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Saturday, 4 November 2017

चोल साम्राज्य by bajrang Lal

 चोल साम्राज्य का संस्थापक विजयालय था , जो पहले पल्लवों का सामान था ।

 उसने 850 ईसवी में तंजावुर पर कब्जा किया और उसे अपनी राजधानी बनाया ।

 यहां उसने निशुम्भसूदिवीदेवी का मंदिर बनवाया ।


 आदित्य प्रथम ( 871 - 937 ई.)


 871 ईस्वी में विजयालय के पुत्र आदित्य प्रथम ने चोल राजगद्दी संभाली ।

 उसने चोल साम्राज्य को पल्लवों से मुक्त करवाया ।

 उसने कावेरी नदी के तट पर एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया था ।



 परान्तक प्रथम ( 907 - 955 ईसवी )



 यह आदित्य प्रथम का पुत्र था , इसने पाण्डय शासक राजसिंह  द्वितीय को पराजित कर मदुरा को जीता ।

 इस उपलक्ष में उसने मदुान्तक एवं मदुराइकाेण्ड की उपाधि धारण की ।



 राजराज प्रथम ( 985 - 1014 ईस्वी )

 985 ईस्वी में परान्तक द्वितीय ( सुंदर चोल ) का पुत्र अरिनोलिवर्मन प्रथम ( राजराज प्रथम ) चोल शासक बना ।

 तंजौर अभिलेख से उसके युद्ध अभियानों का वर्णन मिलता है ।

 उसने केरल राज्य पर आक्रमण कर केरल के शासक भास्कर रविवर्मन को पराजित किया ।

 इस उपलक्ष में उसने कांडलूर शालैकलमरुत् की उपाधि धारण की ।



 अपनी नौसेना के उपयोग से उसने श्रीलंका की राजधानी अनुराधापुर पर आक्रमण कर वहां के नरेश महेंद्र पंचम को पराजित किया ।

  वह शैव  धर्मावलंबी था , और उसने शिवपादशेखर की उपाधि ग्रहण की थी ।

 उसके द्वारा निर्मित तंजौर का राजराजेश्वर मंदिर द्रविड़ स्थापत्य कला का अद्वितीय उदाहरण है ।



 राजेन्द्र प्रथम ( 1014 - 1044 ईस्वी )



 राजेन्द्र प्रथम अपने पिता राजराज प्रथम की भांति साम्राज्यवादी शासक था ।

 उसने समस्त श्रीलंका को चोल साम्राज्य में मिला लिया ।

 राजेन्द्र प्रथम ने बंगाल के शासक महीपाल को पराजित किया ।



 इस उपलक्ष में उसने गंगैकाेण्डचोल की उपाधि भी धारण की ।




 चोलकालीन शासन प्रणाली

 चोल शासन प्रणाली राजतंत्रात्मक थी ।

 चोल शासकों की प्रारंभिक राजधानी उरैयूर थी ।

 विजयालय ने तंजौर को अपनी राजधानी बनाया ।

 चोल राजतंत्र का राजा वंशानुगत आधार पर सत्ता अधिकारी होता था ।

 राजा चोलशासन व्यवस्था का सर्वोच्च अधिकारी होता था ।


 चोल शासकों की प्रशासनिक इकाई

 मण्डलम --- प्रांत
कोट्टम ---  कमिश्नरी
नाडु ----    जिला
कुर्रम ---  ग्रामों का संघ


 चोल साम्राज्य 6 प्रांतों में बंटा था  , जिसे मण्डलम कहा जाता था ।

 मण्डलम प्रशासन से लेकर ग्राम प्रशासन तक शासकीय कार्य में सहायता हेतु स्थानीय सभाएं होती थी ।



 नाट्टम --  नाडु की स्थानीय सभा
 नगरस्तार --- नगर की स्थानीय सभा
श्रेणी --- व्यवसायियों की सभा
 पूग ----  शिल्पियों की सभा


 चोल काल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू उनकी स्थानीय ग्रामीण स्वशासन व्यवस्था थी ।

 चोल केंद्रीय पदाधिकारियों में उच्च पदाधिकारियों को पेसन्दरम  तथा निम्न कोटि के अधिकारियों को शेरुतरम  कहा जाता था ।



उर --- उर एक सामान्य प्रकार की  ग्राम सभा थी , जिसमें ग्राम  ,पुर  या नगर दोनों सम्मिलित थे ।

 इसकी कार्यकारिणी समिति को आलुंगणम्  कहा जाता था ।
इसका प्रमुख कार्य था - अपने प्रतिनिधियों से दस्तावेजों के मसौद तैयार कराकर उसे लिपिबद्ध कराना ।

 सभा -- यह मूल रूप से अग्रहरों  तथा ब्राह्मण बस्तियों के संस्था थी ।

 इससे पूरुगुरि कहा जाता था ,  इसके सदस्यों को पैरु मक्कल  कहा जाता था ।


 नगराम् --  यह व्यापारी समुदाय की सभा थी ।


 चोल काल में प्रमुख कर

 आयम --- राजस्व कर
 मरमज्जाडि --  उपयोगी वृक्ष कर
कडमै --- सुपारी की बागात पर कर
मनैइरै --  गृह कर
 कढैइरै ---  व्यापारिक प्रतिष्ठान कर
 कडिमै ---   लगान कर
मगन्मै --  लोहाकार , कुम्भहार , बढई आदि के पेशे  पर लगने वाला कर ।


 राजस्व विभाग का प्रमुख अधिकारी वरित्पोतगक्क  कहलाता था  , भूमि कर उपज का एक तिहाई  भाग था ।

 चोल कला की धातु मूर्तियों में नटराज शिव की कांस्य मूर्तियां सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं ।

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