सिंधु घाटी सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता की विस्तार अवधि 2350 - 1750 ईसापूर्व थी
सर्वप्रथम 1921 ईस्वी में रायबहादुर दयाराम साहनी ने हड़पा नामक स्थान पर इसके अवशेष खोजे थे
1922 - 23 ईसवी में राखल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो स्थल की खुदाई कराई , यहां से पशुपति की मूर्ति , नर्तकी की कांस्य मूर्ति तथा विशाल स्नानागार व स्नानागार के अवशेष प्राप्त हुए हैं
कालीबंगा से जूते हुए खेत , अग्नि वेदिका
तथा रोपड़ से मानव के साथ कुत्ते को दफनाने के साथ से मिले हैं
लोथल इस सभ्यता का एकमात्र बंदरगाह था
इस सभ्यता की महत्वपूर्ण विशेषता नगर योजना थी
नगरों में सड़कें व मकान विधिवत बनाए गए थे मकान पक्की ईंटों के बने होते थे तथा सड़के सीधी थी
नगरों में अनाज के भंडारण के लिए अना नगर बने थे
कृषि तथा पशुपालन के साथ-साथ उद्योग एवं व्यापार की अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार थे वस्त्र निर्माण इस काल का प्रमुख उद्योग था
सूती वस्त्रों के अवशेषों से ज्ञात होता है कि यहां के निवासी कपास उगाना भी जानते थे
विश्व में सर्वप्रथम यहीं के निवासियों ने कपास की खेती प्रारंभ की थी
यहां के निवासी वस्तु-विनिमय द्वारा व्यापार किया करते थे
मातृदेवी के संप्रदाय का सिंधु संस्कृति में प्रमुख स्थान था मातृदेवी की ही भांति देवता की उपासना में भी बलि का विधान था
यहां पर पशुपतिनाथ , महादेव , लिंग , योनि , वृक्षों तथा पशुओं की पूजा की जाती थी
यह लोग भूत प्रेत , अंधविश्वास व जादू टोना पर भी विश्वास करते थे
दुर्भाग्यवश अभी तक सिंधु सभ्यता की लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है इसमें चित्र और अक्षर दोनों ही ज्ञात होते हैं ।
सिंधु घाटी सभ्यता की विस्तार अवधि 2350 - 1750 ईसापूर्व थी
सर्वप्रथम 1921 ईस्वी में रायबहादुर दयाराम साहनी ने हड़पा नामक स्थान पर इसके अवशेष खोजे थे
1922 - 23 ईसवी में राखल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो स्थल की खुदाई कराई , यहां से पशुपति की मूर्ति , नर्तकी की कांस्य मूर्ति तथा विशाल स्नानागार व स्नानागार के अवशेष प्राप्त हुए हैं
कालीबंगा से जूते हुए खेत , अग्नि वेदिका
तथा रोपड़ से मानव के साथ कुत्ते को दफनाने के साथ से मिले हैं
लोथल इस सभ्यता का एकमात्र बंदरगाह था
इस सभ्यता की महत्वपूर्ण विशेषता नगर योजना थी
नगरों में सड़कें व मकान विधिवत बनाए गए थे मकान पक्की ईंटों के बने होते थे तथा सड़के सीधी थी
नगरों में अनाज के भंडारण के लिए अना नगर बने थे
कृषि तथा पशुपालन के साथ-साथ उद्योग एवं व्यापार की अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार थे वस्त्र निर्माण इस काल का प्रमुख उद्योग था
सूती वस्त्रों के अवशेषों से ज्ञात होता है कि यहां के निवासी कपास उगाना भी जानते थे
विश्व में सर्वप्रथम यहीं के निवासियों ने कपास की खेती प्रारंभ की थी
यहां के निवासी वस्तु-विनिमय द्वारा व्यापार किया करते थे
मातृदेवी के संप्रदाय का सिंधु संस्कृति में प्रमुख स्थान था मातृदेवी की ही भांति देवता की उपासना में भी बलि का विधान था
यहां पर पशुपतिनाथ , महादेव , लिंग , योनि , वृक्षों तथा पशुओं की पूजा की जाती थी
यह लोग भूत प्रेत , अंधविश्वास व जादू टोना पर भी विश्वास करते थे
दुर्भाग्यवश अभी तक सिंधु सभ्यता की लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है इसमें चित्र और अक्षर दोनों ही ज्ञात होते हैं ।
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