ने बौद्ध धर्म की महायान शाखा को अपना सरंक्षण प्रदान किया ।
बाणभट्ट ने हर्षचरित एवं कादंबरी की रचना की ।
मयूर ने सूर्यशतक की रचना की ।
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