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Friday, 13 October 2017

तीन साम्राज्य का युग by bajrang Lal

      मध्यकालीन भारत का इतिहास

     तीन साम्राज्य का युग




 7 वीं सदी में हर्ष के साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत  ,  दक्कन और दक्षिण भारत में अनेक साम्राज्य उत्पन्न हुए ।  इनमें पाल ,  प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट प्रमुख थे ।


 पाल साम्राज्य


पाल साम्राज्य की स्थापना 750 ईस्वी में गोपाल ने की थी ।

 गोपाल ने अपने नियंत्रण में बंगाल का एकीकरण किया और मगध तक को अपने अधीन ले लिया ।

 गोपाल ने ओदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना की थी ।


 धर्मपाल

इसके शासनकाल में कन्नौज पर नियंत्रण के लिए पाल ,  प्रतिहार एवं राष्ट्रकूटों में त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ ।
 इस संघर्ष में धर्मपाल विजय हुआ ।


देवपाल

 देवपाल ने अपना नियंत्रण प्रागज्योतिषपुर और उड़ीसा के कुछ भागों पर स्थापित किया ।

 पाल शासक बोध्द  ज्ञान विज्ञान एवं धर्म के संरक्षक थे ।

 धर्मपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुत्थान किया और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की जहां वज्रयान शाखा की पढ़ाई होती है ।


 प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान शांतरक्षित एवं दीपांकर ने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया ।


 गुजराती कवि सोड्ढल  ने धर्मपाल को उत्तरपथस्वामी की उपाधि दी थी ।



 प्रतिहार


विद्वानों के अनुसार प्रतिहार गुर्जरों के वंशज थे  ,  इसलिए इन्हें गुर्जर प्रतिहार भी कहते हैं ।

 नागभट्ट प्रथम

यह गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक था ,  इसकी आरंभिक राजधानी भनिमाल में थी ।


 नागभट्ट द्वितीय

इसने पाल शासक धर्मपाल की सेना को मुंगेर के समीप पराजित किया ।

 इसने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया ,  लेकिन वह राष्ट्रकूट नरेश गोविंद तृतीय से पराजित हुआ ।


 मिहिरभोज प्रथम


यह इस वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक था ,  इसने कन्नौज को पुनः राजधानी बनाया ।

 वह अपने समकालीन राजाओं पाल शासक देवपाल एवं  राष्ट्रकूट शासक ध्रुव से पराजित हुआ ।

 मिहिरभोज वैष्णव मतावलंबी था ,  और उसने आदिवाराह और प्रभास जैसी उपाधियाँ  धारण की ।

 इसका महत्वपूर्ण महत्वपूर्ण लेख ( प्रशस्ति  ) ग्वालियर से मिला है ।


 महेंद्रपाल प्रथम

 इसने प्रतिहार साम्राज्य को अक्षुण्ण बनाए रखा ।

 उसके दरबार में राजशेखर निवास करते थे जो उसके राजगुरु भी थे ।

राजशेखर की रचनाएं

 कर्पूरमंजरी  , काव्यमीमांसा ,  हरविलास ,  भुवनकोश ,  बाल रामायण


 अलमसूदी जो 915 - 16 ईस्वी में बगदाद से भारत आया ,  ने प्रतिहार शासकों की शक्ति एवं प्रतिष्ठा का वर्णन किया है  ।

वह प्रतिहार राज्य को अल जुज्र  कहता है ।


 राष्ट्रकूट


राष्ट्रकूट वंश का संस्थापक दंतिदुर्ग था ,  जिसने शोलापुर के पास मान्यखेत या मलखेड़ा को अपनी राजधानी बनाया ।


  ध्रुव इस वंश का एक महान शासक था  , जिसने कन्नौज पर अधिकार करने के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष में हिस्सा लिया ।


 अमोघवर्ष एक अन्य प्रसिद्ध शासक था जिसने 64 वर्ष तक राज किया ।

 वह जैन मतावलंबी था  , उसने कविराज मार्ग नामक कन्नड़ ग्रंथ की रचना की ।

 इंद्र तृतीय और बल्लभराज अन्य प्रसिद्ध शासक थे ।

 कृष्ण तृतीय अंतिम प्रभाव प्रतिभाशाली शासक था  ,                  जो मालवा के परमारओं  और वेंगी के पूर्वी चालुक्यों के साथ युद्ध रहा ।

 इसने चोल राजा परंटक  प्रथम को 949 ईस्वी में पराजित किया ।


 राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम ने एलोरा में कैलाश मंदिर बनवाया था ।

Tuesday, 10 October 2017

भारत में शहरों , राज्यों के प्रचलित उपनाम by bajrang Lal

 भारत में शहरों  , राज्यों के प्रचलित उपनाम


 भारत का मैनचेस्टर  ------  अहमदाबाद

 बंगाल का शोक --------  दामोदर नदी

 भारत का प्रवेश द्वार  ------- मुम्बई

भारत का मसालों का बगीचा -------  केरल

 भारत का स्विट्जरलैंड  -------- कश्मीर

सात टापुओं का नगर  ----------  मुम्बई

मंदिरों एवं घाटों का नगर  --------  वाराणसी

 इस्पात नगरी  ------- जमशेदपुर

समुद्र पुत्र --------  लक्षद्वीप

पांच नदियों की भूमि ------ पंजाब

 भारत का पेरिस  ----------  जयपुर

दक्षिण की गंगा --------  कावेरी

अरब सागर की रानी  ------ कोचीन

 उत्तर भारत का मैनचेस्टर ------  कानपुर

राजस्थान का गौरव ------  चित्तौड़गढ़

कर्नाटक का रत्न  -------  मैसूर

 त्योहारों का नगर  ------ मदुरै

भारत का दिल  -------  दिल्ली

 पुलों की नगरी  --------  श्रीनगर

 राष्ट्रीय राजमार्गों का चौराहा -------  कानपुर

 ब्लू माउंटेंस  ---------  नीलगिरी की पहाड़ियां

भारत का बगीचा  ------- बेंगलौर



 डायमण्ड हार्बर ---------  कोलकाता

झीलों का नगर  --------  श्रीनगर

 नवाबों का नगर --------  लखनऊ

 बिहार का शोक  ------ कोसी नदी

 भारत का हॉलीवुड ------  मुम्बई

पर्वतों की रानी -------  मसूरी

 दक्षिण का कश्मीर  --------  केरल

 काली नदी  --------  शारदा नदी

 महलों का शहर -------  कोलकाता

 गुलाबी शहर ------  जयपुर

राजस्थान का ह्रदय  ------ अजमेर

 धान की डलिया  ------  छत्तीसगढ़

 फलों की डलिया  ----- हिमाचल प्रदेश

 दक्षिण की रानी  ------ पुणे

दक्षिण  गंगा  ----- गोदावरी नदी

Monday, 9 October 2017

भारत के नदियों के किनारे नगर by bajrang Lal




 भारत में नदियों के किनारे स्थित महत्वपूर्ण नगर


 आगरा  ----- यमुना

 कोलकाता -----  हुगली

 जबलपुर ------- नर्मदा

 पणजी ------- मांडवी

 सूरत  ------- ताप्ती

 इलाहाबाद ------  गंगा यमुना का संगम

 गुवाहाटी -------- ब्रह्मपुत्र

 मदुरै ----  बैगाई

 पुणे ------ मूठा

 अयोध्या -----  सरयू ( घाघरा )

 पंढरपुर ------ भीमा

 सम्बलपुर  ------ महानदी

 फिरोजपुर -------  सतलज

वाराणसी -------  गंगा

 औरंगाबाद ---- काउम

 हरिद्वार ----  गंगा

नासिक  ----- गोदावरी

श्रीनगर  ---- झेलम

 जौनपुर  ----- गोमती

कोटा ----- चंबल

 दिल्ली ----- यमुना

लखनऊ ------ गोमती

 हैदराबाद ----- मूसी

विजयवाड़ा ----- कृष्णा

 पटना  ---- गंगा

 अहमदाबाद ----- साबरमती

 कटक  ----- महानदी

 कानपुर ----  गंगा

 उज्जैन ----  क्षिप्रा

तिरुचिरापल्ली  ----- कावेरी

 डिब्रूगढ़ -----  ब्रह्मपुत्र

 श्रीरंगपट्टनम  ---- कावेरी

बद्रीनाथ ----  अलकनंदा

अजमेर  ----- लूणी


 B L Nayak ------ शार्ट ट्रिक


 पटाओ  मत गंगा  , वरना कान के नीचे से मारेंगे  , कान के द्वार फट जाएंगे ।

पटाओ ---- पटना
गंगा --- गंगा नदी
वरना --- वाराणसी
कान --- कानपुर
द्वार --- हरिद्वार


 ये  आ गया दिल्ली ।
ये ---- यमुना नदी
आ गया --- आगरा
दिल्ली --- दिल्ली


 हटी पुत्र देब्बू ।
हटी ---- गुवाहाटी
पुत्र --- ब्रह्मपुत्र
देब्बू ---- डिब्रूगढ़


महा बली सबको खटकता है ।
महा ----- महानदी
बली --- सम्बलपुर
खटकता --- कटक


 लाख जौन मती बनाओ ।
लाख --- लखनऊ
जौन --- जौनपुर
मती -- गोमती नदी


 रुचि का रंग वेरी स्पेशल है ।
रुचि -- तिरुचिरापल्ली
रंग --- श्रीरंगपट्टम
वेरी --- कावेरी

 लूमेर कोच
लू --- लूणी
मेर --- अजमेर
को --- कोटा
च -- चम्बल

Sunday, 1 October 2017

गुप्त काल by bajrang Lal

B L Nayak


 गुप्त साम्राज्य



गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग भी कहा जाता है ।


 श्री गुप्त

 श्री गुप्त इस वंश का संस्थापक था ।

 प्रभावती गुप्ता के पूना ताम्र. पत्राभिलेख में श्रीगुप्त को आदिराज कहा गया है ।


 प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख ----  समुद्रगुप्त

 विलसड स्तंभलेख ------ कुमारगुप्त

 भीतरी स्तंभलेख  ----स्कंदगुप्त


 घटोत्कच गुप्त


 यह श्रीगुप्त का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था


 चंद्रगुप्त प्रथम


 चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश का पहला प्रसिद्ध राजा था ।

 उसने लिच्छवी की राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया , जिससे उसकी सत्ता को बल मिला ।

 चंद्रगुप्त प्रथम ने अपने राज्य रोहण  के स्मारक के रुप में 319 - 320 ईसवी में गुप्त संवत चलाया ।

 समुद्रगुप्त


 चंद्रगुप्त प्रथम के पुत्र और उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त ने गुप्त साम्राज्य का अपार विस्तार किया ।

 समुद्रगुप्त अपनी विजयों के लिए प्रसिद्ध था ,  उसे समरशत कहा गया है जिसका अर्थ है सौ युद्धों का विजेता ।


 डॉक्टर वी ए स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा है ।

 समुद्रगुप्त ने दक्षिणापथ के 12 राजाओं को परास्त कर धर्म विजय का कार्य किया ।

 आर्यवर्त के 9 राजाओं को परास्त  कर दिग्विजय का कार्य किया था ।

 समुद्रगुप्त ने वन प्रदेश के सभी राजाओं को परिचारक बनाया ।

 एरण अभिलेख में समुद्रगुप्त की पत्नी का नाम दत्त देवी वर्णित है ।

 समुद्रगुप्त को कविराज भी कहा गया है ।

 समुद्रगुप्त को कई सिक्कों पर वीणा वादन करते हुए दर्शाया गया है ।

 उसके कॉल के छह प्रकार की स्वर्ण मुद्राएं मिली है गरूड़ , अश्वमेघ , धनुर्धर ,  याध्रहंता , परसु  और वीणा सारण ।

 समुद्रगुप्त ने अश्वमेध पराक्रमांक की उपाधि धारण की थी ।

 श्रीगुप्त ----- आदिराज
घटोत्कच ----- महाराज
चंद्रगुप्त ---- महाराजाधिराज
 चंद्रगुप्त द्वितीय ---  विक्रमादित्य
 समुद्रगुप्त ---- पराक्रमांक
 कुमार गुप्त ----  महेंद्रादित्य , शक्रादित्य
 स्कन्दगुप्त ---- क्रमादित्य



 रामगुप्त

समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद राम गुप्त शासक बना जो एक कमजोर राजा था ।



 उसके छोटे भाई चंद्रगुप्त द्वितीय ने उसकी हत्या कर दी और गुप्त वंश की गद्दी पर बैठा ।

 राजशेखर की काव्य मीमांसा एवं देवीचन्द्रगुप्तम   ने भी इस घटना का उल्लेख किया है ।




 चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य

चंद्रगुप्त द्वितीय समुद्रगुप्त एवं दत्तदेवी का पुत्र था ।

 उसके शासनकाल में गुप्त साम्राज्य अपने उत्कर्ष पर पहुंचा ।

 महरौली स्तंभ लेख में राजा चंद्र का वर्णन मिलता है जिसकी पहचान चंद्रगुप्त द्वितीय से की गई है ।

 इसे सांची के अभिलेख में देवराज एवं प्रवरसेन के अभिलेख में देवगुप्त कहा गया है ।

 उसने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक शासक रुद्रसेन द्वितीय से करवाया ।

उसके मरने के बाद उसका नाबालिक पुत्र उसका उत्तराधिकारी बना  , इस प्रकार प्रभावती स्वयंवर वास्तविक शासिका हुई ।

 वाकाटक की सहायता से चंद्रगुप्त द्वितीय ने शकों  को पराजित किया  , इस उपलक्ष्य में उसने चांदी के सिक्के चलाए ।

 इस विजय के बाद उसे शाकारी कहा गया और उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की ।

 चंद्रगुप्त द्वितीय के उदयगिरि अभिलेख के अनुसार उसका उद्देश्य संपूर्ण पृथ्वी को जीतना था ।

 उसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी,  उसने उज्जैन में दूसरी राजधानी स्थापित की  ।


 चंद्रगुप्त द्वितीय के समय ही चीनी बौध्द यात्री फाह्यान भारत आया था ।

 चंद्रगुप्त द्वितीय ने कालीदास को अपना दूत बनाकर कुंतल नरेश के दरबार में भेजा था ।

 चंद्रगुप्त द्वितीय के नौ रत्न

 कालिदास ,     अमर सिंह  ,  शन्कु ,  धनवंतरी
,  क्षपणक  ,  वेताल भट्ट , वररुचि , घटकर्पर ,  वाराह मितिर ।


 कुमारगुप्त प्रथम

 मंदसौर अभिलेख से कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल का वर्णन मिलता है ।

 सबसे अधिक 18 अभिलेख इसी के  मिले हैं ।

 तुमुन् अभिलेख में कुमारगुप्त प्रथम को शरद कालीन सूर्य कहा गया है ।

 नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त प्रथम के कार्यकाल में की गई थी ।

 बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था ।

 उसका शासन काल 40 वर्ष का था ।


 स्कंदगुप्त

गिरनार के प्रशासक चक्रपालित ने सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया था ।

 स्कंदगुप्त का भीतरी अभिलेख हुणों  द्वारा आक्रमण की जानकारी देता है ।

 स्कंदगुप्त ने प्रशासनिक सुविधा के उद्देश्य से अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया ।

 विष्णु गुप्ता गुप्त वंश का अंतिम शासक था ।



 B L Nayak



गुप्तकालीन प्रशासन पद्धति

 पेठ --- यह ग्राम समूह की इकाई थी , ग्राम  प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी ।

 ग्राम सभा ---- ग्राम का प्रशासन ग्राम सभा द्वारा संचालित होता था , जिसका मुखिया ग्रामीक  कहलाता था  एवं अन्य सदस्य महत्तर कहलाते थे ।

 ग्राम सभा को पंचमण्डली एवं ग्राम जनपद कहा जाता था ।



 गोप्ता --- यह देश का प्रशासक था जो सम्राट द्वारा सीधे नियुक्त किया जाता था ।


 सैन्य संगठन



सम्राट ---- यह सेना का अध्यक्ष होता था ।

 युवराज --- सम्राट के वृद्ध होने पर सेना की अध्यक्षता युवराज करता था ।

 गज सेना---  इसका  प्रधान अध्यक्ष  महापिलुपति होता था ।



 अश्व सेना ----- इसका   प्रधान अध्यक्ष महाश्वपति या भटाश्वपति होता था ।

 रणभाण्डाधिकृति --- सैन्य कार्य में आने वाली सामग्री की व्यवस्था एवं पूर्ति से संबंधित कर्मचारी ।



धार्मिक जीवन



 गुप्त काल में बौद्ध धर्म को राजा से मिलना समाप्त हो गया तथा भागवत धर्म केंद्र बिंदु बन गया ।

 इस काल में त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा , विष्णु  एवं  महेश की पूजा प्रारंभ हुई ।


 गुप्तकाल में मूर्तिपूजा ब्राह्मणीय  धर्म का सामान्य लक्षण हो गई ।


 चंद्रगुप्त द्वितीय एवं समुद्रगुप्त के सिक्कों पर विष्णु के वाहन गरुड़ का चित्र पाया जाता है  ,  जो कि गुप्त वंश का राजकीय चिन्ह भी था ।

 गंगधर अभिलेख में विष्णु को मधुसूदन कहा गया है ।

 गुप्त युग में मथुरा एवं वल्लभी में जैन सभाओं का आयोजन हुआ था ।




आर्थिक जीवन



 इस काल में पांच प्रकार की भूमि का उल्लेख मिलता है ---


 क्षेत्र भूमि ---- कृषि योग्य भूमि ।

 वास्तु भूमि ---- रहने योग्य भूमि ।

 चारागाह भूमि ---- पशुओं के चारा योग्य भूमि ।

 खिल भूमि -- जो भूमि जोतने योग्य नहीं हो ।

 अप्रहत भूमि --- बिना जोती  गई जंगली भूमि ।

 कर 1/4  से 1/6 भाग तक लिया जाता है ।

 भूमि कर संग्रह करने वाला पदाधिकारी ध्रुवाधिकरण कहलाता था ।

 व्यापारिक के कारवों  को नेतृत्व करने वाला व्यक्ति सार्थवाह कहलाता था ।

 इस काल में व्यापारियों तथा शिल्पियों के चार संगठन थे ---  निगम  , पुग ,  गण तथा श्रेणी ।

 श्रेणी के प्रधान को ज्येष्ठक  कहा जाता था ।

 सिंचाई के लिए राहत या घट यंत्र का प्रयोग होता था ।

 भूमि संबंधी विवादों को निपटाने वाला अधिकारी न्यायाधिकरणी  कहलाता था ।

 करणिक  व महापक्षपटलिक नामक पदाधिकारी भूमि अभिलेखों को सुरक्षित रखने का कार्य करते थे ।

 इस समय उज्जैन व्यापार का प्रमुख केंद्र था ।

 अजंता की  कुल 29 गुफाओं में से गुफा संख्या 16 ,  17 एवं 19 गुप्त काल से संबंधित है ।

 गुफा संख्या 16 में मरणासन्न राजकुमारी का चित्र है ।

 गोपाल संख्या 17 में जातक कथाओं का उल्लेख है ।

 अजंता की गुफाओं के चित्र बौद्ध धर्म के महायान शाखा से संबंधित है ।


 गुप्तकालीन साहित्य



 गुप्तकाल संस्कृत साहित्य का स्वर्ण युग है ।


 कालिदास को भारत का शेक्सपियर कहा जाता है ।

 मंदसौर प्रशस्ति की रचना वत्स  भट्टी ने की थी ।



प्रमुख लेखक व उनकी रचनाएं





 कालिदास --- अभिज्ञानशाकुंतलम ,  ऋतुसंहार ,  मालविकाग्निमित्रम् , कुमारसंभव ,  मेघदूत , रघुवंश ,  विक्रमोवंशीयम्


 भास ---- स्वपनवासवदत्तम , कर्णभारम् ,  चारुदत्तम्

 विष्णु शर्मा ---- पंचतंत्र

 बाणभट्ट ------ हर्षचरित

 विशाखदत्त ---- मुद्राराक्षस  , देवीचंद्रगुप्तम्

 शूद्रक --- मृच्छकटिकम्

भौमक  --- रावणार्जुनीयम्

 वत्स  भट्टी -----  रावण-वध

 राजशेखर ------- काव्यमीमांसा

अमर सिंह ----- अमरकोश

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