मध्यकालीन भारत का इतिहास
तीन साम्राज्य का युग
7 वीं सदी में हर्ष के साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत , दक्कन और दक्षिण भारत में अनेक साम्राज्य उत्पन्न हुए । इनमें पाल , प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट प्रमुख थे ।
पाल साम्राज्य
पाल साम्राज्य की स्थापना 750 ईस्वी में गोपाल ने की थी ।
गोपाल ने अपने नियंत्रण में बंगाल का एकीकरण किया और मगध तक को अपने अधीन ले लिया ।
गोपाल ने ओदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना की थी ।
धर्मपाल
इसके शासनकाल में कन्नौज पर नियंत्रण के लिए पाल , प्रतिहार एवं राष्ट्रकूटों में त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ ।
इस संघर्ष में धर्मपाल विजय हुआ ।
देवपाल
देवपाल ने अपना नियंत्रण प्रागज्योतिषपुर और उड़ीसा के कुछ भागों पर स्थापित किया ।
पाल शासक बोध्द ज्ञान विज्ञान एवं धर्म के संरक्षक थे ।
धर्मपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुत्थान किया और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की जहां वज्रयान शाखा की पढ़ाई होती है ।
प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान शांतरक्षित एवं दीपांकर ने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया ।
गुजराती कवि सोड्ढल ने धर्मपाल को उत्तरपथस्वामी की उपाधि दी थी ।
प्रतिहार
विद्वानों के अनुसार प्रतिहार गुर्जरों के वंशज थे , इसलिए इन्हें गुर्जर प्रतिहार भी कहते हैं ।
नागभट्ट प्रथम
यह गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक था , इसकी आरंभिक राजधानी भनिमाल में थी ।
नागभट्ट द्वितीय
इसने पाल शासक धर्मपाल की सेना को मुंगेर के समीप पराजित किया ।
इसने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया , लेकिन वह राष्ट्रकूट नरेश गोविंद तृतीय से पराजित हुआ ।
मिहिरभोज प्रथम
यह इस वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक था , इसने कन्नौज को पुनः राजधानी बनाया ।
वह अपने समकालीन राजाओं पाल शासक देवपाल एवं राष्ट्रकूट शासक ध्रुव से पराजित हुआ ।
मिहिरभोज वैष्णव मतावलंबी था , और उसने आदिवाराह और प्रभास जैसी उपाधियाँ धारण की ।
इसका महत्वपूर्ण महत्वपूर्ण लेख ( प्रशस्ति ) ग्वालियर से मिला है ।
महेंद्रपाल प्रथम
इसने प्रतिहार साम्राज्य को अक्षुण्ण बनाए रखा ।
उसके दरबार में राजशेखर निवास करते थे जो उसके राजगुरु भी थे ।
राजशेखर की रचनाएं
कर्पूरमंजरी , काव्यमीमांसा , हरविलास , भुवनकोश , बाल रामायण
अलमसूदी जो 915 - 16 ईस्वी में बगदाद से भारत आया , ने प्रतिहार शासकों की शक्ति एवं प्रतिष्ठा का वर्णन किया है ।
वह प्रतिहार राज्य को अल जुज्र कहता है ।
राष्ट्रकूट
राष्ट्रकूट वंश का संस्थापक दंतिदुर्ग था , जिसने शोलापुर के पास मान्यखेत या मलखेड़ा को अपनी राजधानी बनाया ।
ध्रुव इस वंश का एक महान शासक था , जिसने कन्नौज पर अधिकार करने के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष में हिस्सा लिया ।
अमोघवर्ष एक अन्य प्रसिद्ध शासक था जिसने 64 वर्ष तक राज किया ।
वह जैन मतावलंबी था , उसने कविराज मार्ग नामक कन्नड़ ग्रंथ की रचना की ।
इंद्र तृतीय और बल्लभराज अन्य प्रसिद्ध शासक थे ।
कृष्ण तृतीय अंतिम प्रभाव प्रतिभाशाली शासक था , जो मालवा के परमारओं और वेंगी के पूर्वी चालुक्यों के साथ युद्ध रहा ।
इसने चोल राजा परंटक प्रथम को 949 ईस्वी में पराजित किया ।
राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम ने एलोरा में कैलाश मंदिर बनवाया था ।
तीन साम्राज्य का युग
7 वीं सदी में हर्ष के साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत , दक्कन और दक्षिण भारत में अनेक साम्राज्य उत्पन्न हुए । इनमें पाल , प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट प्रमुख थे ।
पाल साम्राज्य
पाल साम्राज्य की स्थापना 750 ईस्वी में गोपाल ने की थी ।
गोपाल ने अपने नियंत्रण में बंगाल का एकीकरण किया और मगध तक को अपने अधीन ले लिया ।
गोपाल ने ओदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना की थी ।
धर्मपाल
इसके शासनकाल में कन्नौज पर नियंत्रण के लिए पाल , प्रतिहार एवं राष्ट्रकूटों में त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ ।
इस संघर्ष में धर्मपाल विजय हुआ ।
देवपाल
देवपाल ने अपना नियंत्रण प्रागज्योतिषपुर और उड़ीसा के कुछ भागों पर स्थापित किया ।
पाल शासक बोध्द ज्ञान विज्ञान एवं धर्म के संरक्षक थे ।
धर्मपाल ने नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुत्थान किया और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की जहां वज्रयान शाखा की पढ़ाई होती है ।
प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान शांतरक्षित एवं दीपांकर ने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया ।
गुजराती कवि सोड्ढल ने धर्मपाल को उत्तरपथस्वामी की उपाधि दी थी ।
प्रतिहार
विद्वानों के अनुसार प्रतिहार गुर्जरों के वंशज थे , इसलिए इन्हें गुर्जर प्रतिहार भी कहते हैं ।
नागभट्ट प्रथम
यह गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक था , इसकी आरंभिक राजधानी भनिमाल में थी ।
नागभट्ट द्वितीय
इसने पाल शासक धर्मपाल की सेना को मुंगेर के समीप पराजित किया ।
इसने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया , लेकिन वह राष्ट्रकूट नरेश गोविंद तृतीय से पराजित हुआ ।
मिहिरभोज प्रथम
यह इस वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक था , इसने कन्नौज को पुनः राजधानी बनाया ।
वह अपने समकालीन राजाओं पाल शासक देवपाल एवं राष्ट्रकूट शासक ध्रुव से पराजित हुआ ।
मिहिरभोज वैष्णव मतावलंबी था , और उसने आदिवाराह और प्रभास जैसी उपाधियाँ धारण की ।
इसका महत्वपूर्ण महत्वपूर्ण लेख ( प्रशस्ति ) ग्वालियर से मिला है ।
महेंद्रपाल प्रथम
इसने प्रतिहार साम्राज्य को अक्षुण्ण बनाए रखा ।
उसके दरबार में राजशेखर निवास करते थे जो उसके राजगुरु भी थे ।
राजशेखर की रचनाएं
कर्पूरमंजरी , काव्यमीमांसा , हरविलास , भुवनकोश , बाल रामायण
अलमसूदी जो 915 - 16 ईस्वी में बगदाद से भारत आया , ने प्रतिहार शासकों की शक्ति एवं प्रतिष्ठा का वर्णन किया है ।
वह प्रतिहार राज्य को अल जुज्र कहता है ।
राष्ट्रकूट
राष्ट्रकूट वंश का संस्थापक दंतिदुर्ग था , जिसने शोलापुर के पास मान्यखेत या मलखेड़ा को अपनी राजधानी बनाया ।
ध्रुव इस वंश का एक महान शासक था , जिसने कन्नौज पर अधिकार करने के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष में हिस्सा लिया ।
अमोघवर्ष एक अन्य प्रसिद्ध शासक था जिसने 64 वर्ष तक राज किया ।
वह जैन मतावलंबी था , उसने कविराज मार्ग नामक कन्नड़ ग्रंथ की रचना की ।
इंद्र तृतीय और बल्लभराज अन्य प्रसिद्ध शासक थे ।
कृष्ण तृतीय अंतिम प्रभाव प्रतिभाशाली शासक था , जो मालवा के परमारओं और वेंगी के पूर्वी चालुक्यों के साथ युद्ध रहा ।
इसने चोल राजा परंटक प्रथम को 949 ईस्वी में पराजित किया ।
राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम ने एलोरा में कैलाश मंदिर बनवाया था ।