भारत की जलवायु
किसी भी क्षेत्र की जलवायु को नियंत्रित करने वाले छ: प्रमुख कारक हैं - अक्षांश , ऊंचाई , वायुदाब एवं पवन तंत्र , समुद्र से दूरी , महासागरीय धाराएं एवं उच्चावच लक्षण ।
मानसून
मानसून शब्द की व्युत्पत्ति अरबी शब्द मौसिम से हुई है - जिसका शाब्दिक अर्थ है मौसम ।
मानसून की उत्पत्ति
मानसून की प्रक्रिया को समझने के लिए निम्नलिखित तथ्य महत्वपूर्ण है --
तापीय संकल्पना -- स्थल एवं जल के गर्म एवं ठंडे होने की प्रक्रिया के कारण भारत के स्थल भाग पर निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है , जबकि इसके आसपास के समुद्रों के ऊपर उच्च दाब का क्षेत्र बनता है ।
गतिक संकल्पना -- फ्लाेन के अनुसार ग्रीष्म ऋतु के दिनों में अंत: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति में गंगा के मैदान की ओर खिसक जाती है । इसे मानसून ऋतु में मानसून गर्त के नाम से भी जाना जाता है ।
सूर्य के उत्तरायण होने पर उत्तरी अभिसरण की सीमा 30° उत्तरी अक्षांश तक विस्तृत हो जाती है , इस स्थानांतरण के कारण भारतीय उपमहाद्वीप का अधिकांश भाग विषुववृत्तीय पछुआ पवनों के प्रभाव में आ जाता है , जो दक्षिणी पश्चिमी मानसून कहलाता है ।
शीत ऋतु में वायुदाब एवं पवन पेटियाँ दक्षिण की ओर स्थानांतरित हो जाती हैं , जिससे इस प्रदेश में उत्तर- पूर्वी व्यापारिक पवनें स्थापित हो जाती हैं , इन्हें उत्तर- पूर्वी मानसून कहते हैं ।
जेट धारा सिद्धांत
जेट धारा
यह एक संकरी पट्टी में स्थित क्षोभमंडल में 12000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली पश्चिमी हवाएँ होती हैं ( इनकी गति गर्मी में 110 किलोमीटर प्रति घंटा एवं सर्दी में 184 किलोमीटर प्रति घंटा होती है ) । बहुत सी अलग अलग जेट धाराओं को पहचाना गया है । उनमें सबसे स्थिर मध्य अक्षांशीय एवं उपोषण कटिबंधीय जेट धाराएं हैं ।
शीत ऋतु में हिमालय तथा तिब्बत के पठार के द्वारा उपस्थित अवरोध के कारण जेट धारा दो शाखाओं में बँट जाती है उत्तरी शाखा हिमालय तथा तिब्बत के पठार के उत्तर में तथा दक्षिणी शाखा इनके दक्षिण में बहती है ।
जेट धारा के दक्षिण में अफगानिस्तान तथा उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान के ऊपर निर्मित उच्च दाब के कारण उत्तर-पश्चिमी भारत के ऊपर व नीचे बैठती है ।
ग्रीष्म ऋतु में ध्रुव के ऊपर धरातलीय उच्च दाब क्षीण पड़ जाता है , तथा ऊपरी वायुमंडलीय परिध्रुवीय भंवर उत्तर की ओर खिसक जाता है ।
जेट धारा के तिब्बत के पठार के उत्तर की ओर खिसकने से उपमहाद्वीप के उत्तरी एवं उत्तरी पश्चिमी भाग के ऊपर मुक्त वायु के प्रभाव का वक्र का बन जाता है ।
उत्तरी ईरान एवं अफगानिस्तान के ऊपर एक गत्यात्मक गर्त विकसित हो जाता है , जो पहले से धरातल पर स्थापित तापीय गर्त के ऊपर स्थित होता है ।
यह परिघटना एक ट्रिगर का कार्य करती है , जिससे मानसून का विस्फोट होता है ।
4. महासागरीय राशियां
जब दक्षिण प्रशांत महासागर के उष्णकटिबंधीय पूर्वी भाग में उच्च दाब होता है , तब हिंद महासागर के उष्णकटिबंधीय पूर्वी भाग में निम्न दाब होता है , लेकिन कुछ विशेष वर्षों में वायुदाब की स्थिति विपरीत हो जाती है ।
दाब की अवस्था में इस नियत कालिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन कहते हैं ।
दाब की अवस्था का संबंध एलनीनो से है , इसलिए इस परिघटना को एलनीनो दक्षिणी दोलन ( ENSO - Alnino southern oscillation ) कहा जाता है ।
एल नीनो
ठंडी पेरू जलधारा के स्थान पर अस्थाई तौर पर गर्म जलधारा के विकास को एल नीनो कहा जाता है ।
यह धारा क्रिसमस के समय बहना शुरु करती है ।
ला नीनो
ला नीना , एल नीनो के विपरीत घटना है , जिसमें पूर्व एवं मध्यवर्ती प्रशांत महासागर का जल सामान्य से अधिक ठंडा होता है ।
मौसम की दशाएं
भारतीय मौसम विभाग ने वर्ष को चार ऋतु में बांटा है--
1. शीत ऋतु ( मध्य दिसंबर से मध्य मार्च तक )
2. ग्रीष्म ऋतु ( मध्य मार्च से मई तक )
3. वर्षा ऋतु ( जून से सितंबर तक )
4. लौटते हुए मानसून की ऋतु ( अक्टूबर से मध्य दिसंबर तक )
शीत ऋतु
भूमध्य भाग क्षेत्रों में उत्पन्न विक्षोभों के कारण उत्तर भारत में हल्की वर्षा होती है , साथ ही कश्मीर एवं हिमालय में भारी हिमपात भी होता है ।
उत्तर - पूर्वी मानसून के कारण शीत ऋतु में तमिलनाडु के कोरोमंडल तट पर भी वर्षा होती है ।
ग्रीष्म ऋतु
ग्रीष्म ऋतु में दाब एवं पवन संसार अस्थिर होता है ।
इस समय देश के विभिन्न भागों में स्थानीय पवने बहती हैं ।
लू -- उत्तरी मैदान में शुष्क गर्म पवनें ।
नार्वेस्टर ( काल बैशाखी ) -- पश्चिमी बंगाल एवं आसाम में गरज के साथ वर्षा होती है ।
मैंगो शावर ( आम्र वर्षा ) -- दक्षिण भारत में पूर्व- मानसूनी वर्षा , जिसे आम जल्दी पक जाते हैं ।
चेरी ब्लॉसम -- कर्नाटक में वर्षा जो कॉफी की खेती के लिए लाभदायक है ।
वर्षा ऋतु
प्रायद्वीप की आकृति के कारण मानसूनी पवने दो भागों में बंट जाती हैं --
1. अरब सागरीय शाखा
2. बंगाल की खाड़ी की शाखा
अरब सागर शाखा -- इसकी एक शाखा पश्चिमी घाट से टकराकर वहां भारी वर्षा करते हैं , तथा दूसरी शाखा सौराष्ट्र एवं कच्छ के तटों को पार करके पश्चिमी राजस्थान एवं अरावली के ऊपर पंजाब एवं हरियाणा में पहुंचती है ।
बंगाल की खाड़ी की शाखा -- यह म्यांमार के अराकन तट से टकराकर गारो और खासी के मुख्य मार्ग में प्रवेश करती है ।
चेरापूंजी तथा मासिनराम भारत में अधिकतम वर्षा प्राप्त करते हैं ।
लौटते हुए मानसून की ऋतु -- सितम्बर के अंत तक सूर्य दक्षिण की ओर बढ़ना प्रारंभ कर देता है , जिससे उत्तर-पश्चिमी भारत का निम्न दाब क्षेत्र कमजोर होने लगता है।
दक्षिण पश्चिम मानसून अब लौटना प्रारंभ करता है । लौटते हुए मानसून से तमिलनाडु के तटवर्ती भागों में वर्षा होती है ।
कोपेन का जलवायु वर्गीकरण
कोपेन ने भारत को तीन जलवायवीय प्रदेशों में बांटा -- शुष्क ( B ) अर्ध शुष्क ( C तथा D ) तथा अार्द्र ।
यह प्रदेश तापमान एवं वर्षा के मौसम में अंतरों के आधार पर पुन: उपविभाजित किए गए ।
1. Aw (उष्णकटिबंधीय सवाना प्रकार ) --- झारखंड , उड़ीसा , आंध्र प्रदेश , महाराष्ट्र , छत्तीसगढ़ ।
2. Amw ( उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु ) -- मालाबार तट , कोंकण तट एवं गोवा के दक्षिण में ।
3. As ( उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु ) -- तमिलनाडु का कोरोमंडल तट ।
4. Bsh ( अर्ध शुष्क स्टेपी जलवायु ) -- उत्तर पश्चिमी गुजरात , आंध्र प्रदेश , पूर्वी राजस्थान और हरियाणा के कुछ भाग ।
5. BWhw ( उष्ण मरुस्थल प्रकार ) -- राजस्थान का सुदूर पश्चिमी थार मरुस्थली भाग , उत्तर गुजरात एवं हरियाणा का दक्षिणी भाग ।
6. CWg ( मध्यतापीय जलवायु ) -- गंगा का मैदान , पूर्वी राजस्थान , उत्तरी मध्य प्रदेश , उत्तर - पूर्वी भारत का अधिकांश भाग ।
7. Dfc ( शीत आर्द्र शीत ऋतु जलवायु ) -- अरुणाचल प्रदेश , सिक्किम ।
8. E ( ध्रुवीय प्रकार की जलवायु ) -- जम्मू और कश्मीर , हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड ।
9.ET ( टुंड्रा जलवायु ) -- लद्दाख ।
किसी भी क्षेत्र की जलवायु को नियंत्रित करने वाले छ: प्रमुख कारक हैं - अक्षांश , ऊंचाई , वायुदाब एवं पवन तंत्र , समुद्र से दूरी , महासागरीय धाराएं एवं उच्चावच लक्षण ।
मानसून
मानसून शब्द की व्युत्पत्ति अरबी शब्द मौसिम से हुई है - जिसका शाब्दिक अर्थ है मौसम ।
मानसून की उत्पत्ति
मानसून की प्रक्रिया को समझने के लिए निम्नलिखित तथ्य महत्वपूर्ण है --
तापीय संकल्पना -- स्थल एवं जल के गर्म एवं ठंडे होने की प्रक्रिया के कारण भारत के स्थल भाग पर निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है , जबकि इसके आसपास के समुद्रों के ऊपर उच्च दाब का क्षेत्र बनता है ।
गतिक संकल्पना -- फ्लाेन के अनुसार ग्रीष्म ऋतु के दिनों में अंत: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति में गंगा के मैदान की ओर खिसक जाती है । इसे मानसून ऋतु में मानसून गर्त के नाम से भी जाना जाता है ।
सूर्य के उत्तरायण होने पर उत्तरी अभिसरण की सीमा 30° उत्तरी अक्षांश तक विस्तृत हो जाती है , इस स्थानांतरण के कारण भारतीय उपमहाद्वीप का अधिकांश भाग विषुववृत्तीय पछुआ पवनों के प्रभाव में आ जाता है , जो दक्षिणी पश्चिमी मानसून कहलाता है ।
शीत ऋतु में वायुदाब एवं पवन पेटियाँ दक्षिण की ओर स्थानांतरित हो जाती हैं , जिससे इस प्रदेश में उत्तर- पूर्वी व्यापारिक पवनें स्थापित हो जाती हैं , इन्हें उत्तर- पूर्वी मानसून कहते हैं ।
जेट धारा सिद्धांत
जेट धारा
यह एक संकरी पट्टी में स्थित क्षोभमंडल में 12000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली पश्चिमी हवाएँ होती हैं ( इनकी गति गर्मी में 110 किलोमीटर प्रति घंटा एवं सर्दी में 184 किलोमीटर प्रति घंटा होती है ) । बहुत सी अलग अलग जेट धाराओं को पहचाना गया है । उनमें सबसे स्थिर मध्य अक्षांशीय एवं उपोषण कटिबंधीय जेट धाराएं हैं ।
शीत ऋतु में हिमालय तथा तिब्बत के पठार के द्वारा उपस्थित अवरोध के कारण जेट धारा दो शाखाओं में बँट जाती है उत्तरी शाखा हिमालय तथा तिब्बत के पठार के उत्तर में तथा दक्षिणी शाखा इनके दक्षिण में बहती है ।
जेट धारा के दक्षिण में अफगानिस्तान तथा उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान के ऊपर निर्मित उच्च दाब के कारण उत्तर-पश्चिमी भारत के ऊपर व नीचे बैठती है ।
ग्रीष्म ऋतु में ध्रुव के ऊपर धरातलीय उच्च दाब क्षीण पड़ जाता है , तथा ऊपरी वायुमंडलीय परिध्रुवीय भंवर उत्तर की ओर खिसक जाता है ।
जेट धारा के तिब्बत के पठार के उत्तर की ओर खिसकने से उपमहाद्वीप के उत्तरी एवं उत्तरी पश्चिमी भाग के ऊपर मुक्त वायु के प्रभाव का वक्र का बन जाता है ।
उत्तरी ईरान एवं अफगानिस्तान के ऊपर एक गत्यात्मक गर्त विकसित हो जाता है , जो पहले से धरातल पर स्थापित तापीय गर्त के ऊपर स्थित होता है ।
यह परिघटना एक ट्रिगर का कार्य करती है , जिससे मानसून का विस्फोट होता है ।
4. महासागरीय राशियां
जब दक्षिण प्रशांत महासागर के उष्णकटिबंधीय पूर्वी भाग में उच्च दाब होता है , तब हिंद महासागर के उष्णकटिबंधीय पूर्वी भाग में निम्न दाब होता है , लेकिन कुछ विशेष वर्षों में वायुदाब की स्थिति विपरीत हो जाती है ।
दाब की अवस्था में इस नियत कालिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन कहते हैं ।
दाब की अवस्था का संबंध एलनीनो से है , इसलिए इस परिघटना को एलनीनो दक्षिणी दोलन ( ENSO - Alnino southern oscillation ) कहा जाता है ।
एल नीनो
ठंडी पेरू जलधारा के स्थान पर अस्थाई तौर पर गर्म जलधारा के विकास को एल नीनो कहा जाता है ।
यह धारा क्रिसमस के समय बहना शुरु करती है ।
ला नीनो
ला नीना , एल नीनो के विपरीत घटना है , जिसमें पूर्व एवं मध्यवर्ती प्रशांत महासागर का जल सामान्य से अधिक ठंडा होता है ।
मौसम की दशाएं
भारतीय मौसम विभाग ने वर्ष को चार ऋतु में बांटा है--
1. शीत ऋतु ( मध्य दिसंबर से मध्य मार्च तक )
2. ग्रीष्म ऋतु ( मध्य मार्च से मई तक )
3. वर्षा ऋतु ( जून से सितंबर तक )
4. लौटते हुए मानसून की ऋतु ( अक्टूबर से मध्य दिसंबर तक )
शीत ऋतु
भूमध्य भाग क्षेत्रों में उत्पन्न विक्षोभों के कारण उत्तर भारत में हल्की वर्षा होती है , साथ ही कश्मीर एवं हिमालय में भारी हिमपात भी होता है ।
उत्तर - पूर्वी मानसून के कारण शीत ऋतु में तमिलनाडु के कोरोमंडल तट पर भी वर्षा होती है ।
ग्रीष्म ऋतु
ग्रीष्म ऋतु में दाब एवं पवन संसार अस्थिर होता है ।
इस समय देश के विभिन्न भागों में स्थानीय पवने बहती हैं ।
लू -- उत्तरी मैदान में शुष्क गर्म पवनें ।
नार्वेस्टर ( काल बैशाखी ) -- पश्चिमी बंगाल एवं आसाम में गरज के साथ वर्षा होती है ।
मैंगो शावर ( आम्र वर्षा ) -- दक्षिण भारत में पूर्व- मानसूनी वर्षा , जिसे आम जल्दी पक जाते हैं ।
चेरी ब्लॉसम -- कर्नाटक में वर्षा जो कॉफी की खेती के लिए लाभदायक है ।
वर्षा ऋतु
प्रायद्वीप की आकृति के कारण मानसूनी पवने दो भागों में बंट जाती हैं --
1. अरब सागरीय शाखा
2. बंगाल की खाड़ी की शाखा
अरब सागर शाखा -- इसकी एक शाखा पश्चिमी घाट से टकराकर वहां भारी वर्षा करते हैं , तथा दूसरी शाखा सौराष्ट्र एवं कच्छ के तटों को पार करके पश्चिमी राजस्थान एवं अरावली के ऊपर पंजाब एवं हरियाणा में पहुंचती है ।
बंगाल की खाड़ी की शाखा -- यह म्यांमार के अराकन तट से टकराकर गारो और खासी के मुख्य मार्ग में प्रवेश करती है ।
चेरापूंजी तथा मासिनराम भारत में अधिकतम वर्षा प्राप्त करते हैं ।
लौटते हुए मानसून की ऋतु -- सितम्बर के अंत तक सूर्य दक्षिण की ओर बढ़ना प्रारंभ कर देता है , जिससे उत्तर-पश्चिमी भारत का निम्न दाब क्षेत्र कमजोर होने लगता है।
दक्षिण पश्चिम मानसून अब लौटना प्रारंभ करता है । लौटते हुए मानसून से तमिलनाडु के तटवर्ती भागों में वर्षा होती है ।
कोपेन का जलवायु वर्गीकरण
कोपेन ने भारत को तीन जलवायवीय प्रदेशों में बांटा -- शुष्क ( B ) अर्ध शुष्क ( C तथा D ) तथा अार्द्र ।
यह प्रदेश तापमान एवं वर्षा के मौसम में अंतरों के आधार पर पुन: उपविभाजित किए गए ।
1. Aw (उष्णकटिबंधीय सवाना प्रकार ) --- झारखंड , उड़ीसा , आंध्र प्रदेश , महाराष्ट्र , छत्तीसगढ़ ।
2. Amw ( उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु ) -- मालाबार तट , कोंकण तट एवं गोवा के दक्षिण में ।
3. As ( उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु ) -- तमिलनाडु का कोरोमंडल तट ।
4. Bsh ( अर्ध शुष्क स्टेपी जलवायु ) -- उत्तर पश्चिमी गुजरात , आंध्र प्रदेश , पूर्वी राजस्थान और हरियाणा के कुछ भाग ।
5. BWhw ( उष्ण मरुस्थल प्रकार ) -- राजस्थान का सुदूर पश्चिमी थार मरुस्थली भाग , उत्तर गुजरात एवं हरियाणा का दक्षिणी भाग ।
6. CWg ( मध्यतापीय जलवायु ) -- गंगा का मैदान , पूर्वी राजस्थान , उत्तरी मध्य प्रदेश , उत्तर - पूर्वी भारत का अधिकांश भाग ।
7. Dfc ( शीत आर्द्र शीत ऋतु जलवायु ) -- अरुणाचल प्रदेश , सिक्किम ।
8. E ( ध्रुवीय प्रकार की जलवायु ) -- जम्मू और कश्मीर , हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड ।
9.ET ( टुंड्रा जलवायु ) -- लद्दाख ।
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