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Monday, 4 September 2017

प्राचीन भारत का इतिहास by bajrang Lal


प्राचीन भारत का इतिहास


इसके स्रोतों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है ।



(1).  धर्म ग्रन्थ

(2).  साहित्यक स्रोत

(3).  पुरातत्विक स्रोत

(4)   विदशियों व्दारा विवरण




               धार्मिक ग्रन्थ स्रोत


ब्राह्मण साहित्य ---- ऋग्वेद  , सामवेद ,  यजुर्वेद एवं  अथर्ववेद  , ब्राह्नण , आरण्यक , उपनिषद , महाभारत , रामायण , पुराण ।

बौध्द साहित्य ----- विनयपिटक , सुतपिटक , अभिधम्मपिटक , महावंश , दीपवंश , ललित विस्तार , दिव्यावदान , बुध्दचरित , (अश्वघोष ) , महाविभाष ,  जातक आदि ।

जैन साहित्य --- कल्पसूत्र , भगवती सूत्र ,  आचारांग सूत्र  आदि ।



     ऐतिहासिक साहित्य स्रोत


राजतरंगिणी ( कल्हण ) , पृथ्वीराज रासो ( चन्द्रबरदाई ) , हर्षचरित ( बाणभट्ट ) , मुद्राराक्सस ( विशाखादत्त ) , अर्थशास्त्र ( कौटिल्य ) , अभिग्यानशाकुन्तलम् ( कालिदास ) , स्वप्नवासवदत्ता ( भास) ।


                राजाओं व्दारा रचित साहित्य


हाल ( सातवाहन ) ----  गाथा सप्तशती

महेन्द्रवर्मन ( पल्लव ) -----  मत्विलास प्रहसन

हर्षवर्धन  -------  रत्नावली , नागानन्द , प्रियदर्शिका

सोमेश्वर ( चालुक्य ) ------ मान्सोल्लास



साहित्यक स्रोत ग्रन्थ       :  प्रमुख तथ्य


महावंश व दीपवंश --- दक्सिणी बौध्द मत ग्रन्थ हैं।

ललित विस्तार  की रचना नेपाल में हुई थी  ।

पाणिनी ने संस्कृत व्याकरण अष्टाध्यायी की रचना की थी  ।

पतंजलि ने महाभाष्य की रचना की , जो कि पाणिनी की अष्टाध्यायी पर आधारित है ।




                  विदेशियों व्दारा विवरण

**यूनानी लेखक **

(1) हेरोटोडस : हेरोटोडस को इतिहास का पिता कहा जाता है ।  इन्होने हिस्टोरिका नामक पुस्तक की रचना की  ।


(2)  मेगास्थनीज : मेगास्थनीज ने इण्डिका की रचना की ।

(3)  अग्यात लेखक : इश्वी सन् की पहली सदी में भारतीय बंदरगाहों , प्राकृतिक स्थिति व व्यापार पर प्रकाश अपनी रचना -- पेरीप्लस आफ द एरिथ्रियन सी में दिया गया है ।

(4)  टोलेमी : टोलेमी का ज्योग्राफी प्राचीन भारतीय भूगोल एवं वाणिज्य की जानकारी देती है ।

(5)  स्ट्रेबो : स्ट्रेबो ने नेगास्थनीज के विवरण को काल्पनिक माना है ।



**रोमन लेखक **

प्लिनी :  प्लिनी ने नेचुरलिस हिस्टोरिका भारत एवं इटली के बीच होने वाले व्यापारिक संबंधों की जानकारी देता है ।


**चीन विवरण **


(1)  फाह्यान : यह चन्द्रगुप्त व्दितीय के काल में भारत आया , उसने (फू -को -की ) की रचना की , जिसमें गुप्त काल में भारत के सामाजिक ,आर्थिक व धार्मिक स्थिति पर प्रकाश डाला ।

(2)  ह्येन सांग : यह हर्षवर्धन के समय 629 ईश्वी में भापत आया ,( सी - यू- की)  की रचना की ।

(3)  इत्सिंग : यह सातवीं शताब्दी में भारत आया तथा नालन्दा एवं विक्रमशिला का वर्णन किया ।



*** अरबी लेखक ***



(1)  सुलेमान : वह 9वीं शताब्दी में भारत आया तथा  पाल एवं प्रतिहार शासकों के बारे में लिखा ।

(2)  अलबरुनी : अलबरुनी ने तहकीक-ए-हिन्द की रचना की , जिसमें भारत के निवासियों की दशा का वर्णन किया है ।

पुरातात्विक स्रोत


पुरातात्विक स्रोतों में अभिलख , सिक्के , ( मुहर) , स्मारक , मूर्तियाँ , चित्रकला , भौतिक , अवशेष , मृदभाण्ड , आभूषण आदि आते हैं।


                शब्दावली

अभिलेख -- जो लेख मुहर , प्रस्तरस्तम्भों , स्तूपों , चट्टानों  और ताम्रपत्रों पर मिलते हैं।

एपिग्राफी --- अभिलेख के अध्ययन को पुरालेखाशास्त्र ( एपिग्राफी ) कहते हैं।

पेलिओग्राफी ----- अभिलेख तथा दूसरे प्राचीन दस्तावेजों की प्राचीन तिथी के अध्ययन को पुरालिपिशास्त्र कहते हैं।

न्यूमिस्मेटिक्स ----- सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र ( न्यूमिस्मेटिक्स ) कहते हैं।



        (1)    सिक्के

भारत के प्राचीन सिक्के पंचमार्क या आहत सिक्के कहलाते थे । साहित्य में इन सिक्कों को कार्षापण कहा गया है।

पुराने सिक्रे तांबे , चांदी , सोने , और सीसे के बनते हैं।

आरम्भिक सिक्कों में कुछ प्रतीक मिलते थे , परन्तु बाद में सिक्कों पर राजाओं और देवताओं के नाम तथा तिथियाँ उल्लिखित मिलती थी ।


सोने के लिखित सिक्के सर्वप्रथम कुषाण राजाओं ने जारी किए थे ।

गुप्त शासकों ने सबसे अधिक सोने के सिक्के जारी किए ।

समुद्रगुप्त को एक सिक्के पर वीणा बजाते हुए दिखाया गया है ।

सातवाहनों ने सीसे के सिक्के जारी किए ।

गुप्तकाल में स्वर्ण सिक्कों को दीनार एवं चांदी के सिक्कों को रुपक कहते हैं।



        (2)  अभिलेख

सबसे अधिक अभिलेख मैसूर संग्रहालय में संगृहीत हैं।

मौर्य , मौर्योतर और गुप्त काल के अधिकांश अभिलेख कार्पस इन्सक्रिप्शनम इंडिकेरम नामक ग्रन्थ में संकलित हैं।



      अभिलेखों की लिपियाँ

(1)  प्राकृत लिपि --- आरम्भिक अभिलेख प्राकृत  भाषा में हैं।

(2)  ब्राह्मी लिपि ----- यह लिपि बाँए से दाँए लिखी जाती थी , अशोक के शिलालेख ब्राह्मी लिपि में हैं।

(3)  खरोष्ठी लिपि ---- यह लिपि दाँए से बाँए लिखी जाती थी , अशोक के कुछ शिलालेख खरोष्ठी लिपि में हैं।


(4)  यूनानी एवं अरमाइक लिपि ---- पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में अशोक के शिलालेखों में इन लिपियों का प्रयोग हुआ है ।

1837  में जेम्स प्रिंसेप  इन अभिलेखों को पढने वाला पहला विदेशी था ।




     महत्वपूर्ण अभिलेख एवं उनके शासक

समुद्रगुप्त. --------             प्रायग प्रशस्ति ( इलाहाबाद)
, एरण अभिलेख ( सागर म प्र )

रुद्रदामन ----------       जूनागढ़ अभिलेख ( गुजरात)

स्कन्दगुप्त -------------- भीतरी स्तम्भ लेख ( गाजीपुर)

खारवेल -------_           हाथीगुम्फा अभिलेख

पुलकेशिन 2nd------  ऐहोल अभिलेख

राजा भोज -------- ग्वालियर प्रशस्ति ( म प्र )

विजयसेन -------- देवपाड़ा अभिलेख

हर्षवर्ध्दन  -------- मधुवन एवं बासखेड़ा अभिलेख

यशोधर्मन ----_-------- मंदसौर प्रशस्ति

गौतमीबलश्री -------- नासिक अभिलेख


याद रखने की ट्रिक


ऐ. ,  प्रयाग का समुद्र  , जून का दामन ।

भीतरी सकरगन्द , हाथी की खाल ।

पुल का हाल , राजा बना ग्वाला ।

देवों की विजय , बास का मधुवन वृध्दि करे ।

यश मंदो ,  गौता नासा ।।



ये छोटी सी कविता याद करनी होगी


अभिलेख : विशिष्ट तथ्य

रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख संस्कृत भाषा में जारी प्रथम अभिलेख माना जाता है ।

पुलकेशिन व्दितीय का एहोल अभिलेख उसके दरबारी कवि रविकीर्ति व्दारा रचित है ।

अशोक के प्रयाग स्तम्भलेख में कारुवाकी , एवं तीवर का उल्लेख मिलता है ।

समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति की रचना उसके संधि विग्रहक हरिषेण ने की थी ।

भानुगुप्त के एरण अभिलेख में सर्वप्रथम सती प्रथा का लिखित साक्ष्य प्राप्त होता है ।

चन्द्रगुप्त 2nd के उदयगिरि गुहा लेख के अनुसार उसका उदेश्य सम्पूर्ण पृथ्वी को जीतना था ।

तुमुन अभिलेख में कुमारगुप्त 1st को शरदकालीन सूर्य का तरह बताया गया है ।

स्कन्दगुप्त के भीतरी अभिलेख में हुणों के आक्रमण का उल्लेख मिलता है ।

मंदसौर अभिलेख में यशोधर्मन को जननेंद्र कहा गया है ।

चन्द्रगुप्त 2nd विजयों का वर्णन मेहरौली लौहस्तम्भ लेख में मिलता है ।



            विदेशी अभिलेख

(1). बोगाज कोई ---- मध्य एशिया से 1400 ई पू में प्राप्त संधि पत्र अभिलेख में वैदिक देवता मित्र ,  वरुण , इन्द्र और नाशत्य के नाम उल्लिखित हैं।


(2)  हेलियोडोरस ( यूनानी राजदूत ). का बेसनगर का गरुड़ लेख ,  भागवत धर्म की जानकारी देता है ।




प्राचीन भारतीय इतिहास के आधुनिक लेखक


1776 में मनुस्मृति का अंग्रेजी अनुवाद ए कोड ओफ जेन्टू लोज के नाम से कराया गया ।

सर विलियम जोन्स ने 1789  में अभिग्यानशाकुंतलम का अंग्रेजी में अनुवाद किया ।

विल्किन्स ने 1785 में भगवतगीता का अंग्रोजी मेम अनुवाद किया ।

विसेन्ट आर्थर स्मिथ की पुस्तक अर्ली हिस्ट्री ओफ इंडिया में प्राचीन भारत का सुव्यवस्थित इतिहास प्रस्तुत किया गया है ।

ब्रिटिश इतिहासकार ए एल बैशम ने वंडर दैट वाज इंडिया लिखी ।

 डी डी कौसंबी की कृति एन इन्ट्रोडक्शन टू द स्टडी ओफ इंडियन हिस्ट्री , प्राचीन भारतीय इतिहास जानने का एक उतम स्रोत है ।







           महत्वपूर्ण रचनाएँ एवं लेखक

विग्यानेश्वर ----- ------- मिताक्षरा

कालिदास ------ अभिग्यानशाकुंतलम , माल्विकाग्निमित्रम  , रघुवंश

विशाखादत ------ मुद्राराक्षस , देवीचन्द्रगुप्त

शूद्रक --------- मृच्छकटिकम

वात्स्यायन ----- कामसूत्र

बाणभट्ट ------ हर्षचरित

सोमदेव -------  ललितविग्रहराज

भास्कराचार्य ------ सिध्दांत शिरोमणि

नागसेन ------- मिलिन्द पान्हो

जयदेव -------  गीतगोविन्द

भास -------  चारु दत्त , स्वप्न वासवदत्ता

विष्णु शर्मा ------  पंचतंत्र

अश्वघोष -----  बुध्द चरित , सूत्रालंकार

वेदव्यास -------  भगवतगीता , महाभारत

भर्तृहरि -------  शक्ति शतक

भरत --------  नाटयशास्त्र

वाल्मीकि ------ रामायण

तुलसीदास ------  रामचरितमानस

माघ ----------  शिशुपालवध

सुश्रुत ----- सुश्रुत संहिता

नागार्जुन ------ शतसहस्रिका

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