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Wednesday, 3 January 2018

प्रत्यास्थता by bajrang Lal

          प्रत्यास्थता  

प्रत्यास्थता -- किसी पिंड पर जब बाहरी बल लगाया जाता है तब पिंड का परिमाप या रूप अथवा दोनों में परिवर्तन होता है  बल हटा लिए जाने के बाद वह अपने            
प्रारंभिक स्थिति में आने का प्रयास करता है    पिंड के इस गुण को प्रत्यास्थता कहते हैं


 कुछ वस्तुएं ऐसी होती हैं जिनमें विरूपक बल हटा लेने पर भी वह अपना रुप या आकार प्राप्त कर पाती हैं तो वह पूर्ण प्लास्टिक कहलाते हैं  तथा यह गुण सुघटयता  कहलाता है

 जैसे --  गीली मिट्टी ,  गूंथा हुआ आटा ।  

 प्रतिबल ---  पिंड को विकृति करने के लिए जब उस पर कोई  बाहरी बल लगता है तो पिंड के अंदर आंतरिक प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है  यह प्रतिक्रिया बाहरी बल का विरोध करती है   तथा विरूपक बल को हटा लिए जाने पर पिंड को मूल अवस्था में लाने का प्रयास करती है  साम्यावस्था में बाहरी बल एवं प्रतिबल बराबर होते हैं

 अतः पिंड की इकाई क्षेत्रफल में आंतरिक प्रतिक्रिया या प्रत्यानयन बल को प्रतिबल कहा जाता है

 प्रतिबल = F/A

F =  पिंड पर लगने वाला बल
A = अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल

 विकृति  --- विरूपक बल के लगने पर पिंड के आकार या परिमाप में परिवर्तन होता है इसे पिंड की विकृति कहते हैं

 विकृति तीन प्रकार की होती है

(1).  अनुदैर्ध्य विकृति
(2). आयतन विकृति
(3). विरूपक विकृति


अनुदैर्ध्य विकृति  =  लंबाई में परिवर्तन / प्रारंभिक लंबाई

आयतन विकृति  =  आयतन में परिवर्तन / प्रारंभिक आयतन

 विरूपक विकृति जब पिंड में उत्पन्न विकृति ऐसी होती है कि वस्तु के रुप या आकार में ही परिवर्तन होता है   न की आयतन में तो ऐसी विकृति विरूपक / विरूपण कहलाती है


 हुक का नियम  --- प्रत्यास्थता सीमा के अंदर प्रतिबल एवं विकृति एक दूसरे के समानुपाती होते हैं इसे हुक का नियम कहते हैं

 प्रतिबल = E × विकृति

  E को प्रत्यास्थता गुणांक कहते हैं

 प्रत्यास्थता यंग गुणांक -- अनुदैर्ध्य प्रतिबल एवं अनुदैर्ध्य विकृति के अनुपात को प्रत्यास्थता यंग गुणांक कहते हैं

इसे Y  से व्यक्त किया जाता है


 Y = अनुदैर्ध्य प्रतिबल / अनुदैर्ध्य विकृति

 प्वासो  का अनुपात  --  माना की एक तार की मूल लंबाई l तथा व्यास D , यदि इस तार पर एक भार  F  लटकाया जाता है तो तार की लंबाई में वृद्धि होती है व्यास में परिवर्तन होता है

 पार्श्विक विकृति = व्यास में परिवर्तन / मूल व्यास

 अनुदैर्ध्य विकृति  = लंबाई में परिवर्तन /  मूल लंबाई

 पार्श्विक विकृति एवं अनुदैर्ध्य विकृति के अनुपात को प्वासो का अनुपात कहते हैं इसे O सूचित करते हैं

O = पार्श्विक विकृति / अनुदैर्ध्य विकृति

 इसका मान ठोस के लिए  -1  से 1/2 के बीच होता है


 प्रत्यास्थता सीमा --  विरूपक बल का वह अधिकतम मान जिससे आगे बढ़ने पर पिंड अपने प्रत्यास्थता के गुणों को खो देता है  प्रत्यास्थता सीमा कहलाती है

 पराभव बिंदु -- प्रत्यास्थता सीमा के ऊपर जाने पर एक बिंदु ऐसा मिलता है जहां से पिंडो में अपने ही भार के कारण विरूपण होना प्रारंभ हो जाता है    इसी बिंदु को पराभव बिंदु कहा जाता है

 द्रवों  की प्रत्यास्थता --  द्रवों का अपना खास आकार नहीं होता अतः इसकी अनुदैर्ध्य और विरूपक विकृति नहीं होती ,  उनमें केवल आयतन विकृति होती है   केवल आयतन प्रत्यास्थता होती है



  

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