चोल साम्राज्य का संस्थापक विजयालय था , जो पहले पल्लवों का सामान था ।
उसने 850 ईसवी में तंजावुर पर कब्जा किया और उसे अपनी राजधानी बनाया ।
यहां उसने निशुम्भसूदिवीदेवी का मंदिर बनवाया ।
आदित्य प्रथम ( 871 - 937 ई.)
871 ईस्वी में विजयालय के पुत्र आदित्य प्रथम ने चोल राजगद्दी संभाली ।
उसने चोल साम्राज्य को पल्लवों से मुक्त करवाया ।
उसने कावेरी नदी के तट पर एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया था ।
परान्तक प्रथम ( 907 - 955 ईसवी )
यह आदित्य प्रथम का पुत्र था , इसने पाण्डय शासक राजसिंह द्वितीय को पराजित कर मदुरा को जीता ।
इस उपलक्ष में उसने मदुान्तक एवं मदुराइकाेण्ड की उपाधि धारण की ।
राजराज प्रथम ( 985 - 1014 ईस्वी )
985 ईस्वी में परान्तक द्वितीय ( सुंदर चोल ) का पुत्र अरिनोलिवर्मन प्रथम ( राजराज प्रथम ) चोल शासक बना ।
तंजौर अभिलेख से उसके युद्ध अभियानों का वर्णन मिलता है ।
उसने केरल राज्य पर आक्रमण कर केरल के शासक भास्कर रविवर्मन को पराजित किया ।
इस उपलक्ष में उसने कांडलूर शालैकलमरुत् की उपाधि धारण की ।
अपनी नौसेना के उपयोग से उसने श्रीलंका की राजधानी अनुराधापुर पर आक्रमण कर वहां के नरेश महेंद्र पंचम को पराजित किया ।
वह शैव धर्मावलंबी था , और उसने शिवपादशेखर की उपाधि ग्रहण की थी ।
उसके द्वारा निर्मित तंजौर का राजराजेश्वर मंदिर द्रविड़ स्थापत्य कला का अद्वितीय उदाहरण है ।
राजेन्द्र प्रथम ( 1014 - 1044 ईस्वी )
राजेन्द्र प्रथम अपने पिता राजराज प्रथम की भांति साम्राज्यवादी शासक था ।
उसने समस्त श्रीलंका को चोल साम्राज्य में मिला लिया ।
राजेन्द्र प्रथम ने बंगाल के शासक महीपाल को पराजित किया ।
इस उपलक्ष में उसने गंगैकाेण्डचोल की उपाधि भी धारण की ।
चोलकालीन शासन प्रणाली
चोल शासन प्रणाली राजतंत्रात्मक थी ।
चोल शासकों की प्रारंभिक राजधानी उरैयूर थी ।
विजयालय ने तंजौर को अपनी राजधानी बनाया ।
चोल राजतंत्र का राजा वंशानुगत आधार पर सत्ता अधिकारी होता था ।
राजा चोलशासन व्यवस्था का सर्वोच्च अधिकारी होता था ।
चोल शासकों की प्रशासनिक इकाई
मण्डलम --- प्रांत
कोट्टम --- कमिश्नरी
नाडु ---- जिला
कुर्रम --- ग्रामों का संघ
चोल साम्राज्य 6 प्रांतों में बंटा था , जिसे मण्डलम कहा जाता था ।
मण्डलम प्रशासन से लेकर ग्राम प्रशासन तक शासकीय कार्य में सहायता हेतु स्थानीय सभाएं होती थी ।
नाट्टम -- नाडु की स्थानीय सभा
नगरस्तार --- नगर की स्थानीय सभा
श्रेणी --- व्यवसायियों की सभा
पूग ---- शिल्पियों की सभा
चोल काल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू उनकी स्थानीय ग्रामीण स्वशासन व्यवस्था थी ।
चोल केंद्रीय पदाधिकारियों में उच्च पदाधिकारियों को पेसन्दरम तथा निम्न कोटि के अधिकारियों को शेरुतरम कहा जाता था ।
उर --- उर एक सामान्य प्रकार की ग्राम सभा थी , जिसमें ग्राम ,पुर या नगर दोनों सम्मिलित थे ।
इसकी कार्यकारिणी समिति को आलुंगणम् कहा जाता था ।
इसका प्रमुख कार्य था - अपने प्रतिनिधियों से दस्तावेजों के मसौद तैयार कराकर उसे लिपिबद्ध कराना ।
सभा -- यह मूल रूप से अग्रहरों तथा ब्राह्मण बस्तियों के संस्था थी ।
इससे पूरुगुरि कहा जाता था , इसके सदस्यों को पैरु मक्कल कहा जाता था ।
नगराम् -- यह व्यापारी समुदाय की सभा थी ।
चोल काल में प्रमुख कर
आयम --- राजस्व कर
मरमज्जाडि -- उपयोगी वृक्ष कर
कडमै --- सुपारी की बागात पर कर
मनैइरै -- गृह कर
कढैइरै --- व्यापारिक प्रतिष्ठान कर
कडिमै --- लगान कर
मगन्मै -- लोहाकार , कुम्भहार , बढई आदि के पेशे पर लगने वाला कर ।
राजस्व विभाग का प्रमुख अधिकारी वरित्पोतगक्क कहलाता था , भूमि कर उपज का एक तिहाई भाग था ।
चोल कला की धातु मूर्तियों में नटराज शिव की कांस्य मूर्तियां सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं ।
उसने 850 ईसवी में तंजावुर पर कब्जा किया और उसे अपनी राजधानी बनाया ।
यहां उसने निशुम्भसूदिवीदेवी का मंदिर बनवाया ।
आदित्य प्रथम ( 871 - 937 ई.)
871 ईस्वी में विजयालय के पुत्र आदित्य प्रथम ने चोल राजगद्दी संभाली ।
उसने चोल साम्राज्य को पल्लवों से मुक्त करवाया ।
उसने कावेरी नदी के तट पर एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया था ।
परान्तक प्रथम ( 907 - 955 ईसवी )
यह आदित्य प्रथम का पुत्र था , इसने पाण्डय शासक राजसिंह द्वितीय को पराजित कर मदुरा को जीता ।
इस उपलक्ष में उसने मदुान्तक एवं मदुराइकाेण्ड की उपाधि धारण की ।
राजराज प्रथम ( 985 - 1014 ईस्वी )
985 ईस्वी में परान्तक द्वितीय ( सुंदर चोल ) का पुत्र अरिनोलिवर्मन प्रथम ( राजराज प्रथम ) चोल शासक बना ।
तंजौर अभिलेख से उसके युद्ध अभियानों का वर्णन मिलता है ।
उसने केरल राज्य पर आक्रमण कर केरल के शासक भास्कर रविवर्मन को पराजित किया ।
इस उपलक्ष में उसने कांडलूर शालैकलमरुत् की उपाधि धारण की ।
अपनी नौसेना के उपयोग से उसने श्रीलंका की राजधानी अनुराधापुर पर आक्रमण कर वहां के नरेश महेंद्र पंचम को पराजित किया ।
वह शैव धर्मावलंबी था , और उसने शिवपादशेखर की उपाधि ग्रहण की थी ।
उसके द्वारा निर्मित तंजौर का राजराजेश्वर मंदिर द्रविड़ स्थापत्य कला का अद्वितीय उदाहरण है ।
राजेन्द्र प्रथम ( 1014 - 1044 ईस्वी )
राजेन्द्र प्रथम अपने पिता राजराज प्रथम की भांति साम्राज्यवादी शासक था ।
उसने समस्त श्रीलंका को चोल साम्राज्य में मिला लिया ।
राजेन्द्र प्रथम ने बंगाल के शासक महीपाल को पराजित किया ।
इस उपलक्ष में उसने गंगैकाेण्डचोल की उपाधि भी धारण की ।
चोलकालीन शासन प्रणाली
चोल शासन प्रणाली राजतंत्रात्मक थी ।
चोल शासकों की प्रारंभिक राजधानी उरैयूर थी ।
विजयालय ने तंजौर को अपनी राजधानी बनाया ।
चोल राजतंत्र का राजा वंशानुगत आधार पर सत्ता अधिकारी होता था ।
राजा चोलशासन व्यवस्था का सर्वोच्च अधिकारी होता था ।
चोल शासकों की प्रशासनिक इकाई
मण्डलम --- प्रांत
कोट्टम --- कमिश्नरी
नाडु ---- जिला
कुर्रम --- ग्रामों का संघ
चोल साम्राज्य 6 प्रांतों में बंटा था , जिसे मण्डलम कहा जाता था ।
मण्डलम प्रशासन से लेकर ग्राम प्रशासन तक शासकीय कार्य में सहायता हेतु स्थानीय सभाएं होती थी ।
नाट्टम -- नाडु की स्थानीय सभा
नगरस्तार --- नगर की स्थानीय सभा
श्रेणी --- व्यवसायियों की सभा
पूग ---- शिल्पियों की सभा
चोल काल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू उनकी स्थानीय ग्रामीण स्वशासन व्यवस्था थी ।
चोल केंद्रीय पदाधिकारियों में उच्च पदाधिकारियों को पेसन्दरम तथा निम्न कोटि के अधिकारियों को शेरुतरम कहा जाता था ।
उर --- उर एक सामान्य प्रकार की ग्राम सभा थी , जिसमें ग्राम ,पुर या नगर दोनों सम्मिलित थे ।
इसकी कार्यकारिणी समिति को आलुंगणम् कहा जाता था ।
इसका प्रमुख कार्य था - अपने प्रतिनिधियों से दस्तावेजों के मसौद तैयार कराकर उसे लिपिबद्ध कराना ।
सभा -- यह मूल रूप से अग्रहरों तथा ब्राह्मण बस्तियों के संस्था थी ।
इससे पूरुगुरि कहा जाता था , इसके सदस्यों को पैरु मक्कल कहा जाता था ।
नगराम् -- यह व्यापारी समुदाय की सभा थी ।
चोल काल में प्रमुख कर
आयम --- राजस्व कर
मरमज्जाडि -- उपयोगी वृक्ष कर
कडमै --- सुपारी की बागात पर कर
मनैइरै -- गृह कर
कढैइरै --- व्यापारिक प्रतिष्ठान कर
कडिमै --- लगान कर
मगन्मै -- लोहाकार , कुम्भहार , बढई आदि के पेशे पर लगने वाला कर ।
राजस्व विभाग का प्रमुख अधिकारी वरित्पोतगक्क कहलाता था , भूमि कर उपज का एक तिहाई भाग था ।
चोल कला की धातु मूर्तियों में नटराज शिव की कांस्य मूर्तियां सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं ।
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