दक्षिण भारत का इतिहास
महापाषाणिक ( मेगालिथिक) पृष्ठभूमि
प्रायद्वीपीय भारत के उच्च भागों में वे लोग बसते थे जो महापाषाण निर्माता कहलाते थे । उनका पता उनकी कब्रों से चलता है जो महापाषाण कहलाती हैं ।
इन कब्रों को महापाषाण इसलिए कहते हैं कि इन्हें बड़े-बड़े पत्थरों के टुकड़ों से घेर दिया जाता था ।
इन कब्रों में दफनाए गए लोगों के न केवल अस्थि पंजर ही बल्कि मृदभांड और लोहे की वस्तुओं में भी मिलती है । जिनमें लाल एवं काला मृदभांड अधिक प्रचलित हैं ।
पल्लव वंश
इक्षवाकुओं को अपदस्थ कर उनकी जगह पल्लव आए ।
पल्लवों ने अपनी राजधानी कांची में बनाई ।
प्रमुख पल्लव शासक
वप्पदेव -- यह पल्लव वंश का संस्थापक था ।
सिंह विष्णु --- इसे पहला महत्वपूर्ण पल्लव राजा माना जाता है ।
किरातार्जुनीयम तथा दशकुमारचरितम् के लेखक भारवि सिंह विष्णु के दरबार में रहते थे ।
महेंद्रवर्मन प्रथम.
पल्लव वंश का उत्कृष्ट महेंद्र वर्मन प्रथम के शासन के साथ शुरू हुआ ।
इसके शासनकाल में पल्लव तथा चालुक्यों के बीच लंबा संघर्ष शुरू हुआ । पुलकेशिन द्वितीय ने इसे पराजित किया ।
महेंद्र वर्मन प्रथम ने मतविलास प्रहसन की रचना की ।
वास्तु कला के क्षेत्र में उसने मंडप शैली को प्रारंभ किया ।
प्रारंभ में वह जैन मतानुयायी था परंतु नयनार संत अप्पार से प्रभावित होकर उसने शैव धर्म को अपनाया ।
नरसिंह वर्मन प्रथम
यह महान पल्लव शासक था , जिसने पुलकेशिन द्वितीय की हत्या कर बादामी पर अधिकार कर लिया ।
अतः उसने वातापीकोण्डा की उपाधि धारण की ।
उसने मामल्लपुरम नामक नगर बसाया ।
हेनसांग ने इसी के शासनकाल में कांची की यात्रा की थी ।
नरसिंहवर्मन द्वितीय
इसका शासन काल शांति , समृद्धि तथा मंदिरों के निर्माण का काल था ।
दण्डिन नामक विद्वान इन्हीं के दरबार में रहता था ।
इसने कांची के कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण करवाया ।
नंदी वर्मन द्वितीय
यह वैष्णव धर्म का अनुयाई था ।
इसने राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग की पुत्री रेवा से शादी की ।
अपराजित
यह पल्लवों का अंतिम महत्वपूर्ण शासक था ।
चोल शासक आदित्य चोल ने अपराजित पल्लव पर आक्रमण कर अलग राज्य पर अधिकार कर लिया ।
महेंद्र वर्मन --- मण्डप शैली
नरसिंह वर्मन प्रथम ------ मामल्ल शैली
नरसिंह वर्मन द्वितीय ----- राजसिंह शैली
नंदी वर्मन द्वितीय --- नंदी वर्मन शैली ।
[28/09, 07:50] B L Nayak
चालुक्य वंश
वातापी (बादामी ) के चालुक्य
जयसिंह बादामी के चालुक्य वंश का संस्थापक था ।
जयसिंह क़दम्बों के अधीन शासक था ।
पुलकेशिन प्रथम--
बादामी के चालुक्य का उत्कर्ष पुलकेशिन प्रथम के समय में हुआ ।
उसने बीजापुर के निकट वातापी ( बादामी) को अपनी राजधानी बनाई थी ।
कीर्तिवर्मन प्रथम
इसने क़दम्बों को नष्ट कर दिया और गोवा पर अधिकार कर लिया ।
पुलकेशिन द्वितीय
यह इस वंश का महान शासक था जिसने हर्ष के विजय अभियान को नर्मदा नदी के तट पर रोका था ।
उसने रविकीर्ति से ऐहोल अभिलेख लिखवाया जिसकी भाषा संस्कृत एवं लिपि ब्राह्मी है ।
कीर्तिवर्मन द्वितीय इस वंश का अंतिम शासक था , जिसे राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग ने पराजित कर अपनी सत्ता की स्थापना की ।
चालुक्यों का योगदान
चालुक्यों ने वास्तुकला के क्षेत्र में दक्कन या बेसर शैली का विकास हुआ ।
बेसर शैली -- द्रविड़ शैली एवं नागर शैली का मिश्रण
एहोल --एहोल को मंदिरों का शहर कहा जाता है ।
यहां 70 मंदिरों के साक्ष्य से मिले हैं जिसमें 4 दर्शनीय हैं -- लाडखान मंदिर , हसीमल्लीगुड़ी मंदिर , दुर्गा मंदिर एवं , मेगुती का जैन मंदिर ।
बादामी का मेलागित्ती शिवालय ।
पापनाथ मंदिर
विरुपाक्ष मंदिर -- इसे विक्रमादित्या द्वितीय की रानी लोकमहादेवी ने बनवाया था ।
त्रिलोककेश्वर महादेव मंदिर -- इसे विक्रमादित्या द्वितीय की दूसरी रानी त्रिलोक महादेवी ने बनवाया था ।
वेंगी के चालुक्य
पुलकेशिन द्वितीय ने आंध्र को जीतकर अपने भाई विष्णुवर्धन को दिया , जिसने वेंगी के चालुक्य वंश की स्थापना की ।
इस वंश के अन्य महत्वपूर्ण शासक थे -- विजयादित्य , विष्णुवर्धन चतुर्थ , विजयादित्य द्वितीय , विजयादित्य तृतीय , गुणग , और भीम प्रथम ।
कल्याणी के चालुक्य
इस वंश की स्थापना तैलप द्वितीय ने की थी , इसने राष्ट्रकूट राजा कर्क द्वितीय को मारकर इस वंश
की स्थापना की थी ।
तैलप द्वितीय की राजधानी मान्यखेट थी , सोमेश्वर द्वितीय अपनी राजधानी मान्यखेट से कल्याणी ले गया ।
विक्रमादित्य चतुर्थ इस वंश का एक महान शासक था , विक्रमांकदेवचरित के लेखक विल्हण तथा मिताक्षरा के लेखक विज्ञानेश्वर इसी के दरबार में रहते थे ।
सोमेश्वर तृतीय के काल में चालुक्य राज्य बिखरने लगा ।
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